उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। क्योंकि थाना इंचार्ज(स्टेशन होल्डिंग ऑफिसर) जैसे जिम्मेदारी वाले अधिकारी बगावती तेवर में आते हुए दिख रहे हैं। 

गुडंबा के एसएचओ डी.के.शाही, अलीगंज के एसएचओ अजय कुमार यादव और नाका कोतवाली के एसएचओ परशुराम सिंह को काली पट्टी बांधकर विरोध करने के जुर्म में हटा दिया गया है। 
नाका के कांन्स्टेबल गौरव चौधरी, अलीगंज के कांन्स्टेबल जितेंद्र वर्मा और गुडंबा के कॉन्स्टेबल सुमित कुमार को सस्पेंड किया गया है। 

मीरजापुर और वाराणसी में दो बर्खास्त सिपाहियों को गिरफ्तार भी किया गया है।  खबर है कि कुछ महिला सिपाहियों को भ्रमित करते हुए वेतन वृद्धि के आंदोलन का झूठा बहाना करके काली पट्टी बंधवाकर फोटो खीचा गया था। लेकिन सच सामने आने पर इन महिला सिपाहियों ने माफी मांग ली है। 
  
लेकिन अमेठी के जामो थाने के इंस्पेक्टर के गजेन्द्र सिंह ने फेसबुक पर डिप्टी सीएम और कानून मंत्री को नसीहत दे डाली। जिसके बाद वहां के पुलिस अधीक्षक अनुराग आर्य ने उन्हें सस्पेंड कर दिया।  

कल तक डीजीपी ओमप्रकाश सिंह किसी तरह का असंतोष नहीं होने का दावा कर रहे थे। इसके बावजूद लखनऊ, सीतापुर, फैजाबाद और फिरोजाबाद में सिपाहियों ने शुक्रवार को काली पट्टी बांधकर विरोध जताया।जिससे नाराज होकर डीजीपी ने लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी को तलब कर लिया। 

मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव भी मामले के पल पल की जानकारी जुटाते हुए देखे गए। क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डीजीपी,मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव को बुलाकर मामले को संभालने के लिए चेतावनी जाहिर की है। 

एसएसपी लखनऊ कलानिधि नैथानी की भूमिका इस मामले में पहले भी सवालों के घेरे में आ चुकी है। विवेक तिवारी की हत्या के ठीक बाद जब कलानिधि नैथानी प्रेस कांफ्रेन्स करके आरोपी प्रशांत चौधरी को जेल भेज दिए जाने का ऐलान कर चुके थे। ठीक उसी समय वह खुलेआम मीडिया के सामने अपना बयान दर्ज करवा रहा था। 
 
पूरा मामला मुख्यमंत्री योगी और प्रशासनिक आलाधिकारियों के हाथ से फिसलता हुआ दिख रहा है। जमीनी स्तर पर काम कर रहे सिपाहियों के साथ साथ थाना इंचार्ज जैसे अहम अधिकारियों के बगावती तेवरों ने उनके हाथ पांव फुला दिया हैं। 
शुरुआत में तो मुख्यमंत्री ने मामले को संभालने की कोशिश में आनन फानन सामने आकर बयान दे दिया। लेकिन वह अपनी पुलिस को ही अन्याय का साथ नहीं देने के लिए समझा नहीं पा रहे हैं। 

यह मामला एक हाईप्रोफाइल मर्डर का है अन्यथा इसे दबा देने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। खुद यूपी के कानून मंत्री पहली एफआईआर में हत्यारोपी का नाम नहीं दर्ज करने पर आपत्ति जता चुके हैं। 
 
मुख्यमंत्री योगी की यह मुश्किल उनकी खुद की पैदा की हुई है, जो कि उनके प्रशासनिक अनुभव में कच्चे होने का सबूत है। उन्होंने यूपी पुलिस को एनकाउंटर पुलिस में बदल दिया था। जिसके बाद बेलगाम खाकी की बेरहम बंदूक ने योगी को ही संकट में डाल दिया है।