नई दिल्ली: अगर भारतीय राजनीति का दिल दिल्ली है तो उसकी धड़कन उत्तर प्रदेश है और धड़कन पर काबू होना स्वस्थ दिल की निशानी मानी जाती है | जैसे जैसे 11 अप्रैल को पहले चरण के चुनाव की तारीख करीब आती जा रही है, सरगर्मियां मानो बढ़ती जा रही है | जहां एक तरफ उत्तरप्रदेश के नए "साथी" अखिलेश और मायावती का गठबंधन है जिसके साथ अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल भी है, तो दूसरी तरफ हिन्दू हृदय सम्राट "योगी-मोदी" की जोड़ी। 
 हालांकि कांग्रेस इस बार चुनाव अकेले लड़ रही है पर कांग्रेस को बिलकुल नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता | 80 सीटों वाले इस प्रदेश में लगभग आठ सीटों पर शुरुआती चरण में बहुत ही कांटे की टक्कर की उम्मीद है| ये सारी सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की है |

 वैसे तो कर्मठ और प्रगतिशील छवि वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी 28 मार्च की मेरठ रैली से चुनावी बिगुल फूंक दिया है वही मायावती और अखिलेश यादव 7 अप्रैल को सहारनपुर में विशाल रैली करेंगे जहाँ 5 अप्रैल को नरेंद्र मोदी को रैली करेंगे | 

हालांकि मोदी सरकार ने सामान्य जाति के गरीबों को 10 %आरक्षण देकर काफी हद तक उनका विश्वास जीत लिया है।  लेकिन अब ये देखना है की "साथी " का गठजोड़ उसमें कितना सेंध लगा पाता है |  2019 लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 11 अप्रैल को उत्तर प्रदेश की जिन आठ सीटों पर वोटिंग होनी है वो हैं - गाज़ियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, बागपत, सहारनपुर, मेरठ, मुज़फ्फरनगर, बिजनौर और कैराना | 

 मौजूदा स्थिति में आठ में से सात सीटों पर बीजेपी का कब्ज़ा है, वहीं कैराना की सीट बीजेपी 2018 के उपचुनाव में हार चुकी है| आइये विस्तार से इन सीटों पर नज़र डालते हैं जिनका नतीजा कुछ भी हो सकता है :-

1. गाजियाबाद

2008  में हुए परिसीमन के बाद बनी ग़ाज़ियाबाद की संसदीय सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, ग़ज़ियाबाद और ढोलना हैं | जहाँ ढोलना क्षेत्र हापुड़ जिले में आता है वही अन्य चारो ग़ज़ियाबाद जिले में आते हैं। 2009 लोकसभा चुनावों में मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी वहीं 2014 में पूर्व सेनाध्यक्ष वी के सिंह बीजेपी के टिकट पर यहां से सांसद बने |  25.5 लाख वोटर्स वाले इस क्षेत्र में इस बार बीजेपी ने एक बार फिर से जनरल वी.के सिंह को उम्मीदवार बनाया है। वहीं कांग्रेस से डॉली शर्मा मैदान में हैं। सपा-बसपा के गठबंधन के बाद बसपा ने यह सीट सपा के उमीदवार सुरेश बंसल के लिए छोड़ दी है | 

हालांकि सुरेश बंसल ने 2017 बसपा के टिकट से ही चुनाव लड़ा था | वहीं आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवार पर कोई भी फैसला नहीं किया है|
 लोनी क्षेत्र में मुस्लिम और गुज्जर समुदायों का वर्चस्व है, वहीं पूरे गाजियाबाद क्षेत्र में मुस्लिम वोट तीन लाख से अधिक है वहीँ गुज्जर वोट एक लाख के करीब है। यही वोटबैंक निर्णायक साबित होगा। अब देखना है कि ट्रीपल तलाक़ बिल, 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण जैसे कदमों का कितना फायदा सरकार को मिलता है। 

2. गौतमबुद्ध नगर 

2008 में बने संसदीय क्षेत्र गौतमबुद्ध नगर में पांच विधान सभा क्षेत्र नोएडा, दादरी, जेवर, सिकंदराबाद और खुर्जा आते हैं| 19 लाख से अधिक वोटर वाले इस क्षेत्र में  खुर्जा और सिकंदराबाद क्षेत्र बुलंदशहर जिले में हैं। वहीं नोएडा, दादरी और जेवर गौतम बुद्ध नगर जिले में आते है | विधानसभा क्षेत्र खुर्जा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित क्षेत्र है |  

2009 में इस सीट पर बसपा का कब्ज़ा था।  बसपा के उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह नागर ने यहां से जीत दर्ज की थी। लेकिन 2014 में यह सीट बीजेपी ने जीत ली और अब महेश शर्मा यहां से सांसद हैं|  2019  के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने एक बार फिर मौजूदा सांसद महेश शर्मा पर भरोसा जताया है। बसपा ने इस बार टिकट सतबीर नागर को दिया है, वहीं कांग्रेस के टिकट पर अरविन्द कुमार सिंह चुनाव लड़ रहे हैं |

3 बागपत

15 लाख से ज़्यादा वोटर वाले इस संसदीय क्षेत्र में पूरा बागपत जिला, मेरठ और ग़ज़ियाबाद जिले के कुछ हिस्से आते हैं। जिनमें सिवालखास(मेरठ), मोदीनगर(ग़ज़ियाबाद), छपरौली, बड़ौत, बागपत क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस इलाके में 3.5 लाख जाट, 5 लाख मुस्लिम, 1 लाख ब्राह्मण और 1 लाख 70 हज़ार गुज्जर हैं। 1999 से 2014 तक इस सीट पर राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया अजित सिंह का कब्ज़ा था। वहीं 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा के सत्यपाल सिंह ने जीत दर्ज की जो मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं |

2019 में बीजेपी ने फिर एक बार सत्यपाल सिंह को बागपत की सीट दी है।  वहीं बसपा और सपा ने राष्ट्रीय लोक दल के जयंत चौधरी के लिए यह सीट छोड़ दी है। इसलिए यहां इस बार सीधा-सीधा मुकाबला भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के बीच है। साल 2014 में इस सीट पर सपा, बसपा और रालोद तीनो ने अलग अलग चुनाव लड़ा था |

4. सहारनपुर

जहाँ नरेंद्र मोदी 5 अप्रैल को सहारनपुर की जनता को सम्बोधित करेंगे वहीं 7 अप्रैल को अखिलेश और मायावती भी यहां भव्य रैली करेंगे | 7 लाख अनुसूचित जाति वाले इस क्षेत्र में, 54 % हिन्दू और 47 % मुस्लिम रहते हैं | 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राघव लखनपाल ने कांग्रेस के इमरान मसूद को 70 हज़ार वोटो से हराया था | लेकिन इस बार सपा और बसपा के गठबंधन के बाद और कांग्रेस की गिरती लोकप्रियता के चलते ये देखना दिलचस्प होगा की अल्पसंख्यक वोट किसके खाते में जाते हैं। इस बार सपा ने यह सीट बसपा के लिए छोड़ दी है।  


वहीं कांग्रेस और भाजपा ने 2014 के अपने पुराने उम्मीदवारों पर ही भरोसा जताया है। बसपा ने इस सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट हाजी फजलुर रहमान को खड़ा किया है। 2014 में बसपा ने यहाँ जगद्दीश सिंह राणा को टिकट दिया था |
सहारनपुर की सीट इस बार बेहद अहम है क्योंकि सपा-बसपा के एक साथ आने से उम्मीद की जा रही है कि मुस्लिम और दलित एक साथ वोट कर सकते हैं। 
लेकिन बीजेपी को मुस्लिम महिलाओं से काफी उम्मीदे हैं। क्योंकि तीन तलाक के खिलाफ अध्यादेश से मुस्लिम महिलाएं को राहत मिली है। 

5. मेरठ

करीब 6 लाख अनुसूचित जाति के वोटरों वाले इस क्षेत्र में जहाँ 34 % प्रतिशत मुस्लिम आबादी भी है। जिसे देखते हुए सपा से गठबंधन के बाद बसपा ने यहाँ हाजी मुहम्मद याक़ूब को उतारा है। पिछले यानी साल 2014 के चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल को 47 % वोट मिले थे, वहीं बसपा को 27 % और सपा को 19 % वोट प्राप्त हु थे। यह वोट बैंक कुल मतदाताओँ को 46 फीसदी है। बसपा को इसी वोटबैंक की उम्मीद है। 


बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल को ही टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस के टिकट पर हरेन्द्र अग्रवाल मैदान में हैं। पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर यहां से फिल्म अभिनेत्री नगमा ने चुनाव लड़ा था। 

6 मुज़फ्फरनगर

बुधाना, चरथावल, मुज़फ्फरनगर, खतौली और सरधाना जैसे पांच विधानसभा क्षेत्रों से सम्मिलित मुज़फ्फरनगर संसदीय क्षेत्र, जो 2013 में दंगो की लपेट में था, तब ये सीट बसपा के पास थी लेकिन दंगो के बाद स्थिति बदल गई। 2014 के चुनाव में जाति का बंधन तोड़कर हिंदुओं ने बीजेपी को एकमुश्त वोट दिया। वहीं जाटों और मुस्लिम वोट के वोट में बंटवारा होने से बसपा हार गई। परन्तु आज की स्थितियां बदल गई हैं। बसपा और सपा ने ये सीट राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया अजित सिंह के लिए ये सीट छोड़ दी है| रालोद का अनुमान है की जाटों और मुस्लिम वोट के बलबूते ये सीट वो आराम से जीत सकते हैं, आंकड़ों पर नज़र डालें तो 57 % हिन्दू और 41 % प्रतिशत मुस्लिम वाली आबादी वाले इस क्षेत्र में दोनों पार्टियों ने हिन्दू उम्मीदवार को खड़ा किया है। 


जहां बीजेपी से मौजूदा सांसद संजीव बालियान फिर एक बार चुनाव लड़ेंगे वहीं रालोद इस सीट पर अपना खता खोलने के लिए उतरेगी | अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या जनता 2013 के दंगो को भुला पाई है जिसके लिए उसने भाजपा को वोट किया था और जनता के उसी विश्वास पर खरा उतारते हुए भाजपा ने 5 साल मुजफ्फरनगर में शांतिपूर्ण सुशासन दिया|  क्या वही विश्वास पर इस बार जनता एक बार फिर वोट करेगी या फिर कोई बदलाव होगा? ये तो अब 23 मई को ही पता चलेगा |

7. बिजनौर 

बिजनौर, चांदपुर, हस्तिनापुर, मीरपुर और पुरकाज़ी जैसी पांच विधान सभा सीटों से मिलकर बनी बिजनौर संसदीय क्षेत्र पर 2014 के लोकसभा चुनावो में भाजपा के कुंवर भारतेंद्र सिंह ने जीत दर्ज की थी। बीजेपी ने एक बार फिर से उन्हें टिकट दिया है। वहीं गठबंधन के बाद रालोद ने ये सीट बसपा के लिए छोड़ दी। जबकि 2003 और 2009 में इस सीट पर रालोद का ही कब्ज़ा था|  1989 के बाद से इस सीट पर बसपा को एक बार भी जीत हासिल नहीं हुई।

इस बार बसपा ने यहां से मलूक नागर को उतारा है। वहीं कांग्रेस से नसीमुद्दीन सिद्दीकी मैदान में हैं। इस सीट पर 55 % हिन्दू और 43 % मुस्लिम है | वहीं 7 लाख वोटर अनुसूचित जाति के हैं | जहाँ बसपा की नज़र मुस्लिम और दलित वोट पर होगी वहीं कांग्रेस को भी मुस्लिम वोटरों से उम्मीदें हैं। 

8.  कैराना

कैराना में पांच विधानसभा क्षेत्र नाकुर, गंगोह, कैराना, थाना भवन और  शामली सम्मिलित हैं, जहाँ एक तरफ कैराना से हिन्दुओं के पलायन जैसी खबरों से सुर्खियों में रही। वहीं 2018 में हुए उपचुनावों में बीजेपी के हाथ से यह सीट निकल गई। 


कैराना उपचुनाव ने ही बसपा,सपा और रालोद के गठबंधन की झलक दे दी थी, जब बसपा और सपा ने 2018  के उपचुनावों में इस सीट पर रालोद की उम्मीदवार तबस्सुम हसन के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा और जिसका सीधा सीधा नुकसान भाजपा की उमीदवार मृगांका सिंह को हुआ जो 4 % के अंतर से हार गईं | 

अब 2019 में इस सीट पर तबस्सुम हसन ही फिर से सपा के टिकट पर लड़ रही हैं। वहीं भाजपा ने प्रदीप चौधरी को खड़ा किया हैं तो कांग्रेस ने हरेंद्र मालिक को टिकट दिया है|

भारतीय राजनीती में उम्मीदें शेयर बाजार से भी जल्दी ऊपर नीचे होती हैं, जहाँ अप्रैल के महीने में गर्मी बढ़ गई हैं, क्यूंकि चुनावी लू काफी तेज़ हैं और हर कोई यही उम्मीद लगाए बैठा है कि राहत भरी फुहारें जल्द ही बरसेंगी। लेकिन  ये बारिश किस को राहत देगी और किसको प्यासा छोड़ेगी ये तो 23 मई को चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।