राफेल विमान सौदे को लेकर राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस द्वारा फैलाए जा रहे झूठ को सीएजी रिपोर्ट ने आईना दिखा दिया है। सीएजी की रिपोर्ट में एनडीए के शासनकाल में की गई राफेल डील को यूपीए के समय में किए जा रहे सौदे से बेहतर और सस्ता बताया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि वायुसेना को यह विमान यूपीए द्वारा निर्धारित समयसीमा से पांच महीने मिलेगा। 

राहुल गांधी ने इस सौदे की निर्णय प्रक्रिया, विमान की कीमत और ऑफसेट पार्टनर को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। सीएजी द्वारा अपनी रिपोर्ट में राहुल के आरोपों को खारिज कर दिए जाने से काफी पहले सुप्रीम कोर्ट भी राफेल सौदे की प्रक्रिया को सही बता चुका है। इन्हीं तीन मुद्दों पर फैसला देते हुए शीर्ष अदालत ने कांग्रेस के दावों को आधारहीन बताया था। साथ ही कहा था कि राफेल सौदे की जांच करने की कोई जरूरत नहीं है। 

एक नजर उन घटनाओं पर जहां राफेल को लेकर राहुल गांधी बेनकाब हुए -

दावा 1 - यूपीए की डील मोदी सरकार के सौदे से बेहतर 

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि पीएम मोदी का यह दावा कि एनडीए की डील यूपीए-2 की डील से बेहतर थी, कहीं नहीं टिकता। राहुल ने एक ट्वीट में कहा, 'पीएम मोदी प्रक्रिया को बाइपास कर की गई राफेल डील को बेहतर बताने के लिए दो बातों का हवाला देते हैं - पहला- बेहतर दाम  और दूसरा जल्द आपूर्ति। हालांकि हिंदू अखबार ने अपने खुलासे में उनके इन दावों को ध्वस्त कर दिया है।'

हकीकतः सीएजी की ओर से संसद में पेश की गई राफेल सौदे की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को लेकर किए गए बदलावों में भी सरकार ने 17.08% बचाए हैं। इंजीनियरिंग सपोर्ट पैकेज और परफॉर्मेंस आधारित लॉजिस्टक्स में सौदा 6.54% महंगा है। लेकिन कुल सौदे पर नजर डालें तो 2007 में यूपीए सरकार के समय राफेल को लेकर जो सौदा किया जा रहा था उससे मोदी सरकार के दौरान की जा रही डील 2.86% सस्ती है। 

दावा 2 - रक्षा खरीद प्रक्रिया में एनडीए सरकार ने स्टैंडर्ड क्लॉज हटाया

राहुल गांधी ने 'द हिंदू' में छपी रिपोर्ट के हवाले से दावा किया कि राफेल सौदे में रक्षा खरीद प्रक्रिया के स्टैंडर्ड क्लॉज पर सरकार ने छूट दी। इसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ क्लॉज और एस्क्रो एकाउंट के जरिये भुगतान शामिल था। अखबार में दावा किया गया कि 36 राफेल विमानों की खरीद में दसॉल्ट एवियेशन को बड़ी छूट दी गई।

हकीकतः रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, राफेल सौदे पर मोलभाव करने वाली टीम ने डीपीपी-2013 के प्रावधानों के अनुसार काम किया। यानी जिन प्रावधानों के तहत सौदे पर आगे बढ़ा गया वह कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के समय में बने थे। रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों का दावा है कि एनडीए स्टैंडर्ड क्लॉज से नहीं हटा बल्कि यूपीए ने 2013 में एक नीति बनाई थी, जो पूर्व में बने नियमों का पालन नहीं करती थी।  तब एके एंटनी देश के रक्षा मंत्री थे। नई नीति में यह व्यवस्था की गई कि सौदा दो सरकारों के बीच होगा और मित्र देशों के साथ पारस्परिक समझौते वाले प्रावधान अमल में लाए जाएंगे।

दावा 3 - रक्षा मंत्रालय की आपत्तियों को नजरअंदाज किया गया

'द हिंदू' अखबार ने 2015 के रक्षा मंत्रालय के एक आंतरिक नोट के हवाले से दावा किया था कि फ्रांस के साथ किए गए इस सौदे में मोदी सरकार ने उनकी आपत्तियों को नजरअंदाज कर 'समानांतर मोलभाव' किया। हालांकि अखबार ने इस नोट के एक ही हिस्से का प्रकाशन किया था। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पहली मार्च, 2015 को रक्षा सचिव जी मोहन कुमार ने तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से राफेल सौदे में पीएमओ की दखलअंदाजी को लेकर चिंता जताई थी। 

हकीकतः दरअसल, इस रिपोर्ट में कुछ तथ्यों को जाने-अनजाने छिपाया गया। इसी पत्र में पर्रिकर के हाथ से लिखा एक रिमार्क भी था। लेकिन उसका जिक्र अखबार ने नहीं किया। अपने जवाब में 11 जनवरी 2016 को पर्रिकर ने कहा था, 'शिखर बैठक के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय और फ्रांस का राष्ट्रपति कार्यालय पूरे मामले की प्रगति पर लगातार नजर बनाए हुए है। पैरा 5 में जरूरत से अधिक प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है। रक्षा सचिव प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव से बातचीत कर मामले को सुलझाएं।'

दावा 4 - अनिल अंबानी के मध्यस्थ के तौर पर काम कर रहे पीएम मोदी

राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें अनिल अंबानी का 'मिडिलमैन' बताया। राहुल ने एक ईमेल का हवाला देते हुए कहा कि पीएम मोदी के फ्रांस दौरे में राफेल सौदे की घोषणा 10 दिन पहले अनिल अंबानी वहां गए थे और फ्रांसीसी रक्षा मंत्री से मुलाकात की थी। राहुल ने दावा किया कि एमओयू साइन होने से पहले ही इसकी सूचना अनिल अंबानी को दे दी गई। पीएम ने सरकारी गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन कर देश की  सुरक्षा के खिलवाड़ किया है। उनके खिलाफ आपराधिक मामला बनता है। 

हकीकतः राहुल गांधी जिस ईमेल का हवाला देकर पीएम मोदी पर गंभीर आरोप लगा रहे थे वह रिलायंस और एयरबस के बीच एक हेलीकॉप्टर सौदे को  लेकर थी, राफेल डील को लेकर नहीं। रिलायंस डिफेंस मेक इन इंडिया के तहत रक्षा हेलीकॉप्टर के निर्माण के लिए एयरबस से बातचीत कर रही थी। 

दावा 5. सीएजी ने रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी

राहुल की ओर से सीएजी राजीव महर्षि पर भी सवाल खड़े किए गए। कांग्रेस का कहना है कि जब राफेल सौदा हुआ तो वह वित्त मंत्रालय में सचिव (आर्थिक मामले) थे। वह इस फैसले की प्रक्रिया से कहीं न कहीं जुड़े हुए थे। ऐसे में वह निष्पक्ष रिपोर्ट नहीं दे पाएंगे।  राहुल गांधी की ओर से सीएजी के लिए 'चौकीदार ऑडिटर जनरल' शब्द का इस्तेमाल किया गया। 

हकीकतः सीएजी राजीव महर्षि ने राफेल डील को लेकर रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपी। कांग्रेस कोई भी ऐसा दस्तावेज पेश नहीं कर पाई जो यह साबित करता हो कि महर्षि तक राफेल सौदे की कोई फाइल पहुंची थी। या वह किसी भी तरह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर इस सौदे की प्रक्रिया में शामिल थे।