नई दिल्ली: वस्तुतः बालाकोट सहित पाक अधिकृत कश्मीर के दो स्थानों पर हवाई बमबारी की साहसिक कार्रवाई के बाद निर्मित राष्ट्रवाद के पिच से पैदा हुए मनोवैज्ञानिक असर को समझते हुए विपक्षी दलों को अत्यंत ही सतर्कता के साथ सुविचारित होकर अपनी रणनीति बनाने की आवश्यकता थी। इसके उलट वे अपनी रणनीति एवं प्रतिक्रियाओं से उसी पिच को और ज्यादा सशक्त करते रहे। 

आप देख लीजिए, ढाई वर्ष पहले का सर्जिकल स्ट्राइक फिर बहस एवं विवाद का प्रमुख मुद्दा है। भाजपा अपनी ओर से इसे उठाती रहती तो यह इतना मुख्य फोकस में शायद ही आता जितना कांग्रेस के इस दावे के बाद आया है कि डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी छः सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था। कांग्रेस यह दावा कर सकती है लेकिन इसके पक्ष में उसके पास कोई प्रमाण नहीं है। 

इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में 27-28 सितंबर 2016 को किए गए सर्जिकल स्ट्राइक का पूरा प्रमाण सामने है। सेवानिवृत नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी. एस. हुड्डा उस ऑपरेशन की योजना के मुखिया थे। वे इस समय कांग्रेस के साथ है और उन्होंने पार्टी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा दस्तावेज भी तैयार किया है। वे जानते हैं कि सच क्या है। 

पता नहीं कांग्रेस के रणनीतिकारों ने यह कैसे मान लिया कि जनरल हुड्डा उनके दावों का समर्थन कर देंगे। जो व्यक्ति उस पूरे अभियान से केवल जुड़ा नहीं रहा, उसका प्रभारी रहा वह अपनी ही उपलब्धियों को कमतर नहीं बता सकता। आखिर इस तरह पराक्रम के इतिहास निर्माण का अवसर किसी-किसी सैनिक के जीवन में ही आता है। 
उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में यह कहा है कि क्रॉस बोर्डर स्ट्राइक यानी सीमा पार कर की गई सामान्य कार्रवाई एवं सर्जिकल स्ट्राइक में अंतर है। 2016 का सर्जिकल स्ट्राइक अपने आयाम व विस्तार में इससे बिल्कुल अलग था तथा यह इस मायने में भी भिन्न था कि राजनीतिक नेतृत्व ने इसे स्वीकार करने का निर्णय किया। 


इस एक बयान ने भाजपा को उसकी मुंहमांगी पिच पर मजबूती सें खड़ा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर अन्य भाजपा नेता कांग्रेस के इस दावे का मजाक उड़ाते हुए अपना गौरव गान कर रहे हैं और जनता की उत्साही तालियां उनको मिल रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों से पूछा जाना चाहिए कि इसकी जरुरत क्या थी? 

जब 28 सितंबर 2016 को डीजीएमओ यानी सैन्य ऑपरेशन के महानिदेशक जनरल रणवीर सिंह ने पत्रकार वार्ता कर सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी दी तो कांग्रेस के कई नेताओं ने इसका उपहास उड़ाया। इनकी ओर से ही इसे फर्जीकल स्ट्राइक का नाम मिला। यह भयानक गलती थी। नरेन्द्र मोदी और भाजपा विरोध की अंध नीति में सर्जिकल स्ट्राइक से देश में निर्मित वातावरण को समझने में कांग्रेस आरंभ में ही विफल रही। पता नहीं कांग्रेस के नेताओ को यह अहसास कैसे नहीं हुआ कि देश डीजीएमओ को झूठा नहीं मान सकता था। 

सच भी यही है कि भारत द्वारा क्रॉस बोर्डर स्ट्राइक तो हुआ है लेकिन सितंबर 2016 के पहले सर्जिकल स्ट्राइक का कोई रिकॉर्ड सेना के पास नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक के निर्णय एवं तैयारी में प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय के साथ सैन्य नेतृत्व शामिल था। अगर यूपीए के शासनकाल में सर्जिकल स्ट्राइक होता तो उसकी योजना बनाने से लेकर तैयारी बैठकों का रिकॉर्ड कई जगह होता, कई तत्कालीन सैन्य-असैन्य अधिकारी उसके गवाह होते। 

लेकिन ऐसा है नहीं। आपने अपनी नासमझी से चुनाव के चार चरणों की समाप्ति तथा पांचवे चरण के तीन दिन पूर्व फिर सर्जिकल स्ट्राइक की यादें ताजा कर दीं। कांग्रेस भूल गई कि सैनिक पराक्रम का राष्ट्रवादी पिच भाजपा की है। इस पर कोई विरोधी दल खेलने की कोशिश करेगा तो विफल होगा। आपने सर्जिकल स्ट्राइक का दावा किया तो फिर बालाकोट आ धमका, तीन वर्ष आठ महीने पूर्व म्यांमार में किया गया सर्जिकल स्ट्राइक भी बाहर आ गया। लोकसभा चुनाव के आगामी चरणों में वो सीटें शामिल हैं जिनमें 2014 में भाजपा ने रिकॉर्ड सफलताएं पाईं थीं। अगर उसे सत्ता बनाए रखना है तो इनमें बेहतर प्रदर्शन करना होगा। यह जानते हुए भी कांग्रेस सहित विपक्षी दल अपनी पिच पर खेलने की जगह भाजपा की पिंच कर कूद गए। 

मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के कारण वैसे ही प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही हो रही है। एक दशक से भारत में अनेक भीषण हमलों के लिए जिम्मेवार मसूद को आतंकवादी घोषित करना एक बड़ी कूटनीतिक सफलता तो है ही। 

इससे बने वातावरण में सधी हुई रणनीति यही थी कि कांग्रेस सहित विपक्षी दल बिना किसी किंतु-परंतु के इसका स्वागत कर देते। इसकी जगह ये प्रश्न उठा रहे हैं कि मसूद को छोड़ा किसने था... मसूद को आतंकवादी घोषित करने के कारणों में पुलवामा की चर्चा नहीं और यह भारतीय विदेश नीति की विफलता है... अमेरिका ने तो भारत के साथ ईरान मामले पर सौदेबाजी कर ली है आदि आदि। 

इस तरह की नासमझी का लोगों पर क्या असर हो सकता है? फिर भाजपा तो पूछेगी ही कि आप 2009 में मसूद को आतंकवादी घोषित कराने के प्रयास को चीन द्वारा वीटो किए जाने के बाद चुप क्यों बैठ गए? दीजिए इसका जवाब। 

चार बार वीटो करने वाला चीन अगर इसके लिए तैयार हुआ तो इसका श्रेय मोदी की कूटनीति को जाता है। आप इसे जितना नकारेंगे आम मतदाता आपसे उतने ही खिन्न होंगे और मोदी को आपको कठघरे में खड़ा करने का मौका मिलेगा। यही हो रहा है। 

देश का आम मानस बालाकोट की तरह ही मसूद मामले को राष्ट्रवाद की विजय तथा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मोदी सरकार की बड़ी सफलता मान रहा है। वास्तव में आम लोग इसे भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव तथा पाकिस्तान के पराजित होने के रुप में देखते हुए रोमांच अनुभव कर रहे हैं और विपक्ष इसमें किंतु-परंतु लगा रहा है। 

आप इसे जो भी कहिए, ऐसी घटनाओं के कारण नरेन्द्र मोदी को चुनाव अभियान के दौरान सुरक्षा और राष्ट्रवाद को चुनाव अभियान में सबसे उपर रखने के लिए अवसर तलाशने की आवश्यकता नहीं हुई। विपक्ष यह कहता रहा कि आतंकवाद एवं राष्ट्रीय सुरक्षा चुनाव का मुद्दा है नहीं, यह तो मूल मुद्दे से ध्यान हटाने की रणनीति है। 


इसी बीच श्रीलंका में चर्चों तथा होटलों में श्रृंखलाबद्ध हमले हो गए। हमलों के बाद सुरक्षा कार्रवाई के दौरान भी विस्फोट हो रहे हैं, आतंकवादियों से मुठभेड़ में लोग मारे जा रहे हैं तथा भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद हो रहे हैं। आईएसआईएस प्रेरित इन हमलों के सूत्र भारत से भी जुड़ रहे हैं। पता चला कि कोयम्बटूर में पकड़े गए आईएस के मॉड्यूल से इन हमलों की योजना की जानकारी मिली थी। केरल से आईएस का आतंकवादी पकड़ा गया और एनआईए का दावा है कि वह बड़े विस्फोट की साजिश रच चुका था। इसी बीच आईएसआईएस के प्रमुख अल बगदादी का वीडियो आ गया। 

ये सारी घटनाएं अपने-आप प्रमाणित कर रहीं हैं कि आतंकवादी खतरा एवं सुरक्षा भी वास्तविक मुद्दे हैं। प्रधानमंत्री मोदी श्रीलंका हमलों को उदाहरण के रुप में प्रस्तुत भी कर रहे हैं। कांग्रेस सहित विपक्ष द्वारा आतंकवाद के खतरे को नकारना तथा सुरक्षा को विकृत रुप में प्रस्तुत करना वैचारिक कंगाली का परिचायक है। जनता इसे इसी रुप में लेती दिख रही है। यह आत्मघाती रणनीति है। इसको पूरी तरह स्वीकार करते हुए भी राजनीति के मैदान में मोदी सरकार को घेरा जा सकता था। 

लेकिन इसे नकारने से लोगों में संदेश यही जा रहा है कि आतंकवाद एवं सुरक्षा के मामले पर एकमात्र नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा ही दृढ़ता से खड़े है। सच कहा जाए तो कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में देशद्रोह कानून खत्म करने, अफस्पा से तीन प्रमुख प्रावधानों को हटाने, सुरक्षा बलो के टॉर्चर को रोकने के लिए अत्याचार निवारण कानून बनाने,जम्मू कश्मीर में अफस्फा की समीक्षा करने, वहां से सुरक्षा बलों की संख्या कम करने, अलगाववादियों सहित सभी पक्षों से बातचीत की शुरुआत करने, धारा 370 को बनाए रखने.... आदि का वायदा करके भाजपा की पिच को मजबूत आधार दे दिया था।

 इनको आधार बनाते ही यह चुनाव बिल्कुल दो विचारधाराओं का संघर्ष नजर आता है। भाजपा इसे राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा तथा सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्रचारित कर रही है। वह लोगों को बता रही है कि ये आ गए तो देशद्रोहियों को खिलाफ कार्रवाई कठिन हो जाएगी, सुरक्षा बलों के हाथ-पांव बंध जाएंगे, भारत विरोधियों को स्वतंत्र गतिविधियो की छूट मिल जाएगी तथा जम्मू कश्मीर में मेहनत से लाई गई शांति फिर खत्म हो जाएगी। कांग्रेस के सामने इन मामलों में रक्षात्मक होने के अलावा कोई चारा ही नहीं है। 

हम चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी नहीं कर सकते, किंतु घटनाओं और परिस्थितियों के साथ विपक्ष ने अपनी भूमिकाओं से भाजपा को राष्ट्रवाद एवं सुरक्षा की अपनी पिच पर खुलकर खेलने का ज्यादा मौका दिया है। 

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं)