भारतीय वायुसेना के बेड़े में अगले साल सितंबर तक पहले राफेल लड़ाकू विमान को शामिल करने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। भारत ने सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ 36 विमानों की खरीद के लिए सौदा किया है। इसके लिए फ्रांस को 25,000 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया है। 

वायुसेना के जंगी जहाजों के बेड़े में तेजी से आ रही कमी को ध्यान में रखते हुए भारत ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन के साथ 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए  7.89 बिलियन यूरो लगभग 59,000 करोड़ रुपये का सौदा किया है। 

सरकार के सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, 'भुगतान की योजना के अनुसार हमने फ्रांसीसी पक्ष को 25,000 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है। इसके लिए फ्रांस के साथ नियम और शर्तों का निर्धारण किया गया था।'

सूत्रों का कहना है कि इन  नियम और शर्तों के चलते वायुसेना कम से कम 15 से 29 प्रतिशत राशि बचाने में सफल रही है। यह बचत 40 प्रतिशत तक पहुंच सकती है लेकिन ये सब दूसरी शर्तों पर निर्भर करेगा। 

वायुसेना का कहना है, जहां तक कीमतों, मेंटीनेंस की शर्तों, आपूर्ति का समय और दूसरे अन्य मुद्दे हैं, मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार वर्ष 2008 में कांग्रेस के समय पर की जा रही वार्ता से बेहतर सौदा हासिल करने में सफल रही है। 

हाल ही में, वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा था कि लड़ाकू क्षमता को बढ़ाने के लिए उन्हें राफेल विमानों की अत्यधिक आवश्यकता है। अगर ये विमान समय पर नहीं आते हैं, तो वायुसेना की स्क्वॉड्रन क्षमता के लिए कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। वायुसेना को अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए जंगी जहाजों के 42 स्क्वॉड्रन यानी बेड़े की जरूरत होती है लेकिन इस समय वायुसेना महज 31 से काम चला रही है।  

उधर, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस राफेल सौदे को लेकर सरकार पर अनिल अंबानी की रिलायंस के लिए पक्षपात करने का आरोप लगा रही है, ताकि कंपनी को 3,000 करोड़ रुपये का ऑफसेट करार मिल सके। हालांकि केंद्र और फ्रांस की सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है।