भारतीय टेस्ट टीम आपको एक ऐसी कार की याद दिलाती है, जिसे खरीदने में आपने पैसे तो बहुत खर्च किए। लेकिन बाद में आपको पता चलता है कि यह तो स्टार्ट की ही नहीं हो रही है। 2008 के बाद अपने शुरुआती दिनों से मुरली विजय को भारतीय टीम में वीरेंद्र सहवाग-गौतम गंभीर की सलीमी जोड़ी के विकल्प के रुप में देखा जाता था। उन्होंने शुरु-शुरु में कुछ अच्छी पारिया खेली उनके खेल में निरंतरता होती थी, लेकिन बाद में उनके खेल में काफी गिरावट आई।

उन्होंने मुंबई में 2 साल और 27 पारी के बाद इंग्लैंड के खिलाफ अपने पुराने रुप में दिखे। उन्होंने लंबे समय के किसी विरोधी टीम के खिलाफ टेस्ट मैच में रन बनाया। मुरली विजय ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दो बार खेला है। इसके अलावा उन्होंने इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसी मजबूत टीमों के खिलाफ 20 पारियों में केवल एक अर्धशतक बनाया है। 2016 में मुंबई के बाद उन्होंने जो चार शतक लगाए वो सभी कमजोर टीमों- बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान के खिलाफ लगाया है।

अगर उनकी पिछली 10 पारियों का स्कोर देखे तो उन्होंने 20, 0, 18, 11, 0, 0, 6, 20, 105 (अफगानिस्तान के खिलाफ नए) और 25 बनाया है। भारतीय क्रिकेट टीम में मुरली विजय और केएल राहुल की मौजूदा सलामी जोड़ी का खराब फार्म टीम की परेशानी का कारण बन गया है। उन्होंने इस साल की शुरुआत में इंग्लैंड दौरे के दौरान शतक बनाया था, लेकिन उसके बाद उन्हें एक और शतक लगाने के लिए 29 पारियां और लगभग दो साल समय लगा। राहुल की समस्या यह है कि वह अर्द्धशतक बना रहे हैं, लेकिन लेकिन फिर अपना विकेट फेंक देते हैं।

एक समय उन्होंने 11 पारियों में नौ अर्द्धशतक लगाए थे, लेकिन अपने इन अर्धशतकों को बडे स्कोर में बदलने में कामयाब नहीं हो पाए। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब उनकी टीम को उनकी जरूरत थी, तो वह कोई बड़ा स्कोर करने में सफल नहीं हो पाए। अगर इस ओपनिंग जोड़ी की बात करें तो विजय और राहुल की दुनिया की सबसे खराब ओपनिंग जोड़ी बनते जा रहे हैं। दोनों की जोड़ी पिछली 26 पारियों में 543 रन बनाए है। इस आधार पर देखा जाए तो उनका ओपनिंग औसत 20.88 रहा है।

इन सबसे अलग भारत की सबसे बड़ी समस्या पृथ्वी शॉ की चोट है, जिन्होंने  वेस्ट इंडीज के खिलाफ घरेलू श्रृंखला में एक धमाकेदार शुरुआत की थी। निश्चित रूप से राहुल और विजय से टीम की जरुरत के हिसाब से संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं। वहीं शिखर धवन को सीरीज़ से बाहर करने के बाद  उन्हें वापस बुलाने से भारत टीम की बल्लेबाजी में गहराई की कमी दिखाई देगी। अगर आप टेस्ट डेब्यू करने वाले अफगानिस्तान के खिलाफ शतक लगाते हैं, तो धवन ने टेस्ट फिफ्टी जमाई थी।

पृथ्वी शॉ की जगह टीम में शामिल किए गए मयंक अग्रवाल ने रणजी ट्रॉफी के पिछले सत्र में 100 से अधिक की औसत से 1,160 रन बनाए जिसमें पांच शतक शामिल था। इस हिसाब से वह रन बनाने के मामले में सबसे आगे रहे। पिछले सीजन में घरेलू प्रतियोगिता में सबसे अधिक रन बनाने वाले अग्रवाल को विंडीज के खिलाफ राष्ट्रीय टीम में शामिल किया गया था, लेकिन पीठ की दर्द के कारण उन्हें बाहर होना पड़ा। अब, भारत दोनों ओपनरों के फ्लाफ होने के बाद अग्रवाल को अंतिम ग्यारह में शामिल होना लगभग तय माना जा रहा है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा की उनका ओपनिंग जोड़ीदार कौन होता है। चयनकर्ताओं ने फ़ैज़ फ़ज़ल को नज़रअंदाज़ कर दिया है, जो घरेलू स्तर पर काफी अच्छा स्कोर बना रहे हैं। पिछले रणजी ट्रॉफी सीजन में उन्होंने 912 रन के साथ, मयंक अग्रवाल के बाद दूसरे स्थान पर रहे। वह इस सीजन में भी शीर्ष पर रहे हैं, पहले ही नौ पारियों में 566 रन जमा कर चुके हैं।

अजिंक्य रहाणे ओपनिंग के लिए अच्छे खिलाड़ी हो सकते है। मुंबई के इस बल्लेबाज की तकनीक तेज और उछाल वाली विदेशी पिचों के लिए अच्छी है। उनका विदेशी धरती पर रिकॉर्ड खासकर दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में काफी अच्छा रहा है। इन देशों की पीच बल्लेबाज के कौशल और तकनीक को परखते हैं और यहा पर उन्होंने  50 से अधिक की औसत से 41 पारियों में 1547 रन बनाए हैं।  ऑस्ट्रेलिया में उनका औसत उनके करियर के औसत औसत से भी बेहतर है।

जब गेंद गेंद नई होती है और उसमें चमक होती है तो उस समय उनका खेल निखर कर सामने आता है। रहाणे से ओपनिंग कराने को लेकर उनके खिलाफ एक तर्क दिया जा सकता है कि उन्होंने अब तक टेस्ट में ऐसा नहीं किया है। हालांकि, उन्होंने जो किया है वह नंबर 3 और 4 पर बल्लेबाजी करते हुए किया है, लेकिन इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि जब भी टीम की ओपनिंग जोड़ी जल्दी आउट होती है तो उस समय 3 और 4 चार नंबर पर आने वाल बल्लेबाज को ओपनर भी भूमिका निभानी पड़ती है। रहाणे ने नंबर 3 पर खेलते हुए कई मौकों पर मैच के पहले ओवर में ही उन्हें बल्लेबाजी के लिए मैदान में उतरना पड़ा।

भारत के लिए शुरुआती जीत नई नहीं है। टेस्ट में सलामी बल्लेबाजों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। सलामी जोड़ी न केवल टीम को एक ठोस नींव देनी होती है बल्कि  बल्कि नई गेंद से चमक को कम करन होत है जिससे बाद में आने वाले बल्लेबाजों के लिए खेलना आसान हो जाए। सालामी जोड़ी के योगदान के बिना टीम बैकफुट पर चली जाती है जिससे उबरना आसान नहीं होता है।

सहवाग-गंभीर को छोड़कर, लंबे, लंबे समय से भारत के पास एक अच्छी सलामी जोड़ी नहीं है। शिव सुंदर दास, दीप दासगुप्ता, देवांग गांधी, वसीम जाफर, दिनेश कार्तिक, सदागोपन रमेश, आकाश चोपड़ा सहित कई लोग आए और गए यहां तक कि वीआरएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ के साथ भी प्रयोग किया गया।

हाल के दिनों में, विजय, राहुल और धवन के बीच प्रयोग करके देखा गया लेकिन सफल नहीं हो पाया है। अब भारत को दीर्घकालिक विकल्पों को धायन में रखते हुए जरुरत है मयंक अग्रवाल और पृथ्वी शॉ की जोड़ी को आगे बढ़ाने की। इसके अलावा इन दोनों के साथ रहाणे एक अच्छे विकल्प हो सकते हैं।