राज्य में विधानसभा चुनाव हारने के बाद राज्य में तेजी से सक्रिय हो रहे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की आभार यात्रा पर भाजपा आलाकमान ने ब्रेक लगा दिया है। भाजपा शिवराज को राज्य की राजनीति में ही सक्रिय रखेगी या फिर लोकसभा चुनाव से पहले केन्द्रीय राजनीति में उतारेगी, इसका फैसला जल्द करेगी। फिलहाल ये शिवराज के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

असल में राज्य में चुनाव हारने के बाद शिवराज सिंह तेजी से राज्य की राजनीति में सक्रिय हो रहे थे। शिवराज ने ऐलान किया था कि वह राज्य की राजनीति में ही सक्रिय रहना चाहते हैं। लेकिन आलाकमान ने कोई अनुमति नहीं दी थी। शिवराज भोपाल में रात में ठंड में लोगों से मिल रहे थे और उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था कि टाइगर अभी जिंदा है। इसके अपने राजनैतिक मायने थे। शिवराज राज्य में संगठन की कमान और विपक्ष के नेता का पद अपने हाथ में रखना चाहते थे। जबकि संघ इसके खिलाफ था। संघ शिवराज से नाराज चल रहा है।

क्योंकि शिवराज सरकार में मंत्रियों के प्रदर्शन पर संघ ने शिकायत भी की थी। लेकिन शिवराज ने संघ की सलाह को कोई तवज्जो नहीं दी। लिहाजा संघ भी शिवराज की बख्शने के मूड में नहीं है। अब पार्टी आलाकमान ने संघ के दबाव में शिवराज की आभार यात्रा पर रोक लगा दी है। जबकि शिवराज राज्य की जनता के बीच आभार यात्रा को लेकर जाने वाले थे और इसके लिए उन्होंने तैयारियां भी कर दी थी। पार्टी नेतृत्व इसे संगठन से ज्यादा पूर्व सरकार की कमी मान रहा है। ऐसे में शिवराज प्रदेश में रहेंगे या केंद्र में आएंगे, इसका फैसला अगले माह होगा। पार्टी मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह के गृह नगर में हुई हार को अहम मान रही है। क्योंकि इससे साफ होता है कि शिवराज ने अपने गृह जनपद में ही कार्य नहीं किया। जबकि मध्य प्रदेश को भाजपा और संघ का गढ़ माना जाता है। 

मध्य प्रदेश की हार का सबसे ज्यादा नुकसान शिवराज सिंह चौहान को हुआ है। शिवराज ने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश में अपनी जन नेता की छवि बनाई थी, जिसे धक्का लगा है। वे भविष्य के भाजपा नेताओं में भी शुमार किए जाते हैं।  बहरहाल विधायक दल के नेता का अगले माह चयन होगा, जिससे यह साफ हो जाएगा कि शिवराज प्रदेश की राजनीति करेंगे या केंद्र में आएंगे।ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव हारने के बाद वसुंधरा राजे और रमन सिंह शांत रहे, जबकि इसके विपरीत शिवराज सिंह ज्यादा सक्रिय हो गए। इसके जरिए शिवराज आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राज्य की कमान अपने हाथ में रखना चाहते हैं। जिसे आलाकमान एक दबाव राजनीति के तौर पर देख रहा है। फिलहाल केंद्रीय नेतृत्व इसके लिए तैयार नहीं है।