नई दिल्ली। झारखंड में हुए विधानसभा परिणाम से साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी के हाथ से एक और राज्य निकल गया है। इस चुनाव में भारत के स्थानीय मुद्दों के साथ ही धारा 370,राम मंदिर और नागरिकता कानून कोई काम नहीं आए। फिलहाल ये भाजपा के लिए एक बड़ी चेतावनी है।

भाजपा के लिए झारखंड की हार एक सबक बन गई है। क्योंकि इस हार का असर अगले साल बिहार और दिल्ली में भी पड़ सकता है। क्योंकि झारखंड चुनाव से पहले केन्द्र की भाजपा सरकार ने कई बड़े फैसले किए थे, जिसमें अनुच्छेद 370 हटाना, राममंदिर और नागरिकता कानून थे। लेकिन ये बड़े मुद्दे भी राज्य में भाजपा की सरकार को नहीं बचा पाए। हालांकि इस हार के पीछे राज्य के गैर आदिवासी मुख्यमंत्री रघुवर दास की कार्य प्रणाली भी अहम मानी जा रही है।

अगर सभी भाजपा राज्यों की सरकारों का  प्रदर्शन देखें तो झारखंड एक ऐसा राज्य था जहां पर भाजपा सरकार का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। हालांकि चुनाव से पहले भाजपा नेतृत्व ने यहां पर मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बदला। राज्य में आदिवासी और गैर आदिवासी मुख्यमंत्री एक बड़ा मुद्दा रहा था। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने इसको दरकिनार कर दिया। जिसका परिणाम सबके सामने है। फिलहाल भाजपा के लिए इस हार के कई मायने हैं। भाजपा पिछले एक महीने में दो राज्यों को हार गई है जबकि एक राज्य में वह सरकार तो चला रही है लेकिन सहयोगी दलों के साथ।  राज्य में मिली हार के बाद भाजपा नेतृत्व इसके  कारणों पर मंथन करने में जुटी है।

क्योंकि पार्टी को उम्मीद थी कि वह 35 सीटें आसानी से ले आएगी। लेकिन पार्टी महज 26 सीटों पर ही सिमट गई है। हालांकि राजनीति के जानकारों का कहना है कि झारखंड में सभी विपक्षी दलों ने मिलकर चुनाव लड़ और भाजपा और उसके सहयोगी चुनाव से पहले ही अलग हो गए। आजसू, जदयू और लोजपा ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा वहीं भाजपा के बागी नेता सरयू राय ने के कारण भी भाजपा को राज्य में शिकस्त मिली। इसके अलावा भाजपा राष्ट्रीय मुददों के जरिए स्थानीय मुद्दों को दबाना चाहती थी। लेकिन जनता ने स्थानीय मुद्दों पर ही वोट दिया। जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा।

जानकारों का कहना है कि  चुनाव में प्याज की बढ़ती कीमत,महंगाई दर में इजाफा, विकास दर में गिरावट जैसे कई मुद्दो के कारण भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा और विपक्ष ने इन मुद्दों को हथियार बनाया। जिसके कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। उनका कहना है कि अगर भाजपा सहयोगी दलों के साथ चुनाव लड़ती तो ये स्थिति नहीं होती है और भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में होती है।