प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का मानना है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान साल 2009 में सैमसंग और सरकारी क्षेत्र की कंपनी (पीएसयू) तेल एवं प्राकृतिक गैस कार्पोरेशन (ओएनजीसी) के बीच एक सौदा कराने के एवज में हथियारों के सौदागर संजय भंडारी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा को दलाली की रकम मिली थी। इस संबंध में अहम दस्तावेज 'माय नेशन' के हाथ लगे हैं। 

इस राशि को काफी घुमा फिराकर विदेश में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के स्वामित्व वाली संपत्तियों को खरीदने में खर्च किया गया। इसमें लंदन के ब्रायंसटन स्क्वॉयर स्थित 12 एलॉरटन हाउस की खरीद भी शामिल है। 

ब्रायंसटन स्क्वॉयर की संपत्ति विदेश में खरीदी गई उन संपत्तियों में से एक है जिसे लेकर ईडी वाड्रा और भंडारी की जांच कर रही है। इससे पहले आयकर विभाग को भारत में भंडारी से जुड़ी संपत्तियों पर मारे गए छापे में वाड्रा, उनके एक्जीक्यूटिव एसिस्टेंट मनोज अरोरा और सुमित चड्ढा के बीच हुए ई-मेल का आदान-प्रदान से जुड़े साक्ष्य मिले थे। सुमित चड्ढा हथियार डीलर संजय भंडारी का करीबी रिश्तेदार है। 

डॉक्यूमेंट्री साक्ष्य के आधार पर 'माय नेशन' ने इसके लिए इस्तेमाल किए गए तरीके को सिलसिलेवार बता रहा है। 

1. संजय भंडारी की अमेरिका स्थित एक कंपनी मैसर्स सेनटेक इंटर है। इसके ज्यादातर शेयर भंडारी के ही पास हैं। यह कंपनी संयुक्त अरब अमीरात के फ्री जोन एस्टैबलिशमेंट (एफजेडई) में भी है। इसने 2009 में मैसर्स सैमसंग इंजीनियरिंग कार्पोरेशन लिमिटेड को ओएनजीसी का ठेका दिलाने में मदद की। इसके जवाब में भंडारी की कंपनी को 49,99,969 अमेरिकी डॉलर की दलाली मिली। यह 13 जून 2009 को उसके बैंक खाते में गई। 

2. भंडारी की कंपनी ने 10 दिसंबर, 2009 अपने खाते से 19,22,262.44 (1.9 मिलियन) ब्रिटिश पाउंड की राशि को ब्रिटेन भेजा। इस पैसे का इस्तेमाल मैसर्स वरटैक्स होल्डिंग बीवीआई के दो शेयर खरीदने में किया गया। खास बात यह है कि इसके लिए समझौता 11 दिसंबर, 2009 को हुआ था। वरटैक्स के पास लंदन में एक घर था। इसका नाम ब्रायंसटन स्क्वॉयर स्थित 12 एलॉरटन हाउस है। 

यानी सैमसंग-ओएनजीसी पेट्रोलियम सौदे की दलाली से जो राशि मिली थी उसका इस्तेमाल वरटैक्स के दो शेयर खरीदने के लिए किया गया। इस तरह से भंडारी ने वरटैक्स से वह संपत्ति हासिल कर ली। 

3. भंडारी द्वारा संपत्ति हासिल करने के बाद इसमें रॉबर्ट वाड्रा की एंट्री हुई। 'माय नेशन' के पास वाड्रा और चड्ढा के बीच ई-मेल से हुई बातचीत का ब्यौरा एक्सक्लूसिव उपलब्ध है। इन ईमेल से भंडारी और वाड्रा के संपर्कों का पता चलता है। हालांकि ईडी के जांचकर्ताओं के सामने उन्होंने इनसे इनकार किया है। इन्हीं ई-मेल के हवाले से ईडी ने आरोप लगाया है कि लंदन की इस संपत्ति के वास्तविक मालिक भंडारी नहीं बल्कि रॉबर्ट वाड्रा हैं। 

इस ई-मेल में चड्ढा वाड्रा को लिखते हैं, 'कोई जानकारी है कि कब तक फंड भेजा जाएगा, इस बारे में किसी से कोई जानकारी मुझे नहीं मिली है। मैं आभारी रहूंगा अगर आप जानकारी दे सकें, जिससे मैं कैश फ्लो को प्लान कर सकता हूं। जैसा आप जानते हैं कि मैं इस प्रोजेक्ट को किसी व्यावसायिक फायदे के लिए नहीं कर रहा हूं सिर्फ फेवर के लिए कर रहा हूं। मैं इस काम को बिना तनाव के करना चाहता हूं और मैं आभारी रहूंगा अगर आप एक साफ तौर पर जानकारी दे दें कि मुझे पैसा कब तक मिलेगा।'

मेल में आगे चड्ढा ने लिखा है 'फ्लोर, बॉथरूम और हीटिंग सिस्टम समेत मैंने सारा बचा हुआ काम पूरा करा लिया है। सारा सामान खरीद लिया गया है और वुडेन फ्लोर का काम शुरू हो गया है...।

इस मेल का रॉबर्ट वाड्रा ने जवाब भी दिया है, वाड्रा ने कहा ' मुझे जानकारी नहीं थी कि तुम तक कुछ नहीं पहुंचा है। सुबह मैं इस मामले को देखता हूं और मनोज मामले को निपटा लेगा। जल्द ही मैं भी लंदन में होऊंगा। तुम ध्यान रखना। चियर्स।' यहां मनोज का मतलब मनोज अरोरा से है। 

4. इस संपत्ति में मरम्मत का काम पूरा कराने के बाद भंडारी ने इस संपत्ति को  स्काई लाइट इनवेस्टमेंट एफजेडई, दुबई को बेच दिया। यह बड़ा ही रोचक है कि वाड्रा के स्वामित्व वाली कंपनी का नाम स्काई लाइक हॉस्पिटैलिटी है। हालांकि वाड्रा की कंपनी की तरह ही लगने वाली स्काई लाइट इनवेस्टमेंट एफजेडई का मालिकाना हक सीसी थंपी के पास है। 

अब दिलचस्प लिंक यह है कि थंपी रॉबर्ट वाड्रा के पुराने मित्र हैं और  दोनों दशकों से एक-दूसरे को जानते हैं। इस संपत्ति को 25 जून, 2010 को 96,99,980 यूएई  दिरहाम या 1.9 मिलियन पाउंड में बेचा गया। यह राशि भंडारी के स्वामित्व वाली कंपनी मैसर्स सेनटेक इंटरनेशनल के खाते में 30 जून, 2010 को पहुंची। 

5. ईडी के दस्तावेज के मुताबिक, इस पैसे को मैसर्स फर्चर की ट्रेडिंग कंपनी, मैसर्स च्वॉइस प्वाइंट ट्रेडिंग और मैसर्स जैन ट्रेडिंग को भुगतान करने के लिए बाहर निकाला गया। 

6. मामले में एक और दिलचस्प  खेल हुआ है। स्काई लाइट इनवेस्टमेंट एफजेडई, दुबई का नाम 30 मार्च, 2013 को बदलकर मैसर्स मे फेयर इनवेस्टमेंट एफजेडई कर दिया गया। उस समय यूपीए-2 की सरकार थी। यह बदलाव पिछली तारीख यानी 8 सितंबर, 2011 से प्रभावी किया गया। 

7. एक और दिलचस्प मामले में सीसी थंपी ने अपनी कंपनी स्काई लाइट इनवेस्टमेंट एफजेडई, जिसका नाम बदलकर मैसर्स मे फेयर इनवेस्टमेंट एफजेडई हो गया, की 100% शेयर होल्डिंग 1,50,000 दिरहाम की वैल्यू वाले एक शेयर के बदले अपनी सौतेली बहन वी चेरी ग्रीवर के बेटे को ट्रांसफर कर दी। 

8. लंदन में ब्रायंसटन स्क्वॉयर स्थित 12 एलॉरटन हाउस इस समय स्काई लाइट इनवेस्टमेंट एफजेडई के पास है। 

9. कंपनी का गोलमाल यहीं नहीं थमता। रॉबर्ट वाड्रा के करीबी मित्र के स्वामित्व वाली का नाम ठीक वैसा ही है, जैसा भारत में वाड्रा की कंपनी का है। इस कंपनी का इस्तेमाल मरम्मत के लिए लंदन की संपत्ति खरीदने की खातिर हुआ। ये सारा भुगतान कथित तौर पर रॉबर्ट वाड्रा ने किया। खास बात यहै ह कि कंपनी का खाता 2009 में खुला यानी पेट्रोलियम डील से कुछ समय पहले। 

10.  ईडी के दस्तावेज के मुताबिक स्काई लाइट इनवेस्टमेंट एफजेडई (मे फेयर इनवेस्टमेंट एफजेडई) कोई बिजनेस नहीं करती। इस कंपनी का खाता 1,50,000 दिरहाम में खोला गया था। ईडी के मुताबिक, कंपनी ने साल दर साल भारी निवेश का दावा किया है। यानी एक शेल कंपनी बनाकर उसका मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। 

11. ईडी के मुताबिक, कंपनी के डिपॉजिट देखने से यह एक शेल कॉर्पोरेशन नजर आती है। कंपनी के खाते ( 0085495727) में दो संपत्तियों की खरीद से पहले काफी राशि जमा की गई। इसमें ब्रायंसटन स्क्वॉयर स्थित संपत्ति और दुबई में विला ई-74 की खरीद शामिल है।