आपको याद होगा कि लगभग डेढ़ साल पहले यानी 2017 के मई महीने में कश्मीर में आतंकवादी संगठनों के बीच गंभीर मतभेद की खबरें आई थीं। 

4 मई 2017 को सोशल मीडिया पर 9(नौ) ऐसे आतंकवादियों की तस्वीरें पोस्ट की गई थीं, जिनके हाथ में मिडिल ईस्ट की बदनाम आईएस(इस्लामिक स्टेट) के काले झंडे से मिलते जुलता झंडा था। जिसके बाद पाकिस्तानी आतंकी हिज्बुल मुजाहिदीन के स्वयंभू कमांडर सलाहुद्दीन ने इसकी निंदा की थी और दावा था कि आईएस का झंडा लहराने वालों से उसका कोई ताल्लुक नहीं है। 

फिर 8 मई 2017 को गिलानी, मीरवाइ़ज और यासीन मलिक जैसे अलगाववादियों ने कैमरे के आगे सफाई देने की कोशिश की थी कि उनका आईएस से कोई वास्ता नहीं है। 

इसके बाद 12 मई 17 को स्थानीय आतंकी जाकिर मूसा ने एक ऑडियो मैसेज जारी किया जिसमें उसने कहा कि ‘अगर हुर्रियत नेता आतंकी संगठनों के इस्लाम के लिए 'संघर्ष' में हस्तक्षेप करेंगे तो उनके सिर काटकर श्रीनगर के लाल चौक पर टांग दिए जाएंगे’। पहले की तरह एक बार फिर हिज्बुल मुजाहिदीन ने मूसा के बयान से पल्ला झाड़ने में देर नहीं की। 

लेकिन 15 मई 17 को मूसा ने एक और ऑडियो मैसेज जारी किया जिसमें उसने खुद को हिज्बुल से खुद को अलग करने का ऐलान किया। 

जाकिर मूसा ने हुर्रियत और दूसरे आतंकी संगठनों को धमकी दी कि वह जम्मू कश्मीर में खलीफा स्थापित करने के उनके उद्देश्य में दखल न दें। 

यानी यह बात स्पष्ट हो गई थी कि  जहरीले कश्मीरी आतंकवाद में इस्लामी साम्राज्य वाली मध्य पूर्व की विचारधारा का घातक बारूद मिल चुका था। 

स्वाभाविक था कि पाकिस्तान और उसके पालतू आतंकवादी संगठनों को इससे चिंता होने लगी। क्योंकि अगर यह सिलसिला आगे बढ़ता तो स्थितियां उनके हाथ से निकलने लगती और कश्मीर का पाकिस्तान में मिलाने का उनके सपने पर दोतरफा चोट होती। 

इस  परिस्थिति से निपटने के लिए पाकिस्तान ने जैश ए मोहम्मद को आगे कर दिया। जिसके सरगना मसूद अजहर ने अपने भतीजे भतीजा तल्हा रशीद की घुसपैठ घाटी में कराई। तल्हा की जिम्मेदारी थी कि वह जैश, लश्कर व आईएस के प्रभाव में जा रहे स्थानीय युवाओं के बीच समन्वय स्थापित करे। वह जुलाई या सितंबर 2017 को उत्तरी कश्मीर के रास्ते घाटी में दाखिल हुआ था।

लेकिन घाटी में सुरक्षा बलों ने अजहर के भतीजे तल्हा रशीद को मार गिराया।

यह एक ऐसी चोट थी जिससे जैश ए मोहम्मद सरगना मसूद अजहर तिलमिला गया। इसकी झलक पुलवामा में आत्मघाती हमला करने वाले आदिल अहमद डार के इस बयान में मिलती है। 

"

इस दौरान ऑपरेशन ऑलआउट चलता रहा जिसमें लगातार खूंखार आतंकी मौत के घाट उतारे जाते रहे। लेकिन कश्मीरी युवाओं में आईएस की विचारधारा का प्रसार कर रहे तत्व छिपे तौर पर अपना काम करते रहे। 

जिसकी एक झलक दिखी 29 दिसंबर 2018 को जब श्रीनगर में हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारुक की जामिया मस्जिद में नकाबपोशों ने आईएस का काला झंडा लहराया। यह वही जामिया मस्जिद है जिसके बाहर जम्मू कश्मीर पुलिस के इंस्पेक्टर अयूब पंडित की पीट पीटकर हत्या कर दी गई थी। 

जब कश्मीर में सरेआम महसूस की गई आईएस की उपस्थिति

घाटी में आईएस के पक्ष में चल रहे माहौल का फायदा उठाने के लिए दिसंबर 2018 में जैश के मोहम्मद के कथित कमांडर अब्दुल रशीद ने घाटी में घुसपैठ की, जो कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी कैंप का चीफ इंस्ट्रक्टर रहा है। 

रशीद ने ही आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार को आईईडी ब्लास्ट की ट्रेनिंग दी थी। 

आदिल के बारे में कहा जा रहा है कि कुछ दिन पहले रत्नीपोरा में उसके दोस्त हिलाल अहमद राथर की एनकाउंटर में मौत हुई थी। जैश से आए हुए रशीद ने उसी के बहाने से आदिल की भावनाएं भड़काकर उसे आत्मघाती बनने के लिए तैयार कर लिया। 
"   

जम्मू कश्मीर में पहले ऐसा नहीं हुआ था। यहां फिदायीन हमले नहीं हुआ करते थे। यहां पर यह ट्रेंड मिडिल ईस्ट और अफगानिस्तान से आया है। अभी 13 फरवरी को ईरान की राजधानी तेहरान में अल कायदा ने ठीक इसी तरह हमला किया जिसमें ईरानी सेना से 27 जवान मारे गए। सीरिया में मार्च 2017 को हुए ऐसे ही कार में लदे विस्फोटकों के साथ फिदायीन हमले में 74 जानें चली गई थीं। अफगानिस्तान में तो ऐसे हमलों का पूरी इतिहास है। दो ही महीने पहले काबुल में इसी तर्ज पर फिदायीन हमला हुए जिसमें दर्जनों जानें चली गईं। 

आदिल अहमद डार को ट्रेनिंग देने वाली अब्दुल रशीद भी अफगानिस्तान में तालिबानियों के साथ काम कर चुका है। उसने आदिल के दिमाग में इतना जहर भरा कि वह अपनी जान देने के लिए तैयार हो गया। 
"

आदिल के केस में सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि उसने अपनी आखिरी वीडियो रिकॉर्डिंग में बार बार कथित जन्नत, वहां की परियों(हूरों) जैसी काल्पनिक बातों का जिक्र किया। 
"

इन्हीं मनगढ़ंत बातों के लालच में आकर आदिल ने इतने भयानक काम को अंजाम दिया।

"
इस तरह का ट्रेंड खतरनाक है। चर्चित साहित्यकार सलमान रुश्दी बताते हैं कि इस्लाम का हिंसक उत्परिवर्तन भी इस्लाम है। जो पिछले 20 – 25  वर्षों के दौरान बहुत ही ताकतवर बनकर उभरा है। यह इस्लाम का एक ऐसा रूप है जो किसी और से ज्यादा खुद मुस्लिमों की हत्या और उन्हें पीड़ित करता है। शिया सुन्नी पर हमले करते हैं, सुन्नी शियाओं पर हमले करते हैं। चाहे फिर वह अफगानिस्तान में तालिबान हो या फिर अयातुल्ला या फिर चाहे जो भी हो। 
इस मुद्दे पर सलमान रुश्दी का यह पूरा इंटरव्यू देखिए यहां पर 

 

सलमान रुश्दी का बात कश्मीर में सच होने जा रही है। कश्मीरी युवाओं में आईएस का प्रसार बढ़ता जा रहा है। जाहिर सी बात है सुरक्षा बल उनसे सख्ती से पेश आएंगे। ऐसे में नुकसान तो उनका ही होगा। 
देश के पढ़े लिखे मुसलमान इस बात को समझते हैं। यही वजह है कि जहां कट्टरपंथी मुसलमान आदिल डार को हीरो की तरह देख रहे हैं। वहीं पढ़े लिखे समझदार मुसलमान इस खतरे को पहचानकर इसके खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। 

भारत सरकार के लिए आदिल अहमद डार और विस्फोट से पहले की गई उसकी रिकॉर्डिंग सुरक्षा बलों और इंटेलिजेन्स एजेन्सियों के लिए एक केस स्टडी की तरह है। क्योंकि यह बताता है कि किस तरह कश्मीर में अब अलगाववादी आंदोलन नहीं बल्कि मजहबी इस्लामी कट्टरपंथ अपनी चरम सीमा तक पहुंचता जा रहा है। 

"

अब जरुरत है आदिल के जैसे मूर्खों को भड़काने वाले तत्वों की पहचान की जाए। क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सकता कि घाटी में बिना किसी उकसावे के आईएस(इस्लामिक स्टेट) के तरीके की फिदायीन विचारधारा फैलती जा रही हो। 

ऐसे कट्टरपंथियों की पहचान करके उनसे बेहद सख्ती से निपटने की जरुरत है। लेकिन इसके साथ ही पाकिस्तान को भी सबक सिखाना जरुरी है। क्योंकि पुलवामा हमले में जैश ए मोहम्मद और उसके सरगना मसूद अजहर की भूमिका स्पष्ट होते ही यह साफ हो गया है कि यह साजिश पाकिस्तान की धरती पर रची गई थी।

पाकिस्तान को दंडित करने की सरकार की रणनीति क्या होनी चाहिए? इसे तय करने में ज्यादा देर करना उचित नहीं होगा। क्योंकि देरी से देश की जनता में असंतोष बढ़ेगा और दुश्मनों का मुगालता भी।