स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रक्षा मंत्रालय की ओर से एक बड़ी पहल की गई है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने रक्षा उपकरणों का उत्पादन करने वाली देश की सरकारी और निजी कंपनियों को विदेशी विक्रेताओं के समान अवसर देने का फैसला किया है। यह फैसला विशेष रूप से परीक्षण और हथियार प्रणालियों की खूबियों (स्पेशिफिकेशन) को लेकर लिया गया है। यानी विदेशी विक्रेताओं से भी उन्हीं तकनीकी खूबियों की मांग की जाएगी, जिनकी उम्मीद स्वदेशी कंपनियों से की जाती है। साथ ही दोनों के उपकरणों का परीक्षण भी एक जैसे हालात में होगा।

नरेंद्र मोदी सरकार के समक्ष स्वदेशी उत्पादकों की ओर से यह बात रखी गई थी कि खरीद प्रक्रिया के दौरान उनके साथ भेदभाव होता है। इसके बाद ही यह फैसला लिया गया है। 

सरकार के सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया कि हाल ही में ऐसे इनपुट मिले थे कि बंगाल की खाड़ी में नौसेना के लिए तैयार किए गए एक स्वदेशी उपकरण का परीक्षण ऐसी जगह कराया गया, जहां बहुत अधिक मात्रा में सीवर का पानी था। वहीं इसी तरह के विदेशी उपकरण का परीक्षण भूमध्य सागर में तुलनात्मक रूप से साफ पानी वाली जगह पर किया गया।  

जब संबंधित अधिकारियों से स्वदेशी उत्पादकों के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर सवाल पूछा गया तो वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। 

यही वजह है कि रक्षा मंत्री ने विदेशी और स्वदेशी उत्पादकों को परीक्षण के लिए एक समान अथवा तुलनात्मक परिस्थितियां उपलब्ध कराने का फैसला किया है, क्योंकि जो भी उपकरण खरीदे जाने हैं, उनका इस्तेमाल भारतीय भूभाग पर होना है न कि विदेशी जमीन पर। 

स्थानीय उत्पादकों की मदद के लिए उठाए गए एक अन्य महत्वपूर्ण कदम में सरकार ने तय किया है कि किसी भी हथियार प्रणाली के लिए भारतीय और विदेशी उत्पादकों की ओर से दी जाने वाली खूबियों में कोई अंतर नहीं होगा। स्थानीय उत्पादकों में देश की प्रमुख अनुसंधान एजेंसी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) शामिल है। 

सूत्रों के अनुसार, हाल ही में ऐसे मामले सामने आए, जिनमें भारी तोपों के लिए जो विशेष उपकरण विदेशी विक्रेताओं से खरीदे गए वह स्वदेशी विक्रेताओं के समक्ष रखी गई मांग की तुलना में काफी हल्के थे। 

डीआरडीओ के पूर्व प्रवक्ता रवि गुप्ता ने इसके लिए स्वदेशी अर्जुन टैंक और रूस से आयात किए गए टी-90 टैंक का हवाला दिया। उन्होंने बताया, 'डीआरडीओ को उच्च दर्जे की सुरक्षा और गति वाले स्वदेशी अर्जुन टैंक विकसित करने के लिए कहा गया। इसमें अन्य खूबियों के साथ चलते समय गोला दागने की क्षमता पर ज्यादा जोर दिया गया। वहीं रूस से खरीदी गए टी-90 टैंक की खूबियां तुलनात्मक रूप से कम थीं। अर्जुन टैंक के मुकाबले टी-90 टैंक में चलते समय गोला दागने जैसे अन्य खूबियां नहीं हैं।'