राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बेटे विवेक डोभाल ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जयराम रमेश और कारवां पत्रिका के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दायर किया है। 

यह मुकदमा इसलिए दर्ज किया गया है क्योंकि विवेक पर आरोप लगाए गए थे कि वह केमैन द्वीप पर कथित रुप से हेज फंड(निवेश निधि) का कारोबार चलाते है। 

विवेक डोभाल का कहना है कि ‘उन्होंने इसलिए यह केस इसलिए दर्ज कराया है क्योंकि उनके पिता से राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए उन्हें  बदनाम करने की कोशिश की गई’। 

विवेक ने जयराम रमेश को चुनौती दी है कि वह नेशनल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर बहस करने के लिए तैयार हैं। वह कांग्रेस नेता के आरोप लगाकर भागने की प्रवृत्ति का पर्दाफाश करना चाहते हैं। 

इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब जनवरी 16 2019 को कारवां मैगजीन में एक आलेख छपा जिसका शीर्षक था ‘द डी कंपनीज’। इस आर्टिकल को लेकर जयराम रमेश ने एक प्रेस कांफ्रेन्स भी की।

इस आर्टिकल में इस बात की ओर इशारा किया गया था कि हेज फंड(निवेश निधि) का इस्तेमाल काले धन को खपाने और शोधन करने के लिए किया जा रहा था। 
आर्टिकल में संकेत दिया गया कि विवेक ने मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी की घोषणा से 13 दिन पहले टैक्स हेवेन कंट्री केमैन आईलैण्ड में ‘जीएनवाई एशिया’ हेज फंड की स्थापना की।  

विवेक ने इन आरोपों से पूरी तरह निराधार बताते हुए अदालत में अपनी कंपनी की स्थापना की तारीख से लेकर बाद की सभी तारीखों का ब्यौरा दिया, जिनके मुताबिक कारवां मैगजीन में छपी रिपोर्ट की पोल खुल जाती है। 

विवेक ने माय नेशन को जानकारी दी कि ‘मैने औपचारिक रुप से फंड की स्थापना मार्च 2016 में की और दिसंबर 2016 में यह समाप्त हो गया। मैने अदालत में तारीखें दी हैं। लंदन में हुए एक वैध फंड मैनेजमेन्ट गतिविधि को नवंबर 2016 के दौरान हुए भारत में विमुद्रीकरण से जोड़ा जा रहा है। क्योंकि मेरे नाम के साथ डोभाल जुड़ा हुआ है।’

विवेक ने दावा किया कि उनके पास फंड 2013 में आया था, जब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि बीजेपी सत्ता में आएगी या फिर कभी भारत में विमुद्रीकरण किया जाएगा। 

जयराम रमेश ने दावा किया था कि यह फंड 8300 करोड़ का था जो कि एफडीआई के जरिए भारत में लाया गया। लेकिन विवेक ने अदालत में जो दस्तावेज दिए हैं उनके मुताबिक यह फंड 11 मिलियन डॉलर यानी लगभग 77 करोड़ रुपयों का था। 

विवेक ने जो दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं उनके मुताबिक वह फंड में निवेश करने वाले छह निवेशकों में से एक थे, जिसमें से एक निवेशक ने 91 फीसदी निवेश किया था। बाकी सब छोटे निवेशक थे। 

उन्होंने माय नेशन को बताया कि ‘मैने सभी नाम, विवरण, राशि और तारीख, निवेशकों द्वारा काटे गए चेक की डिटेल अदालत में जमा कर दी है। अदालत इन सभी की आय के स्रोत और उनके निवेश के आधार की जांच करेगी’

विवेक डोभाल ने तीन लाख डॉलर का निवेश किया और उनका शेयर 2.7 फीसदी का था। 

विवेक ने कहा कि अगर शुरुआती 77 करोड़ का निवेश 8300 करोड़ हो गया होता तो मैं इतिहास में दुनिया के सबसे सफल फंड मैनेजरों में गिना जाता। लेकिन मुझे पिछले दो सालों में बाजार की गतिविधियों की वजह से 20 फीसदी का नुकसान हुआ। फिलहाल फंड का एनएवी 9 मिलियन डॉलर का है। 

बड़े भाई शौर्य डोभाल के साथ कंपनी चलाने के आरोप पर विवेक ने कहा ‘जब मैं अपने कारोबार के शुरुआती चरण में था तब रिसर्च के लिए सिंगापुर में लोगों को भर्ती करना महंगा साबित हो रहा था। ऐसे में मेरे भाई ने मुझे काम करने के लिए अपना दफ्तर दिया, जहां मैं भारतीय कर्मचारियों के जरिए अपना रिसर्च का काम करवाता था।’

विवेक ने फंडिंग के कारोबार के लिए केमैन आयलैण्ड का चुनाव इसलिए किया क्योंकि इसके लिए गॉर्डियन कैपिटल ने सिफारिश की थी। 
 
विवेक ने मानहानि का जो केस दर्ज किया है उसमें कहा गया है कि ‘केमैन द्वीप ब्रिटेन की ओवरसीज टेरिटरी  का हिस्सा है; और शिकायतकर्ता ब्रिटेन का नागरिक है। केमैन आइलैंड्स, वास्तव में वैश्विक हेज फंडों के लिए सबसे लोकप्रिय गंतव्य है और जहां तक शिकायतकर्ता को जानकारी है यहां पर लगभग 11,000 हेज फंड सूचीबद्ध किए गए हैं।  जो कि कुल हेज फंड उद्योग का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा है। डिल और पर्लमैन के मुताबिक केमैन द्वीप पर दुनिया के ऑफशोर हेज फंड का 75 फीसदी हिस्सा आता है। जो कि एक अनुमान के मुताबिक 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर संपत्ति का आधा हिस्सा है। इसके साथ ही केमैन आइलैंड्स हेज फंड स्थापित करने के लिए अपेक्षाकृत सस्ता और कुशल क्षेत्र माना जाता रहा है।’

डोभाल जूनियर ने फंड घुमाने के आरोपों से भी इनकार किया है। उन्होंने कहा कि ‘मेरा कोई भी निवेशक भारत में व्यवसाय नहीं करता और भारत से किसी तरह का फंड नहीं जुटाया गया। 15 फीसदी या दो मिलियन डॉलर या 14 करोड़ रुपए से ज्यादा भारतीय बाजारों में निवेश नहीं किया गया। यहां तक कि यह कदम भी विशुद्ध व्यवसायिक कारणों से उठाया गया’

विवेक ने अदालत में बताया कि उनके फंड के केवाईसी की जांच 5 बड़ी वित्तीय संस्थानों द्वारी की गई। ‘नोमुरा इंटरनेशनल का चुनाव प्राइम ब्रोकर के तौर पर किया गया। जबकि वेल्स फार्गो इंटरनेशनल(फिलहाल एसएस एंड सी) का चुनाव प्रशासकों द्वारा किया गया। सिंगापुर के डीबीएस बैंक का चुनाव बैंकिंग सर्विस के लिए किया गया। जबकि प्राइस वाटरहाउस कूपर्स का चुनाव फंड के ऑडिटर के रुप में किया गया। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि सिर्फ सम्मानित और बड़े संस्थानों को ही फंड के काम के लिए चुना गया। इस बात पर भी जोर दिया गया कि ज्यादातर सेवा प्रदाताओं ने केवाईसी के कठोर नियमों का पालन किया और वह अपने अनुपालन रिकॉर्ड के लिए जाने जाते हैं।’

शिकायतकर्ता ने अदालत में अपने पिछले 18 साल का टैक्स रिटर्न और सैलरी स्लिप जमा की है, जिससे कि श्रीमान रमेश इन सभी की जांच कर सकें’। 

विवेक डोभाल का पूरा इंटरव्यू यहां देखें- 

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