सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों के खतना की कुप्रथा पर सवाल उठाए हैं। शीर्ष अदालत ने कहा  कि महिलाओं को उस स्तर तक वशीभूत नहीं किया जा सकता है, जहां उन्हें सिर्फ अपने पति को खुश करना होता है। इस तरह के कृत्य से किसी बच्ची के शरीर की संपूर्णता का उल्लंघन होता है। महिलाओं का खतना सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सकता कि उन्हें शादी करनी है। 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव पर रोक) समेत मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया और कहा कि किसी व्यक्ति को अपने 'शरीर पर नियंत्रण' का अधिकार है। पीठ इस कुप्रथा पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

पीठ ने तब आश्चर्य जताते हुए कहा, 'जब आप महिलाओं के बारे में सोच रहे हों तब आप रिवर्स गियर में कैसे जा सकते हैं।' पीठ ने कहा, 'चाहे यह (एफजीएम) कैसे भी किया जाता हो, मुद्दा यह है कि यह मौलिक अधिकारों और खासतौर पर अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है।' पीठ में न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल हैं। 

पीठ ने कहा कि यह जननांग पर आपके नियंत्रण के लिए आवश्यक है। यह आपके शरीर पर आपका नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी हैं। पीठ ने कहा कि महिलाओं को ऐसी कुप्रथा से वशीभूत किया गया है जो उन्हें ऐसे स्तर तक पहुंचाती है जहां उन्हें केवल 'अपने पतियों को खुश करना' होता है। 

केंद्र की ओर से उपस्थित अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार इस कुप्रथा के खिलाफ दायर याचिका का समर्थन करती है। अटॉर्नी जनरल  वेणुगोपाल ने कहा कि यह प्रथा आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध है। 42 देश इस पर रोक लगा चुके हैं। इनमें से 27 देश अफ्रीकी हैं। वहीं, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि किसी आपराधिक कृत्य की इजाजत सिर्फ इसलिए नहीं दे सकते कि वह प्रथा है। 

उधर, याचिका का विरोध कर रहे मुस्लिम समूह के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेजने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि यह एक धर्म की जरूरी प्रथा का मामला है, जिसकी समीक्षा की आवश्यकता है। इस पर पीठ ने पूछा कि किसी के जननांगों पर किसी दूसरे का नियंत्रण क्यों होना चाहिए? सुनवाई के दौरान जस्टिस वेणुगोपाल ने केंद्र सरकार के रुख को दोहराते हुए कहा कि इस प्रथा से बच्ची के कई मौलिक अधिकारों को उल्लंघन होता है। इससे भी अधिक खतने का स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। (पीटीआई इनपुट के साथ)