रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मेक इन इंडिया' पहल को बड़ी सफलता दिलाई है। डीआरडीओ ने शनिवार को देश में ही विकसित मैन-पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (एमपी-एटीजीएम) का पहला सफल परीक्षण किया। यह मिसाइल युद्ध के समय दुश्मन के टैंकों को नेस्तनाबूद करने में सैनिकों के बड़े काम आएगी। यह परीक्षण इसलिए भी अहम है क्योंकि भारतीय सेना को दो मोर्चों पर दुश्मन देशों यानी चीन और पाकिस्तान से मुकाबले को हर समय तैयार रहना है।
 
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में इस स्वदेशी मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया। सरकार के सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, सेना को फील्ड ट्रायल के लिए देने से पहले डीआरडीओ इस स्वदेशी हथियार प्रणाली के कुछ और परीक्षण करेगा। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के इस मिसाइल के सफल टेस्ट पर बधाई दी है।
 
सूत्रों के अनुसार, मैन-पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल संभवतः सेना की मुख्य एंटी टैंक मिसाइल होगी। भविष्य में किसी जंग की स्थिति में सेना को ऐसी 75,000 मिसाइलों की जरूरत होगी। ऐसे में देश में ही विकसित की गई यह मिसाइल काफी मददगार साबित हो सकती है।
 
सेना की आपातकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार इस्राइल से 2000 के करीब स्पाइक एंटी गाइडेड टैंक मिसाइल खरीदने पर विचार कर रही है। सेना की बाकी जरूरत को इस स्वदेशी मिसाइल से पूरा किया जा सकता है।
 
सूत्रों के अनुसार, सेना की जरूरत काफी ज्यादा है। हालांकि यह इस्राइल से भविष्य में खरीदे जाने वाले मिसाइल सिस्टम और डीआरडीओ द्वारा विकसित मिसाइलों से पूरी हो सकती है। इसके अलावा डीआरडीओ मैन-पोर्टेबल-एटीजीएम भी विकसित कर रहा है।
 
सेना को तीसरी पीढ़ी की ऐसी एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों की आवश्यकता है, जो 2.5 किलोमीटर की रेंज में दागो और भूल जाओ की क्षमता वाली हो। सेना अपनी सभी 38 इंफैंट्री बटालियनों और 44 मैकेनाइज्ड इंफैंट्री यूनिट को इससे लैस करना चाहती है।
 
सूत्रों के मुताबिक, एक ही समय में विदेश से खरीदने के साथ-साथ मेक इन इंडिया के तहत विकसित करने से राष्ट्रीय सुरक्षा जरूरतों में संतुलन बनाया जा सकेगा। साथ ही स्वदेशी इंडस्ट्री को प्रोत्साहन भी मिलेगा।
 
रक्षा मंत्रालय तीसरी पीढ़ी की एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल हासिल करने के लिए लंबे समय से इस्राइल और अमेरिका से बात कर रहा था। पुराने सौदे के तहत स्पाइक मिसाइल को लेकर कोई बात नहीं बनी। यह सौदा करीब 3,000 करोड़ रुपये के करीब का होना था।
 
सरकार ने 5,000 स्पाइक मिसाइल की खरीद के लिए किया गया पहले का सौदा भी रद्द कर दिया, क्योंकि इसके लिए काफी ज्यादा कीमत चुकाई जा रही थी।
 
इस बीच, एक अमेरिकी मिसाइल सिस्टम की पेशकश भी ठुकरा दी गई, क्योंकि खरीद के नियम एवं शर्तें भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया की गाइडलाइन के अंतर्गत फिट नहीं बैठ रही थीं।