‘उमा भारती लोधी हैं और वह धर्म के बारे में बात करती हैं, मोदी धर्म के बारे में बात करते हैं। हिंदुत्व के बारे में बात करने का अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों को है। देश को भ्रम में डाला जा रहा है। धर्म और राजनीति दो अलग चीजें हैं।’

राजस्थान से आने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी का यह बयान पूरे देश में चर्चा का मुद्दा बन गया। सभी इसकी आलोचना करने लगे। 

लेकिन मेरा यह मानना है कि सीपी जोशी के इस बयान का स्वागत करना चाहिए। 

क्योंकि यह कांग्रेस पार्टी के असली चेहरे को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे कांग्रेस और उसके नेता खुद को जातीय और खानदानी विशेषाधिकार से युक्त मानते हैं। 

दरअसल यह कांग्रेस के दंभयुक्त अहंकारी रवैये का एक छोटा सा नमूना है। जिसकी झलक सीपी जोशी के बयान में दिखी। 

जोशी जी तो एक छोटे नमूने हैं। अगर इस विशेषाधिकारयुक्त दंभी रवैये को पूरी तरह देखना हो तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके पूर्ववर्तियों पर नजर डालिए।
 
याद करिए कैसे सोनिया गांधी के विशेषाधिकार की रक्षा करने के लिए वयोवृद्ध कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को बुरी तरह अपमानित करते हुए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। 

याद करिए कि कैसे देश के प्रधानमंत्री रह चुके पामुलपर्ति वेंकट नरसिंह राव जैसे उद्भट विद्वान राजनेता की अर्थी को कांग्रेस कार्यालय में घुसने तक नहीं दिया गया था। 
कई दशक पहले इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमर्जेन्सी भी इसी अहंकार और देश को अपना जागीर समझने वाली सोच का नतीजा था। 

और इस विशेषाधिकार युक्त अहंकार की पराकाष्ठा दिखती है वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी में। जिनसे ज्यादा प्रतिभाशाली,प्रभावशाली और उर्जावान और कई नेता कांग्रेस पार्टी में मौजूद हैं। लेकिन वह कांग्रेस अध्यक्ष बनना तो छोड़िए। गलती से इससे संबंधित कोई शब्द भी अपनी जुबान पर नहीं लाने की हिमाकत नहीं कर सकते।
 कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी का ही एकाधिकार है।क्योंकि वह नेहरु-गांधी खानदार के चश्मोचिराग हैं। 

इसी विशेषाधिकारवादी रवैये का नतीजा है कि आज की कांग्रेस में कोई गलती से भी पटेल, अंबेडकर, लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारीलाल नंदा जैसे कद्दावर नेताओं का नाम नहीं लेता। सब कुछ नेहरु,इंदिरा,राजीव, सोनिया तक ही सिमटा रहता है। 

आज कांग्रेस को सत्ता गंवाने से ज्यादा दुख इस बात का है कि कैसे नरेन्द्र मोदी जैसा मामूली पृष्ठभूमि से आया हुआ व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बना हुआ है और लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहा है। 

कांग्रेस का यह दुख स्वाभाविक भी है। क्योंकि जो लोग अपनी ही पार्टी के पी.वी.नरसिंह राव और सीताराम केसरी जैसे वरिष्ठों का सम्मान नहीं कर पाए। वह कैसे बिल्कुल अलग तरह के बैकग्राउंड से आने वाले नरेन्द्र मोदी का सम्मान कर पाएंगे।
 
यही कारण है कि गांधी परिवार के वफादार मणिशंकर अय्यर जैसे लोग लगातार पीएम मोदी पर घटिया विशेषणों से युक्त भाषा का प्रहार करते हुए दिख जाते हैं। 

देश में चल रही हर विसंगति के लिए मोदी को ही दोषी ठहराया जाता है।  देश में गलत होने वाली हर चीज़ में उनका नाम घसीट लिया जाता है भले ही वह उनके सत्ता संभालने से पहले से ही मौजूद हो। 

कांग्रेस का यही विशेषाधिकारवादी रवैया उसकी दुर्गति का मूल कारण भी है। कांग्रेस को चलाने वाले गांधी परिवार के सदस्य आज भी देश की मतदाताओं को अपनी ‘प्रजा’ समझने की मानसिकता में ही जी रहा है। 

कांग्रेस के कर्णधार ये समझ ही नहीं पा रहे हैं कि सूचना क्रांति के इस युग में आम लोगों को आर्थिक नहीं तो कम से कम वैचारिक स्तर पर जरुर इतने समान धरातल पर ला दिया है कि वो खुद से होने वाले किसी भी भेदभाव को बर्दाश्त नहीं कर पाता। 

कांग्रेस के शासनकाल में जानबूझकर इस तरह की नीतियां बनाई जाती थीं जिससे गांधी परिवार के लोगों को दाता के रुप में दर्शाया जाए। इसलिए देश का हर सम्मान, पुरस्कार, सरकारी योजनाएं गांधी खानदान के लोगों के नाम पर रखे जाते थे। जिससे कि देश की जनता को एहसास होता रहे कि वह मात्र याचक हैं, दाता तो केवल गांधी परिवार है। 

यह सब केवल नेहरु गांधी खानदान के इसी विशेषाधिकारयुक्त अहंकार को पोषित करने के लिए किया जाता था। 

लेकिन अब लोकतंत्र परिपक्व हो गया है। देश की जनता समझने लगी है कि उसे जो भी प्राप्त हो रहा है वह किसी का दान नहीं बल्कि उसका अधिकार है। 

एक चायवाले के बेटे को प्रधानमंत्री बना देखकर देश की अस्सी फीसदी गरीब जनता को समानता के अधिकार की जो अनुभूति होती है। उसको विशेषाधिकारयुक्त होने का दंभ पाले हुए कांग्रेसी कभी समझ नहीं पाएंगे। 

कांग्रेसी कभी इस बात का एहसास नहीं कर पाएंगे कि यह नरेन्द्र मोदी का उभार नहीं बल्कि देश की जनता का गांधी परिवार के एकाधिकारवादी रवैये के प्रति विद्रोह है। मोदी को महज एक प्रतीक हैं। 

सीपी जोशी का आज का ‘ब्राह्मणवादी’ बयान यह दर्शाता है कि कांग्रेस आज भी अपने अतीत की गलतियों से सबक लेने के लिए तैयार नहीं है। भले ही वह अगले आम चुनाव में 44 से घटकर 4 पर आ जाए। 

अगर कांग्रेस नेताओं को अपने भविष्य की जरा भी परवाह है तो उन्हें तुरंत स्वयं को गांधी परिवार के विशेषाधिकारयुक्त अहंकारी साए से स्वयं को मुक्त कर लेना चाहिए।  
क्योंकि देश की जनता को परहेज कांग्रेस से नहीं है बल्कि उसके दंभी विशेषाधिकारयुक्त रवैये से है।