बिहार में सरकार में सबसे बड़ी भागीदार जनता दल (यू) राज्य में सवर्ण आरक्षण को जल्दी लागू करने के पक्ष में नहीं है। राज्य में भाजपा और जदयू मिलकर सरकार चला रहे हैं. लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आबादी से आधार पर आरक्षण के समर्थक हैं. नीतीश सरकार के इस फैसले के बाद भाजपा पर आरक्षण को लागू करने का जबरदस्त दबाव है.

राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ किया है कि पार्टी राज्य में आबादी के हिसाब से आरक्षण के समर्थन में है. इसके लिए उन्होंने केन्द्र सरकार से तीन साल बाद होने वाली जनगणना को जातीय आधार कर कराने का आग्रह किया है. कुमार ने कहा कि फिलहाल राज्य सरकार आरक्षण को लेकर जल्दी बाजी में नहीं है. असल में राज्य में मुख्य विपक्षी दल राजद ने सवर्ण आरक्षण के खिलाफ बयान दिया है और जदयू उसे आरक्षण लागू कर राज्य के पिछड़े और दलितों के वोटबैंक को अपनी तरफ खिंचने का मौका नहीं देना चाहते हैं. नीतीश कुमार ने कहा कि जातीय जनगणना होने पर पता चलेगा कि किस जाति की कितनी आबादी है.

इससे खासतौर पर ओबीसी के बारे में स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगी. जबकि अभी तक एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों की आबादी की जानकारी तो इससे मिल जाती है लेकिन ओबोसी की आबादी की जानकारी नहीं मिल पाती है. जातीय जनगणना होने के बाद आबादी के आधार पर आरक्षण का बंटवारा होना चाहिए. हम चाहते हैं कि ना सिर्फ ओबीसी बल्कि सभी वर्गों की जाति के हिसाब से जनगणना होनी चाहिए. कुमार ने कहा कि राज्य में भी गरीब सवर्णें के लिए 10% आरक्षण लागू होगा, लेकिन इसके लिए राज्य सरकार सभी कानूनी पहलुओं पर विचार कर रहा है. इसे एक्ट बनाकर लागू किया जाए या एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए, फिलहाल इसे संविधान संशोधन के द्वारा केंद्रीय सेवाओं में इसे लागू किया गया है. पहले से दिए गए एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के आरक्षण की सीमा को बिना छेड़े यह लागू हुआ है.