नई दिल्ली:  पाकिस्तान की संसद में मंत्री भारतीय नेताओं को उद्धृत कर रहे हैं, पाकिस्तानी मीडिया में नेताओं के बयान चल रहे हैं और उन पर बहस हो रही है कि देखो सारे नेता नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ हैं। हर विवेकशील भारतीय का दिल अपने नेताओं का यह आचरण देखकर रो पड़ा है। जब 28-29 सितंबर को थल सेना ने नियंत्रण रेखा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक किया तब भी ऐसा ही दृश्य था। विरोधी नेता प्रमाण मांग रहे थे। किसी ने फर्जिकल स्ट्राइक कहा तो किसी ने कुछ। 

सैन्य ऑपरेशन के महानिदेशक डीजीएमओ ने बाजाब्ता पत्रकार वार्ता करके सूचना दी कि हमने सर्जिकल स्ट्राइक किया है। देश के लिए इतना ही काफी होना चाहिए। भारत के अब तक की भूमिका को देखते हुए किसी को कल्पना नहीं थी कि वह ऐसा भी कर सकता है। उस एक कार्रवाई से एक बदले हुए आत्मरक्षा के लिए आक्रामक चरित्र वाले भारत का दुनिया को दर्शन हुआ था। लेकिन हमारे नेताओं राजनीति के लिए देश की यह छवि भी बर्दाश्त के योग्य नहीं थी। 

 मजे की बात देखिए कि अमेरिका, इजरायल, रुस जैसे देशों ने पता कर लिया कि सर्जिकल स्ट्राइक हुआ है, लेकिन भारत के विरोधी नेताओं ने आतंकवाद के विरुद्ध इतने साहसी और ऐतिहासिक कार्रवाई से पैदा उत्साह पर पानी फेरने की भूमिका निभाई। उड़ी में सोते हुए जवानों को जलाकर मार डालने से क्रोधित सेना ने अपना बदला ले लिया था जिसके बाद सबको साथ खड़ा होकर विजयोत्सव मनाना चाहिए था। यही व्यवहार इस समय भी अपेक्षित था। 

आखिर 1971 के बाद सोच-विचार कर योजनापूर्वक हमारे वायुयानों ने पहली बार केवल नियंत्रण रेखा नहीं अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार कर खैबर पखतूनख्वा तक जैश के ठिकानों पर बमबारी किया। 14 फरबरी को पुलवामा में 40 जवानों के आतंकवादी हमलों में शहीद किए जाने से उबलते देश को महसूस हुआ कि अब बदला ले लिया गया। इसके साथ यह विश्वास भी पैदा हुआ कि आगे जब भी आतंकवादी हमला हुआ और उसमें सीमा पार का हाथ नजर आया तो भारत ऐसा ही करेगा।
 
कल्पना करिए, यदि इस समय सारे राजनीतिक दल एकजुट रहते तो कैसा दृश्य होता। पाकिस्तान ही नहीं दुनिया को संदेश मिलता कि यह किसी एक सरकार की नहीं पूरे देश की लड़ाई है। पहले दिन तो सबने कह दिया कि वो सेना को सैल्यूट करते हैं। हालांकि उसमें भी राजनीति थी, क्योंकि लोकतांत्रिक देश होने के कारण फैसला राजनीतिक नेतृत्व करता है तो सेना उसको साकार करती है। 

सरकार ने सेना के सामने लक्ष्य दिया जिसे पूरा करने के लिए सेना ने समय और तरीका अपनी तैयारी के अनुसार चुना। तो सेना के साथ होना और सरकार की बात नहीं करने के पीछे भी राजनीति ही थी। उसके बाद 21 दलों की बैठक में सरकार के खिलाफ सेना के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए निंदा प्रस्ताव ही पारित कर दिया गया। यहीं से पूरा वातावरण विषाक्त होने लगा। फिर स्वनामधन्य नेता सामने आ गए। 

दिग्विजय सिंह मैदान में कूदे यह कहते हुए कि आपने 300 आतंकवादी मारे तो उसका सबूत दीजिए। जिस तरह अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मारने का सबूत दुनिया के सामने रख दिया वैसे ही भारत को भी रख देना चाहिए। दिग्विजय सिंह को पता नहीं कि अमेरिका में किसी ने भी तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा से सबूत नहीं मांगा था। उन्होंने एक बयान दे दिया और देश ने मान लिया। आज भी किसी को नहीं पता कि ओसामा को कहां दफनाया गया। किंतु वह एक व्यक्ति को मार डालने का मामला था जो एक घर में छिपकर परिवार के साथ रहता था, इसलिए उसका पूरा साफ वीडियो बनाना संभव था। 

भारत के 14 विमानों की कार्रवाई वैसी नहीं थी। हमें कहीं उतरकर किसी को मारना नहीं था। हमें तो आतंकवादी ठिकानों को बमबारी से ध्वस्त करना था। यद्यपि सेना के तीनों अंगों के अधिकारियों ने संयुक्त पत्रकार वार्ता में बताया गया कि हमने सबूत दे दिए हैं और यह निर्णय बड़े नेतृत्व को करना है कि उसे कब दिखाया जाएगा। किंतु उसे दिखाया ही जाए यह क्यों जरुरी है? यह तो आतंकवाद के खिलाफ आक्रामकता की शुरुआत है। ऐसे अनेक सैन्य अभियान चलेंगे। हमारा लक्ष्य सीमा पार आतंकवाद के केन्द्रों को नेस्तानाबूत करना है।
 
दिग्विजय के बाद कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, पी. चिदम्बरम, अजय सिंह, अरविन्द केजरीवाल.....जैसे नेता आज सबूत मांग रहे हैं कि आपने कितने आतंकवादी मारे इसे साबित करिए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो 28 फरवरी को ही सरकार से पूछा था कि वह एयर स्ट्राइक के स्थान की सटीक जानकारी दें और बताए कि कितने लोग मारे गए हैं। उनका कहना था कि अतंरराष्ट्रीय मीडिया का दावा है कि स्ट्राइक में कोई नुकसान नहीं हुआ है। ममता बनर्जी ने कहा कि देश को यह जानने का हक है कि बालाकोट में हवाई हमले के बाद वाकई क्या हुआ, क्योंकि कई विदेशी मीडिया ने खबर दी है कि हवाई हमले में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है।

 सिब्बल साहब ने कुछ अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों की रिपोर्ट और लेखों को ट्विट कर दिया। उन्होंने लिखा कि न्यू यॉर्क टाइम्स, लंदन स्थित जेन इन्फॉर्मेंशन ग्रुप, वॉशिंगटन पोस्ट, डेली टेलीग्राफ, द गार्डियन और रायटर्स जैसे इंटरनैशनल मीडिया में पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकियों को नुकसान की कोई खबर नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री से यह पूछना चाहता हूं कि क्या इंटरनेशनल मीडिया पाकिस्तान का समर्थन कर रही है? जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया पाकिस्तान के खिलाफ बोलती है तो आप खुश होते हैं। क्या उनका सवाल पूछना पाकिस्तान के सममर्थन के कारण है? उन्होंने कहा कि इंटरनेशल मीडिया कह रहा है कि कोई आतंकवादी नहीं मारा गया है और इसपर जवाब दिया जाना चाहिए। 

लेकिन भारत को जवाब क्यों देना चाहिए? क्या अंतर्राष्ट्रीय मीडिया हमारे वायुयान के साथ था? उसके पास सूचना के विशेष तंत्र हैं? आज मोदी विरोधी पत्रकारों की कमी है क्या? और कुछ रिपोर्ट और लेख तो उनमें भारतीयों के भी हैं जिनमें अरुंधति राय भी शामिल हैं। कपिल सिब्बल की नजर में इनकी विश्वसनीयता है लेकिन हमारी सेना की नहीं। 

पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम ने ट्वीट करके कहा कि भारतीय वायुसेना के वाइस एयर मार्शल ने हताहतों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया कि कोई नागरिक या सैनिक हताहत नहीं हुआ तो हताहतों की संख्या 300-350 किसने बताई? अगर हम चाहते हैं कि दुनिया इस पर विश्वास करे तो सरकार को विपक्ष पर निशाना साधने के बजाय इस दिशा में प्रयास करने चाहिए।  

नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि हम आतंकवादी मारने गए थे या पेड़ गिराने। सिद्धू ने पूछा-कितने मरे? सिद्धू ने ट्वीट कर पूछा 300 आतंकवादी मरे, हां या नहीं? क्या यह चुनावी हथकंडा है? विदेशी शत्रु से लड़ने के नाम पर हमारे लोगों से छल हुआ है। सेना का राजनीतिकरण बंद कीजिए। इसके आखिर में नवजोत सिंह सिद्धू ने लिखा ‘ऊंची दुकान, फीका पकवान।’ 

मध्य प्रदेश के सतना में कांग्रेस नेता अजय सिंह ने वायु सेना द्वारा पीओके में किए गए हवाई हमले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा, कुछ दिन पहले, पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) में बम गिराए गए। उन्होंने (प्रधानमंत्री) कहा कि बालाकोट में सबकुछ नष्ट हो गया है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट किया है कि हवाई हमले से वहां कुछ नष्ट नहीं हुआ है। आज नहीं, तो अगले 10 दिनों में, घटनाओं का पूरा क्रम खुद ही सामने आ जाएगा। 

इन नेताओं को पता नहीं कि ये क्या कर रहे हैं। राजनीतिक विरोध में इस सीमा तक न चले जाएं कि देश का विरोध करने लगें और देश के पराक्रम सेना की वीरता को दुनिया की नजर में झूठा बना दें। यही हो रहा है। वस्तुतः जब राजनीति में अदूरदर्शी और गैरजिम्मेवार नेताओं का वर्चस्व हो जाए तो ऐसी ही त्रासदी सामने आती है। 

मजे की बात देखिए कि ये नेता कह रहे हैं कि सेना का राजनीतिकरण नही किया जाए। यह क्या है? दिग्विजय सिंह ने कहा कि मैं सेना की कार्रवाई पर कोई सवाल नहीं खड़े कर रहा। तो किस पर सवाल खड़े कर रहे हैं? मोदी और निर्मला सीतारमण या अमित शाह तो लड़ाकू विमान उड़ाकर गए नहीं थे। सेना के पायलट गए थे। उनने कहा कि मिशन पूरा हुआ तो सरकार ने माना। उन्होंने जो कहा उसी आधार पर सरकार कोई बात कर सकती है। इसलिए आप मोदी सरकार या भाजपा को नहीं अपनी सेना पर संदेह पैदा कर रहे हैं। 

भारतीय वायुसेना के कारण भारत की जो धाक बनी है और उससे आतंकवादियों के अंदर जो भय पैदा हुआ है उसे आप खत्म करने पर तुले हैं। आप इससे बड़ी क्षति देश को पहुंचा ही नहीं सकते। इस तरह इनकी राजनीति मोदी या सरकार विरोधी नहीं  भारत विरोधी हो चुकी है। वायुसेना ने सरकार को बता दिया कि हमने खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में बालाकोट स्थित जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण और सभा केन्द्र के साथ पाक अधिकृत में मुजफ्फराबाद और चकोटी में भी जैश के आतंकी अड्डों को ध्वस्त कर दिया है। तो इसके सबूत मांगने या प्रश्न खड़ा करने की आवश्यकता क्या थी? 

अगर अमित शाह ने कहा कि 250 आतंकवादी मारे गए हैं तो आप उनसे सवाल करिए। हालांकि अमित शाह का बयान विपक्षी नेताओं के कार्रवाई के सबूत मांगने के बाद आए हैं। 

वास्तव में ये नेता एक साथ कई देश विरोधी पाप कर रहे हैं। इनमें देश की एकता को तोड़ने का पाप है तो सेना के मनोबल पर विपरीत असर डालने का भी और भारत को दुनिया की नजर में झूठा साबित करने की शर्मनाक हरकत तो है ही। ये जरा किसी सेना के जवान से जाकर पूछें कि उनके बयानों पर उसकी क्या प्रतिक्रिया है उनको पता चल जाएगा कि वे कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। 

इससे दुखद तथ्य क्या हो सकता है कि पाकिस्तान को सबसे बड़ी राहत इन नेताओं के बयानों से ही मिली है। कुछ पत्रकारों के ट्वीट ने भी पाकिस्तान सरकार को अपने अवाम के सामने बचाव का आधार दिया है। पाकिस्तान तो परेशान था कि जवाब दे तो कैसे? अपना पक्ष रखे तो कैसे? 

हालांकि 4 मार्च को कोयम्बटूर में वायुसेना प्रमुख बी. एस. धनोआ ने बिना राजनीति पर कुछ बोले इनकी बातों का करारा जवाब दे दिया। साथ ही उन्होंने जो कुछ कहा वह प्रमाणित करता है कि नेताओं की नासमझी और पाप से सेना के लक्ष्य और संकल्प पर कोई अंतर नही पड़ा है। उन्होंने साफ कहा कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई अभी जारी है। धनोआ से जब सवाल किया गया कि पाकिस्तान बालाकोट में आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाए जाने की बात को खारिज कर रहा है, तो उन्होंने कहा कि हमने टारगेट हिट करने का प्लान बनाया था, तो हमने टारगेट हिट किया है। कितने आतंकवादी मारे गए के सवाल के जवाब में वायुसेना प्रमुख ने कहा कि हम टारगेट हिट करते हैं, मानव शवों को नहीं गिनते। हम सिर्फ यह देखते हैं कि टारगेट हिट किया है नहीं। हां, हमने हिट किया। हमले में कितने लोग मारे गए ये गिनना वायुसेना का काम नहीं है। ये सरकार का काम है और इसका आंकड़ा सरकार ही देगी। धनोआ ने कहा कि हम ये देखते हैं कि जो टारगेट हमें दिया गया वो हिट हुआ या नहीं। अगर हम (एयरफोर्स) एक लक्ष्य को निशाना बनाने की योजना बनाते हैं तो उसे पूरा भी करते हैं। वरना वे (पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान) जवाब क्यों देंगे। अगर एयरफोर्स ने जंगलों में बम गिराए होते तो पाक ने जवाब नहीं दिया होता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसके बाद भी इन नेताओं की जुबान बंद नहीं हुई है। 

तो अब गेंद जनता के पाले में है। हमें ही इसका जवाब देना होगा। इस समय कोई पाकिस्तानी नेता अपनी सरकार के खिलाफ नहीं बोल रहा, अपनी सेना पर प्रश्न नहीं उठा रहा। पाकिस्तानी पत्रकार अपने देश के साथ खड़े हैं जबकि भारत के पत्रकारों का एक वर्ग उनको भारत विरोध करने की सामग्री प्रदान कर रहा है। 

मान लीजिए वहां एक भी आतंकवादी नहीं मरा। यह भी मान लीजिए कि जैश का भवन भी उम्मीद के अनुरुप नष्ट नहीं हुआ। तो क्या इससे इतनी बड़ी कार्रवाई का महत्व घट जाता है? उपग्रह की तस्वीरों तथा अलग-अलग एजेंसियों की सूचना के अनुसार उन स्थानों का लक्ष्य बनाया गया। कितनी क्षति हुई यह मुख्य बात है ही नहीं। मुख्य बात यह है कि आतंकवादी हमले के बाद वायुसीमा पार कर कार्रवाई का साहसी निर्णय करके उसे साकार किया गया। पाकिस्तान के पास एक सशक्त सेना है जो आतंकवादियों को संरक्षण देती है यह जानते हुए जवाब देने का यह कदम ही अपने-आपमें भारतीयों के लिए गर्व का विषय होना चाहिए। 

हमारी सेना उनकी सीमा में गई और यहां से एक शुरुआत हुई है। पाकिस्तान के अंदर भय पैदा हुआ है, आतंकवादी संगठनों में आतंक पैदा हुआ है कि भारत कभी भी हमें निशाना बना सकता है, पाक सेना को अपनी पूरी नीति और रणनीति नए सिरे से निर्धारित करनी पड़ रही है। सवाल उठाने वाले नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि आपके शासन काल में क्या हुआ? मुंबई हमले के बाद वायुसेना ने सीमा पार करने की अनुमति मांगी थी। आपके क्यों नहीं दिया?

 इतने बड़े हमलों को झेलने के बावजूद सेना के प्रस्ताव देने पर भी आपने एक कार्रवाई का साहस नहीं दिखाया। आज आप प्रश्न उठा रहे हैं, सबूत मांग रहे हैं। युद्व में केवल सेना नहीं लड़ती, देश के नेताओं का बयान, निर्मित वातावरण दुश्मन के विरुद्ध प्रचार और उसके झूठ का पर्दाफाश भी भूमिका निभाती है। भारतीय नेताओं के रवैये से हम इन मोर्चो पर कमजोर पड़ रहे हैं।

सोशल मीडिया पर एक ऑडियो टेप वायरल हो रहा हे जिसके बारे में कहा जा रहा है कि इसमें मसूद अजहर के भाई अम्मार की आवाज है। इसमें वह कह रहा है कि भारतीय वायुसेना ने जैश के जिहादी तालीम देने वाले संस्थानों को निशाना बनाया। यहां प्रशिक्षण पाने वाले दिनभर जिहाद के सिद्धांत को समझते थे। उसने कहा कि यहां तालीम पाने वाले लोग कश्मीर के मुसलमानों की मदद को अपना फर्ज समझते थे और वहां की मां-बहनों के दर्द को अपना दर्द समझते थे। उसने कहा कि दुश्मन ने सारे सवालों का जवाब खुद दे दिया है। भारत ने हमारे संस्थानों पर हमला करके यह निश्चित कर दिया है कि अब हम उसके खिलाफ जेहाद छेड़ें। अम्मार ने कहा- उसने (भारत) हमारे मुल्क में घुसकर हमला किया। ऐसा करके उसने खुद ही हमारे मुल्क के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। अब चींटी के पर निकल आए हैं और यह बालाकोट तक पहुंच गई है। ऐसे में अब इस चींटी को अपने पैरों तले कुचलने का वक्त आ गया है। अब जैश के कारकून हिंदुस्तान में घुस कर उनके सैनिकों पर हमला करेंगे और लाल किले पर अपना झंडा लहराएंगे। हालांकि, अभी ऑडियो की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं हुई है। 

मसूद अजहर का भाई अम्मार जैश की जिहादी गतिविधियों का हिस्सा है। बालाकोट में चल रही जिहाद की फैक्ट्री की देखरेख में भी अम्मार की अहम भूमिका होती थी। कहा जा रहा है कि वायुसेना के हमले के दो दिन बाद यानी 28 फरवरी को पेशावर में एक जलसे में अम्मार ने अपना दुखड़ा रोया। भारतीय खुफिया एजेंसियों को मौलाना अम्मार के इस भाषण को उन बलूची लोगों ने उपलब्ध कराया है, जो वहां मौजूद थे। हमारे नेताओं को इस ऑडियो में कोई सच्चाई नहीं दिखती? 

दूसरे, उस क्षेत्र से विदेशी संवाददाताओं ने खबर दी कि स्थानीय लोग ने एंबुलेंस में 35 शवों को ले जाते देखा था। इसके अनुसार प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हमले में जैश के 12 आत्मघाती आतंकी भी मारे गए थे। यह लोग स्थानीय सरकारी अधिकारियों के लिए काम करते हैं। रायटर ने जाबा गांव में उस स्थान के पास स्थित मदरसे की तस्वीरें जारी की थीं जहां पर भारतीय विमानों ने बमबारी की थी। 

प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि सेना ने उस क्षेत्र को पहले ही बंद कर दिया था। उन्होंने पुलिस तक को अंदर प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी थी। सेना ने शव लेने आई एंबुलेंस के कर्मचारियों से मोबाइल फोन तक ले लिए गए थे। बताया जाता है कि बमबारी में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक पूर्व अधिकारी जिसे स्थानीय तौर पर कर्नल सलीम के नाम से जाना जाता है, वह भी मारा गया है। एक कर्नल जरार जाकिरी घायल हो गया था। पेशावर के जैश-ए-मुहम्मद के प्रशिक्षक मुफ्ती मोइन और विस्फोटक बनाने में विशेषज्ञ उस्मान गनी भी बमबारी में मारा गया है। 

रिपोर्ट के अनुसार इस हवाई हमले में भारतीय वायुसेना ने जैश के चार इमारतों को निशाना बनाया था जिसमें जैश का मदरसा तलीम-उल-कुरान भी शामिल था। इस हमले में कितने आतंकवादी मारे गए हैं इसका कोई सटीक आंकड़ा सामने इसलिए नहीं आ पा रहा है क्योंकि वहां से खुफिया जानकारी नहीं मिल पा रही है। एसएआर तस्वीरें सैटेलाइट तस्वीरों की तरह बहुत साफ नहीं हैं। अच्छी तस्वीरें इसलिए भी नहीं मिली क्योंकि आसमान में घने बादल लगे हुए थे। वायुसेना को दी गई खुफिया जानकारी सटीक और समयानुकूल थीं। तब भी तस्वीरें हैं।

सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर) की तस्वीरों के रूप में सबूत हैं जिसमें चार इमारतें नजर आ रही हैं। इनकी पहचान उन लक्ष्यों के तौर पर हुई है जिन्हें कि वायुसेना के लड़ाकू विमान मिराज-2000 ने पांच एस-2000 प्रिसिजन गाइडेड म्यूनिशन (पीजीएम) के जरिए निशाना बनाया था। एस-2000 एक जैमर प्रूफ बम है जो घने बादल होने के कारण भी अपना काम सटीकता से करता है। यह पहले छत के अंदर प्रवेश करता है, फिर इमारत के अंदर जाता है और फिर फट जाता है। छत के प्रकार के हिसाब से सॉफ्टवेयर को प्रोग्राम किया जाता है। जिसमें उसकी मोटाई, निर्माण सामाग्री आदि को देखा जाता है। इसके कारण पीजीएम में देरी होती है। 

ये इमारतें मदरसे के परिसर में थीं जिसे जैश संचालित कर रहा था। यह उसी पहाड़ी की रिज लाइन पर स्थित है जिसे कि वायुसेना ने निशाना बनाया था। पाकिस्तानी सेना ने स्ट्राइक के बाद मदरसों को सील क्यों कर दिया? उसने मदरसे के अंदर पत्रकारों को जाने की इजाजत क्यों नहीं दी? हमारे पास एसएआफ तस्वीरों के तौर पर सबूत हैं जो दिखाते हैं कि इमारत का इस्तेमाल अतिथिगृह के तौर पर होता था। जहां मौलाना मसूद अजहर का भाई रहता था। एल आकार वाली इमारत में प्रशिक्षु रहा करते थे। दोमंजिला इमारत का इस्तेमाल मदरसे में प्रवेश करने वाले छात्रों के लिए होता था और अन्य इमारत में अंतिम कॉम्बैट का प्रशिक्षण पाने वाले प्रशिक्षु रहते थे। यह सभी बमबारी की चपेट में आ गए। इन नेताओं के सबूत मांगने से ये सच नहीं बदल जाते। 


अवधेश कुमार, (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं। उनके आलेख तथ्यों पर आधारित होने की वजह से संग्रहणीय हो जाते हैं और किसी भी बड़ी घटना के संदर्भ के तौर पर भविष्य में काम आते हैं।)