छत्तीसगढ़ विधानसभा भवन के बाहर करीब 10 किलो की भारी-भरकम मालाएं लटकाए और माथे पर दूर से चमकते खूनी लाल तिलक लगाए एक तांत्रिक की तस्वीरें छाई रहीं। तांत्रिक कैमरों के सामने दावा कर रहा था कि राज्य में चौथी बार भाजपा की सरकार बनाने के लिए उसने विधानसभा को तंत्रशक्ति से बांध दिया है और अब वह अमरनाथ जाकर ही जटा खोलेगा। 

उस तांत्रिक की खबरें भारत में तो छाई ही रहीं, दुनियाभर की मीडिया में भी छिटपुट चर्चा हुई। तो क्या छत्तीसगढ़ से जो खबर आई थी वह अभूतपूर्व थीं? रमन सिंह सत्ता में वापसी के लिए इतने बेकरार हैं कि वह हद से ज्यादा अंधविश्वासी हो गए हैं। पेशे से डॉक्टर होने के बावजूद वह ऐसी नई परिपाटी शुरू कर रहे हैं जिसे विज्ञान ढकोसला मानता है।

यदि आप ऐसा सोचते हैं उच्च शिक्षा प्राप्त रमन सिंह ने तंत्र-मंत्र, ज्योतिष, टोने-टोटके का सहारा लेकर अपनी शिक्षा के अनुकूल आचरण नहीं किया है तो फिर मैं आपको लोकसभा का सेमीफाइनल माने जा रहे इन पांच राज्यों के चुनावों से लेकर भारत की आजादी की तारीख और मुहूर्त की घोषणा को लेकर विदेशों में पढ़े पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक से जुड़ी कुछ घटनाएं याद दिलाउंगा। इसके बाद आप किसी एक पार्टी या नेता को जिम्मेदार नही ठहराएंगे। 
     
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव तीन साल तक विपक्षियों पर हावी रहे। कोई चुनौती देने वाला नही दिखता था लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि हवा बदलने लगी। राव को चिंता होने लगी। हर फैसले में ज्योतिष और मुहूर्त का विचार करने वाले राव और तेलंगाना दोनों की कुंडली का विश्लेषण करके ज्योतिषियों ने सुझाव दिया कि यदि 2018 में ही चुनाव करा लिए जाएं तो उनकी सत्ता में वापसी हो सकती है। छह को अपना लकी नंबर मानने वाले केसीआर ने छह सितंबर को कैबिनेट की बैठक के बाद विधानसभा भंग करके राज्य में तय समय से आठ महीने पहले चुनावों का इंतजाम कर दिया। छह के प्रति उनका इतना आग्रह है कि जून 2014 में मुख्यमंत्री पद की शपथ भी उन्होंने दोपहर 12.57 पर ली थी जिसका मूलांक योग छह ही होता है। मुख्यमंत्री के रूप में कैबिनेट की वे सारी महत्वपूर्ण बैठकें जिनमें बड़े निर्णय हुए उनमें छह का संयोग बनाया गया। जिन गाड़ियों पर वह चलते हैं उनका नंबर भी छह होता है। 

मध्य प्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा राज्य में अचानक किसानों के आंदोलन और दूसरी छोटी-छोटी घटनाएं सरकार के सामने बड़ी चुनौती की तरह आकर खड़ी होने लगीं। जिससे सरकार की मुश्किल बढ़ गई। तब ज्योतिषियों ने सलाह दी कि पार्टी के मुख्यालय में पानी की टंकी गलत स्थान पर है और उससे उत्पन्न वास्तुदोष समस्याएं खड़ी कर रहा है। फिर क्या था, टंकी का स्थान परिवर्तन कराया गया। 

खबर भोपाल के कांग्रेस पार्टी मुख्यालय तक भी पहुंची। कांग्रेस भी 15 साल से सत्ता में आने को लालायित है और बात बनते-बनते रह जाती है। अंदरुनी खींचतान से हर बार बेड़ा गर्क हो जाता है। लिहाजा ज्योतिषियों से संपर्क साधा गया और उनके परामर्श पर मुख्यालय के हर पदाधिकारी के कमरे के बाहर नींबू-मिर्च लटकाए जाने की बातें मीडिया में आईं।

पार्टी टोना-टोटका आजमा रही थी तो सत्ता पर नजर जमाए ज्यातिरादित्य सिंधिया कैसे पीछे रहते! एक तस्वीर सामने आई जिसमें वह नारियल विसर्जित कर रहे थे, एक तस्वीर में वह सभा के लिए गले में नींबू मिर्च की माला पहने निकले थे। कहा गया कि वह भी तांत्रिकों की सलाह पर चल रहे हैं। 

कुछ समय पहले राजस्थान से भी खबर आई थी कि नेताओं का ऐसा मानना है कि विधानभवन किसी न किसी प्रेत बाधा से पीड़ित है। इसीलिए कोई सरकार चाहे कितना भी अच्छा काम क्यों न कर ले, पांच साल में सत्ता परिवर्तन हो ही जाता है। प्रेतबाधा से मुक्ति के लिए विधानभवन को बांधने की खबरें भी मीडिया में प्रमुखता से उछली थीं।

 मध्य प्रदेश के एक अन्य पड़ोसी राज्य कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तो एक बार मीटिंग में जाने के लिए अपनी गाड़ी में बैठने से सिर्फ इसलिए इंकार कर दिया था क्योंकि उन्होंने गाड़ी पर एक काले कौवे को बैठा देख लिया था। खबर आई थी कि वह कार ही बदल दी गई।

 एक सपा नेता ने डेढ़ दशक पहले दावा किया था कि नेताजी मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए नेपाल के कामाख्या मंदिर में 101 भैंसों की बलि दिलाई गई है। ऐसी खबरें गिनाने लगें तो संख्या सैकड़ों में जाएगी और यह सब नया नहीं है। 
राजनीति में तंत्र मंत्र टेन टोटके अपना एक पूरा इतिहास है जो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से भी जुड़ा है।    

भारत को आजादी देने के बाद आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन जल्द से जल्द दिल्ली छोड़कर लंदन जाना चाहते थे।  लेकिन भारत के नेताओं की ओर से उतनी जल्दी नहीं दिख रही थी। हारकर माउंटबेटन ने कह दिया कि 14 या ज्यादा से ज्यादा 15 अगस्त उसके बाद नहीं।  पाकिस्तान ने तो 14 अगस्त को ही अपनी स्वाधीनता के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए और खुद को आजाद घोषित कर लिया पर नेहरूजी को तलाश थी एक अच्छे मुहूर्त की जिसमें भारत की स्वतंत्रता को स्वीकार किया जाए।  
उज्जैन के पं. सूर्यनारायण व्यास और सोलन के पं. हरिदेव शर्मा शास्त्रीजी उस समय के सबसे प्रकांड ज्योतिषी माने जाते थे। नेहरू ने दोनों से एक शुभ मुहूर्त निकालने को कहा। ग्रहों की स्थिति ऐसी थी कि अगले 2 दिनों तक कोई उत्तम मुहूर्त ही नहीं मिल रहा था। इसलिए बीच का रास्ता निकाला गया और हिंदू पंचांग अनुसार 14 की मध्य रात्रि और अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार 15 अगस्त की रात्रि को 00.00 बजे अभिजित मुहूर्त में नेहरू ने भारत को आजाद घोषित किया। तब नक्षत्रों में पुष्य उदित था। भारत को जन्म के समय शनि की दशा मिली और लग्न में राहू। इस लग्न को व्यक्तित्व का द्योतक माना जाता है। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि राहू के लग्न में होने से देश में भ्रष्टाचार की समस्या आ सकती है। शनि की दशा के कारण देश की शुरुआती वर्षों में तरक्की बहुत धीमी रहेगी, देश लंबे समय तक अनिर्णय की स्थिति में रहेगा, सही-गलत के बीच उलझा हुआ। 

हुआ भी कुछ ऐसा ही। हमने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बहुत से ऐसे फैसले लिए जिनका खामियाजा आज भुगतना पड़ रहा है। सुरक्षा परिषद में चीन को जगह देने की वकालत करना और गुट-निरपेक्षता की नीति, हम पर भारी पड़ी। 

तो वास्तु दोष ठीक कराने के लिए पानी की टंकी का स्थान बदलवाने या फिर दफ्तर के में नींबू-मिर्च टांगने या फिर छह को भाग्यशाली अंक मानने वाले केसीआर द्वारा सारे काम में छह का फेर खोजने पर इतनी हैरानी क्यों!  भारत में ज्योतिषीय गणनाओं और मुहूर्त आदि विचार तो शुरू से प्रचलित रहा है। 

सनातन परंपराएं थोपने का आरोप भाजपा पर लगाना भी कांग्रेस के लिए उचित नहीं होगा। क्योंकि जिस दतिया स्थित पीतांबरा पीठ की वसुंधरा राजे संरक्षक है उस पीठ की स्थापना में भी नेहरू की ही भूमिका बताई जाती है। 

 1962 की लड़ाई में भारत की हार हो रही थी और विदेशी सहायता भी भारत को नहीं मिल पा रही थी तब नेहरु घबरा गए। उन्हें लगता था कि कहीं चीन उत्तर-पूर्व से आगे बंगाल तक न चढ़ आए। उन्होंने ज्योतिषियों और कर्मकांडियों से संपर्क कर इसका निदान बताने को कहा। सुझाव आया कि माता धूमावती की आराधना की जाए। विधवा वेष में रहने वाली धूमावती देवी दसमहाविद्या देवियों में से हैं। पीतांबरा त्रिपुर सुंदरी राजसत्ता की देवी हैं तो धूमावती अपराजिता हैं। युद्ध जैसी विभीषका में उनकी साधना से परिणाम पलट जाते हैं और साधक कमजोर होने पर भी रण में विजय प्राप्त करता है।  नेहरू ने इसी पीतांबरा पीठ के प्रांगण में 51 कुंडीय महायज्ञ करवाया था और ग्यारहवें दिन जब अंतिम आहुति दी जा रही थी, चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुलानी शुरू की थीं। यह सभी 51 यज्ञकुंड आज भी मंदिर प्रांगण में मौजूद हैं। 

तो यदि शिवराज, वसुंधरा, सिंधिया, चंद्रशेखर राव, सिद्धारमैया आदि ज्योतिषिय परामर्शों, टोने-टोटके आदि के प्रति इतने आग्रही हैं तो इतना आश्चर्य क्यों और न ही नेहरू के इस आग्रह पर ही आश्चर्यचकित होना चाहिए। 

 यह भारत की प्राचीन परंपरा है।  भूमि-पूजन, नारियल फोड़ना, तिलक लगाना आदि सरकारी कार्यों की परिपार्टी में भी हैं।  जहां तक चुनावों की बात है, चुनाव आयोग चुनाव की तिथि और वोटों की गणना की तिथि में संभवतः मुहूर्त विचार नहीं करता।  आयोग का ध्यान अपना काम सुचारू रूप से पूरा कराने पर होता है इसलिए तिथियों का उसका चयन सुविधा आधारित होता है न कि मुहूर्त आधारित। यहीं प्रारब्ध अपना काम कर जाता है।  प्रत्याशियों द्वारा किए गए सारे उपाय ज्यादातर बार काम नहीं आते। 

ज्योतिष के 18 आदि गुरुओं में वशिष्ठ का नाम भी आता है। गुरु वशिष्ठ ने ही श्रीराम के राज्याभिषेक का मुहूर्त निकाला था। लेकिन उसी मुहूर्त में श्रीराम को वनवास हो गया था। शायद हमारे पूर्वज, हमारे आराध्य श्रीराम हमें शिक्षा दे गए कि गणनाएं हर बार सही ही हों, यह जरूरी नहीं। या यूं भी कह सकते हैं कि यदि वह गणना सही निकल जाती तो श्रीराम एक सूर्यवंशी राजा से अधिक न माने जाते, उसी वनवास ने उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम, भगवान श्रीराम बनाया। 
  
लेखक परिचय - राजन प्रकाश पेशे से पत्रकार हैं. ज्योतिष, अध्यात्म आदि विषयों में गहरी रुचि रखते हैं।