आगामी लोकसभा चुनाव में “गन्ना” नेताओं के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. खासतौर से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जहां गन्ने का बकाया राज्य सरकारों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है और बकाया न मिलने के कारण किसानों की नाराजगी नेताओं और सरकार के खिलाफ बढ़ती जा रही है और इसका सीधा फायदा विपक्षी दल उठा रहे हैं. वर्तमान गन्ना सीजन में गन्ने का बकाया बढ़कर 19 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है और अगले तीन महीनों के बाद इसके 40 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने की आशंका है. लिहाजा आगामी लोकसभा चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है. जहां गन्ना किसान राजनैतिक दलों का भविष्य तय करते हैं.

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में गन्ना किसान एक बड़ा वोट बैंक माने जाते हैं. जबकि देश के अन्य राज्य मसलन कर्नाटक, तमिलनाडू, बिहार, उत्तराखंड में भी गन्ने की खेती की जाती है. लेकिन इन राज्यों में यूपी और महाराष्ट्र की तुलना में गन्ना का उत्पादन कम है. महाराष्ट्र के हालत तो ये हैं कि यहां ज्यादातर सांसदों की चीनी की मिलें हैं. जबकि उत्तर प्रदेश में गन्ना किसान बड़ा वोट बैंक माना जाता है. किसानों की नाराजगी के कारण राज्य कई अधिकांश विधानसभा सीटें और लोकसभा की सीटें प्रभावित होती हैं. अगर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में गन्ना राजनीति से प्रभावित होने वाली सीटों पर नजर डालें तो यहां पर 50 से ज्यादा सीटें सीधे तौर पर गन्ना किसानों के वोट के जरिए प्रभावित होती हैं.

उत्तर प्रदेश की सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर,अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आजमगढ़, बरेली, सीतापुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, फैजाबाद, बलिया, जौनपुर लोकसभा सीट, तो महाराष्ट्र की सोलापुर,सांगली,पुणे,कोल्हापुर, नासिक,सतारा,अहमदनगर,धुले, नंदूरबार, जलगांव, औरंगाबाद, बीड़, परभणी, हिंगोली,नांदेण, उस्मानाबाद, लातूर, बुलढाणा, जालना, यवतमाल, अकोला, अमरावती, वर्धा, नागपुर सीधे तौर पर गन्ना किसान राजनैतिक दलों का भविष्य तय करते हैं.  अब इन राज्यों में राज्य सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्याओं किसानों का गन्ना बकाया है. अभी तक कई चीनी मिलें किसानों को पिछले साल का बकाया नहीं दे पायी हैं. जबकि नया चीनी उत्पादन सीजन नवंबर से शुरू हो गया है.

उद्योग जगत का मानना है कि इस सीजन के अंत तक गन्ना बकाया करीब 40 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा.  आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर, 2018 तक चीनी मिलों पर 19,000 करोड़ रुपये का था जो पिछले सीजन की तुलना में दोगुना हो गया है. हालांकि कुछ महीनें पहले केन्द्र की मोदी सरकार ने गन्ना किसानों को राहत देने के लिए 8,500 करोड़ के पैकेज का ऐलान किया था. लेकिन ये किसानों का बकाया देने के लिए काफी कम राशि थी. हालांकि सरकार के इस फैसले का असर महाराष्ट्र-उत्तर प्रदेश की उन 50 सीटों पर भी पड़ेगा, जहां किसानों के वोट असर डालते हैं और आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा सरकार को फायदा दे सकते हैं.

उधर चीनी मिलों के सगंठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में भारत का चीनी उत्पादन 3.05 करोड़ टन पर रहने की उम्मीद जताई है, जो उसके 3.55 करोड़ टन के पहले अग्रिम अनुमान की तुलना में बड़ी गिरावट है. पिछला स्टॉक भारत की कुल 2.5 करोड़ टन की खपत के मुकाबले 1 करोड़ टन पर है. जानकारी के मुताबिक भारत में पिछले साल अप्रैल के मध्य में 25,000 करोड़ रुपये का सर्वाधिक गन्ना बकाया दर्ज किया. हालांकि चीनी मिलें सरकार को चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य 5 रुपये तक बढ़ाकर 34 रुपये प्रति किलोग्राम करने का सुझाव पहले ही दे चुकी है, लेकिन चुनावी साल होने के कारण सरकार कीमतों में इजाफा नहीं चाहती है.

हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें बढ़ने का असर भारतीय बाजार पर भी देखा जा रहा है. लेकिन लगातार बढ़ रहे बकाये को लेकर चीनी मिलें भी परेशान हैं. पिछले साल उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में गन्ने का बकाया न मिलने के कारण किसानों ने खेतों में गन्ना जला दिया था. वहीं नेताओं की मुश्किलें भी बकाया राशि ने बढ़ा दी हैं.