देहरादून से हरीश तिवारी की रिपोर्ट

 उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का लंबी बीमारी के बाद बृहस्पतिवार को निधन हो गया। वह 93 साल के थे। वह दिल्ली के मैक्स अस्पताल में कई दिनों से वेंटिलेटर पर थे। वह चार बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। 18 अक्टूबर को ही उनका जन्म भी हुआ था। सन 1925 में वह नैनीताल के बलूटी गांव में जन्मे थे। तिवारी ने केंद्र में भी वित्त समेत कई मंत्रालयों का जिम्मा संभाला। वह उतराखंड की पहली निर्वाचित सरकार के पहले मुख्यमंत्री भी थे। उनकी राजनीति में एक समय ऐसा भी आया जब वह केंद्र में प्रधानमंत्री के प्रमुख दावेदारों में थे। लेकिन दुर्भाग्य से चुनाव हार गए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तिवारी के निधन पर शोक जताया। पीएम ने अपने ट्वीट में लिखा, 'एन डी तिवारी को अपने प्रशासनिक कौशल के लिए याद किया जाएगा।'

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तिवारी के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं नारायण दत्त तिवारी जी के परिवार व प्रियजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं और ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं। 

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी तिवारी को गांधी परिवार का करीबी बताकर याद किया।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी एनडी तिवारी के निधन में दुख प्रकट किया है।

तिवारी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में माने जाते थे। विकास को लेकर उनकी एक छवि बनी हुई थी। लिहाजा कांग्रेस नेतृत्व ने उन पर हमेशा विश्वास जताया। कहा जाता है कि जब उत्तर प्रदेश की कमान कांग्रेस नेतृत्व ने अन्य नेताओं को दी तब से ही राज्य में कांग्रेस का पतन शुरू हो गया। यूपी जैसे बड़े प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री के पद पर रहे तिवारी 1990 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन नैनीताल संसदीय सीट से वह मात्र 800 वोट से चुनाव हार गए और प्रधानमंत्री की कुर्सी नरसिम्हा राव को मिली। 

1994 में कांग्रेसी नेताओं से मतभेद होने के बाद उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर वरिष्ठ कांग्रेसी अर्जुन सिंह, मोहसिना किदवई व कुछ सांसदों को साथ लेकर आल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) के नाम से नई पार्टी खड़ी कर दी। लेकिन राजनीति में वह मुकाम उन्हें नहीं मिल सका जो उन्होंने पहले हासिल किया था। कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के संभालने के बाद वह दो साल के भीतर ही कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 के लोक सभा चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इसे किस्मत देखिये, जब सभी कांग्रेस चुनाव हार रहे थे तब तिवारी चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंच गए। इसके बाद 1999 में फिर से वे लोकसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए।

इसके बाद उत्तराखंड राज्य बनने के बाद राज्य में 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त किया। जबकि उस वक्त इस पद के लिए तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत प्रमुख दावेदार थे। तिवारी ने 2002 से लेकर 2007 तक राज्य की कमान संभाली। इस दौरान उन्होंने राज्य के उधमसिंह नगर और हरिद्वार में औद्योगिक ईकाइयों को स्थापित किया। उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई कार्य किए।

तिवारी का विवादों से भी नाता रहा। मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान उत्तराखंड में कांग्रेसियों को थोक में लालबत्तियां बांटकर उन्हें राज्यमंत्री स्तर का दर्जा दिए जाने के लिए भी तिवारी काफी चर्चित रहे। लेकिन कांग्रेस आलाकमान के आशीर्वाद के कारण उनकी कुर्सी बची रही। इसी को मुद्दा बनाकर भाजपा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की। इसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें आंध्रप्रदेश का राज्यपाल बनाया तो वहां भी वह विवादों में रहे। इस दौरान उनकी एक सीडी काफी चर्चित हुई। इसके बाद उन्हें राज्यपाल के पद से हटा दिया गया। हाल ही के दिनों में उनकी भाजपा के साथ नजदीकियां सुर्खियां बनीं। उससे पहले यूपी की पिछली सपा सरकार की उन्होंने जमकर तारीफ की थी। उसके बाद सपा सरकार ने उनके बेटे रोहित शेखर को राज्यमंत्री का दर्जा दिया था।  

केस होने पर माना था रोहित को बेटा

वर्ष 2008 में रोहित शेखर ने उन्हें जैविक पिता बताते हुए कोर्ट में मुकदमा कर दिया था। इस पर कोर्ट ने डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया तो एनडी तिवारी ने अपना सैंपल ही नहीं दिया। बाद में कोर्ट के आगे नतमस्तक होते हुए तिवारी ने जहां रोहित को कानूनी रूप से बेटा मानते हुए संपत्ति का वारिस बनाया, वहीं उनकी मां उज्जवला से 88 साल की उम्र में शादी की। 

तिवारी का राजनीतिक जीवन

नारायण दत्त तिवारी सबसे पहले 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट से विधानसभा सदस्य बने। उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर 1957, 1969, 1974, 1977, 1985, 1989 और 1991 में विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। दिसंबर 1985 से 1988 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। तिवारी पहली बार 1976 से अप्रैल 1977, दूसरी बार तीन अगस्त 1984 से 10 मार्च 1985 और तीसरी बार 11 मार्च 1985 से 24 सितंबर 1985 और चौथी बार 25 जून 1988 से चार दिसंबर 1989 तक उप्र के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा 2002 से 2007 तक वह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। इसके साथ ही वह 1969, 1970, 1971-1975 में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री के पद पर भी रहे। तिवारी जून 1980 से अगस्त 1984 तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री। सितंबर 1985 से जून 1988 तक केंद्र में उद्योग, वाणिज्य, विदेश और वित्त मंत्री रहे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद वह 22 अगस्त 2007 से 26 दिसंबर 2009 तक आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के पद पर रहे।