महाराष्ट्र के गढ़चिरौली नक्सलियों ने फिर देश के 15 सिपाहियों की जान ले ली। ये सभी जवान महाराष्ट्र पुलिस के विशेष कमांडो दस्ते सी-60 का हिस्सा थे। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि लाल आतंक का इलाका सिकुड़ रहा है। इससे भन्नाए नक्सली इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि लाल आतंक के खिलाफ एक मुक्कमल जंग लड़ी जाए।

इस समय देश के अर्धसैनिक बल विभिन्न राज्यों में चुनाव ड्यूटियों में तैनात हैं। इससे देश सुरक्षा थिंकटैंक को 25 दिन का समय मिल जाता है कि वह नक्सलियों के खिलाफ एक सामूहिक मारक रणनीति को तैयार करें। इसमें कई राज्यों द्वारा नक्सलियों के सामूहिक खात्मे के लिए अभियान शुरू करना भी शामिल है। क्या है नक्सलियों का इलाज? ‘माय नेशन’ की पड़ताल। 

सामूहिक अभियान

नक्सली समस्या का जड़ से खत्म करने के लिए सेना की अगुवाई में एक संयुक्त अभियान कारगर कदम हो सकता है। इसमें केंद्रीय बलों और विशेष पुलिस बलों को साथ जोड़ा जा सकता है। इस अभियान को नौ नक्सल प्रभावित राज्यों छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, बंगाल, आंध्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में एक साथ शुरू कर नक्सलियों का खात्मा किया जा सकता है।
 
तकनीक, ड्रोन और नए हथियारों का इस्तेमाल
 
नक्सलियो के खिलाफ चलाए जाने वाले किसी भी अभियान को बेहतर सैटेलाइट इमेजिंग से लैस किए जाने की जरूरत है। दूसरी तकनीकों की भी मदद लेनी होगी। नक्सलियों की आवाजाही का पता लगाने के लिए ड्रोन का उपयोग एक बेहतर विकल्प हो सकता है। सुरक्षा बलों और जरूरी सामान को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने तथा निगरानी के लिए ज्यादा से ज्यादा हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। हालांकि देश के अंदर नक्सलियों पर हवाई हमले और बमबारी का कुछ लोग फायदा उठा सकते हैं। इसे लोग में अलगाव पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। नक्सल प्रभावित इलाकों में नाइट विजन और जंगली इलाकों में बेहतर उपकरणों की तैनाती करनी होगी। 

खुफिया सूचना जुटाने के लिए ज्यादा स्थानीय लोगों की भर्ती
 
नक्सलियों की मूवमेंट का पता लगाने के लिए स्थानीय लोगों का खुफिया दस्ता तैयार करना होगा। इसमें युवाओं को शामिल करने की जरूरत है। महाराष्ट्र का बहुचर्चित सी-60  स्क्वॉड ऐसे स्थानीय लोगों से ही बना है, जिन्हें नक्सली इलाकों के बारे में ज्यादा समझ है।   

सड़क और मोबाइल संपर्क को रफ्तार देनी होगी
 
यह भी एक हकीकत है कि जहां भी सड़कें पहुंची हैं, वहां से माओवाद का दंश खत्म हो गया है। दंतेवाड़ा  आज तेजी से एजुकेशन हब में बदलता जा रहा है। यहां महिलाओं के लिए हॉस्टल, कॉलेज और दूसरे संस्थान हैं। यही वजह है कि नक्सली हकीकत को महसूस करते हुए सड़क बनाने वालों को निशाना बनाते रहते हैं।  
 
शहरी नक्सलियों पर शिकंजा और सप्लाई चेन काटनी होगी
 
लाल आतंक को खाद-पानी देने का काम शहरों में बैठे नक्सली करते हैं। ये लोग शिक्षण संस्थानों, मीडिया और बौद्धिक संस्थानों से ऑपरेट करते हैं। इन लोगों का काम अलगाववाद को नैतिक और बौद्धिक समर्थन उपलब्ध कराना है। हाल ही में भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में हुई गिरफ्तारियों ने इनकी गहरी साजिश का पर्दाफाश किया है। अब यह सामने आ चुका है कि कैसे ये लोग फंडिंग की व्यवस्था करते और देश के अंदर तथा बाहर काम करते हैं। इन लोगों को पीएम की हत्या की साजिश तक रचने से गुरेज नहीं है। इन अर्बन नक्सलियों की पैसे और हथियारों की सप्लाई चैन को काटने की जरूरत है। इन लोगों के आईएसआई से रिश्ते भी पूर्व में बाहर आ चुके हैं। 

सुरक्षा बलों के अभियान के हीरो, मुखबिरों का सम्मान और वित्तीय मदद 

अगर कोई अपनी जान को जोखिम में डालकर लाल आतंक के खिलाफ लड़ता है तो उसे इसका ईनाम भी मिलना चाहिए। नक्सल रोधी अभियानों के हीरो का सम्मान होना बहुत जरूरी है। इससे दुर्गम नक्सली इलाकों में काम करने वाले सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ता है। सुरक्षा बलों का नेतृत्व ऐसे लोगों को करना चाहिए, जो उन्हें प्रेरित कर सकें। वरिष्ठों की राजनीति और मनोबल में कमी का खमियाजा कोबरा फोर्स जैसे एलीट बल को भी उठाना पड़ा है। इस परिस्थिति को बदलने की बहुत आवश्यकता है।