नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी की करारी हार से कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है। लेकिन इसका सीधे तौर पर फायदा उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को होता हुआ दिख रहा है। हो सकता है कि अगले कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उनकी ताजपोशी हो जाए। दरअसल इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके सलाहकारों ने पूरी व्यूह रचना की थी। जिसमें राहुल गांधी फंसकर रह गए। देखिए पांच अहम सबूत-

1.    राहुल गांधी के इस्तीफे की उड़ी खबर: प्रियंका का रास्ता हो सकता है साफ 

लोकसभा चुनाव 2019 में मिली जबरदस्त हार के बाद से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की खबरें फिजा में तैरने लगी हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राहुल गांधी ने अपनी मां और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने अपने इस्तीफे की पेशकश की है। लेकिन उन्होंने मामला 25 मई तक के लिए टाल दिया है। बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी ने कहा है कि 25 तारीख को होने वाली कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में राहुल गांधी के इस्तीफे के मुद्दे पर चर्चा होगी। 

राहुल गांधी ने भी इस खबर की पुष्टि करते हुए कहा है कि उनके इस्तीफे का मामला अब कांग्रेस कार्य समिति के सामने है। जब राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए प्रेस कांफ्रेन्स किया था तो उनसे सवाल पूछा गया कि क्या वह इस्तीफा देंगे? 
जिसपर राहुल गांधी ने जवाब दिया कि आप इसे मेरे और कांग्रेस कार्य समिति के बीच छोड़ दें। 

हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस्तीफे की खबर को नकार रहे हैं। लेकिन पार्टी के शुभचिंतकों ने खुलेआम राहुल गांधी का इस्तीफा मांगना शुरु कर दिया है। 

उधर राज बब्बर जैसे पुराने कांग्रेसियों ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे भी इस्तीफे ब्रह्मास्त्र लेकर तैयार बैठे हैं।  
इन सभी की वजह से राहुल गांधी पर भी इस्तीफे का दबाव बढ़ता जा रहा है। एक तरह से देखा जाए तो इस तरह की स्थितियां प्रियंका वाड्रा के बहुत अनुकूल होती जा रही हैं। क्योंकि राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष पद से विदाई के बाद सिर्फ प्रियंका ही कांग्रेस अध्यक्ष पद की दावेदार बचती हैं। क्योंकि सोनिया गांधी का स्वास्थ्य उन्हें इस तरह की जिम्मेदारी लेने की इजाजत नहीं देता।   

2.    प्रियंका वाड्रा ने जबरदस्त चुनाव प्रचार का नाटक करके कांग्रेस को किया कमजोर 

प्रियंका गांधी वाड्रा ने लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान जबरदस्त प्रचार किया। वह पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी थीं। उन्होंने कुल 38 रैलियां कीं, जिनमें से 26 तो केवल यूपी में थीं। इसके अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, झारखंड और हरियाणा में भी प्रियंका ने कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया। लेकिन नतीजा क्या रहा? जिस किसी भी क्षेत्र में प्रियंका प्रचार करने पहुंची वहां कांग्रेस पार्टी की जमीन खिसक गई। हालत यह हो गई कि प्रियंका के प्रचार किए हुए इलाकों में 97 फीसदी कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव हार गए। 

इसमें सबसे बड़ा झटका तो अमेठी का था। जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद ही चुनाव लड़ रहे थे। यहां का प्रचार सीधे तौर पर प्रियंका ने खुद ही संभाला था। लेकिन यहां राहुल गांधी 50 हजार के अंतर से चुनाव हार गए। 

अमेठी कांग्रेस की परंपरागत सीट है। यहां पर कई दशकों से कांग्रेस पार्टी और खास तौर पर गांधी परिवार के उम्मीदवार जीतते आ रहे थे। लेकिन इस बार के चुनाव में जब कांग्रेस अध्यक्ष खुद चुनाव लड़ रहे हों और प्रचार की जिम्मेदारी सीधे तौर पर उनकी बहन संभाल रही थीं। तब कांग्रेस ने अपना यह पुराना गढ़ खो दिया। अब यह शोध का विषय है कि ऐसा अनायास हो गया या फिर जानबूझकर किया गया। 

लेकिन यह तो सच है कि अमेठी की हार से राहुल गांधी की छवि बुरी तरह धूमिल हुई है और इसका सीधा फायदा प्रियंका वाड्रा को मिलता हुआ दिख रहा है। 

3.    चुनाव प्रचार के दौरान ही कांग्रेस को कमजोर करती दिखी थीं प्रियंका 

लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान प्रचार करते हुए प्रियंका ने ऐसे बयान दिये। जिससे पार्टी मजबूत होने की बजाए कमजोर होती हुई दिखी। 

उन्होंने न्यूज एजेन्सी एएनआई से बात करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कमजोर प्रत्याशी उतारे हैं। ताकि बीजेपी को हराया जा सके और उसका वोट काटा जा सके। 
प्रियंका के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि वह कांग्रेस को मजबूत करने की बजाए कमजोर करने के काम में लगी हुई थीं। 

स्पष्ट तौर पर प्रियंका के इस तरह के कदमों से राहुल गांधी को नुकसान हुआ। क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की हार की जिम्मेदारी उनकी ही होती है। 

ऐसे में वही सवाल फिर से उभरकर सामने आता है कि क्या प्रियंका ने राजनीतिक अनुभवहीनता के कारण इस तरह के कदम उठाए या फिर इसके पीछे उनकी सोची समझी साजिश थी। 

क्या प्रियंका जानबूझकर कांग्रेस को हरवाने का काम करवाने का काम कर रही थीं, जिससे राहुल की छवि खराब हो जाए और अध्यक्ष पद तक उनका रास्ता आसान हो जाए?  

4.    प्रियंका ने कांग्रेस पार्टी में खेमेबाजी की शुरुआत कर दी

प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस पार्टी में अपना अलग खेमा तैयार कर लिया है। इसका संकेत तब दिखा जब वाराणसी से चुनाव लड़ने के सवाल पर राहुल और प्रियंका के समर्थक आपस में भिड़ गए। पहले तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी सैम पित्रोदा ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि वाराणसी से चुनाव न लड़ने का फैसला खुद प्रियंका गांधी का था। 

लेकिन उनकी बात का जवाब देते हुए प्रियंका गांधी के करीबी माने जाने वाले राजीव शुक्ला ने कहा, प्रियंका गांधी को वाराणसी से न लड़ाने का फैसला राहुल गांधी का था। प्रियंका तो वाराणसी से लड़ने की इच्छुक थी। दोनों के समर्थकों की बयानबाजी यह संकेत देती है कि कांग्रेस राहुल औऱ प्रियंका खेमे में बंट गई है। इससे भी ज्यादा बुरा यह है कि इस तरह की स्पष्ट गोलबंदी के बावजूद किसी के समर्थक पर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। कांग्रेस राहुल औऱ प्रियंका खेमें में बंट गई है

ऐसे में यह प्रश्न फिर से सवाल उठाता है कि अगर प्रियंका वाड्रा राहुल गांधी को दरकिनार नहीं करना चाहतीं तो वह पार्टी में अपना अलग खेमा क्यों तैयार कर रही हैं? 

5.    राष्ट्रीय नेता के तौर पर अपनी छवि बनाने के लिए बेताब हैं प्रियंका गांधी वाड्रा

प्रियंका गांधी वाड्रा राहुल गांधी को परे हटाकर खुद आगे आना चाहती हैं। यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि प्रियंका जिस दिन से राजनीति में आईं हैं उस दिन से वह लगातार खबरों में बने रहना चाहती हैं। 

शायद इसीलिए उन्होंने सीधा पीएम मोदी पर हमले का रास्ता चुना। जबकि यह उनकी प्रोफाइल से मेल नहीं खाता है। क्योंकि उनका राजनीतिक अनुभव शून्य है। आम तौर पर एक पार्टी का अध्यक्ष ही दूसरे पक्ष के प्रधान व्यक्ति के खिलाफ बयानबाजी करता है। लेकिन प्रियंका वाड्रा ऐसा नहीं कर रही हैं। पिछले कुछ दिनों से उनके भाई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कोई भी बयान पीएम मोदी के खिलाफ ज्यादा नहीं सुनाई पड़ा। बल्कि उनकी जगह प्रियंका वाड्रा ही उनपर निशाना साध रही हैं।    

उदाहरण के तौर पर 9 मई को प्रतापगढ़ में पीएम के खिलाफ प्रियंका ने तीखा हमला करते हुए कहा कि "मैंने इनसे बड़ा कायर और कमजोर प्रधानमंत्री नहीं देखा।"

दिल्ली में 8 मई को रोड शो में प्रियंका ने पीएम पर सीधा हमला करते हुए उनको ‘स्कूली बच्चा’ करार दिया था। दिल्ली में प्रियंका ने बयान दिया कि "पीएम मोदी की हालत स्कूल के उस बच्चे की तरह है जो कभी अपना होमवर्क नहीं करता। जब शिक्षक उससे पूछते हैं तो वह कहते हैं नेहरू जी ने मेरा पेपर लेकर उसे छिपा लिया और इंदिरा जी ने कागज की नाव बना कर उसे पानी में बहा दिया।" 

इससे पहले प्रियंका वाड्रा 7 मई को अंबाला की रैली में पीएम को दुर्योधन बता चुकी हैं। उन्होंने इसके लिए सहारा लिया राष्ट्रकवि दिनकर की अमर पंक्तियों का। 

जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है.......

खुद को प्रधानमंत्री के कद तक लाना चाहती हैं प्रियंका गांधी वाड्रा, इसलिए करती हैं बार बार उनपर सीधा हमला

यही नहीं प्रियंका ने पीएम मोदी की नकल करते हुए रोड शो करके राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बनाने की कोशिश में लगातार जुटी हुई दिखीं। उन्होंने 15 मई को पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में छह किलोमीटर लंबा रोड शो किया। उनका रोड शो ठीक उन्हीं इलाकों से गुजरा जहां पीएम मोदी ने रोड शो किया था। प्रियंका को रोड भी भी पीएम की ही तरह लंका से शुरू होकर रविदास गेट, अस्सी, भदैनी, सोनारपुरा होते हुए गोदौलिया तक पहुंचा। यही नहीं रोड शो खत्म होने के बाद प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी की ही तरह बाबा काल भैरव मंदिर पूजा भी की। 

हालांकि प्रियंका के रोड शो में पीएम मोदी की तरह भीड़ नहीं जुटी। लेकिन उन्होंने इस रोड शो के जरिए अपना कद पीएम के बराबर करने की भरपूर कोशिश की।

क्योंकि वह जानती हैं कि इस तरह की कवायद का फायदा इस बार के चुनाव में भले ही नहीं हो, लेकिन आगे चलकर जब कांग्रेस मे वर्चस्व की जंग छिड़ेगी तो उन्हें जनता के बीच बनी अपनी छवि का फायदा मिलेगा। ऐसा करके दरअसल वह राहुल गांधी की संभावनाएं क्षीण कर रही हैं। 

6.    पार्टी पर छा जाने की प्रियंका की कोशिशों का परिणाम चुनाव के दौरान ही आ गया था सामने    
 
प्रियंका गांधी वाड्रा जनता के बीच अपनी छवि बनाने की जो कोशिश कर रही हैं उसका उन्हें फायदा भी हो रहा है। इसकी झलक दिखी राजस्थान में। जहां की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने मांग थी कि उनकी सभी संसदीय सीटों पर प्रियंका गांधी की रैली या रोड शो जरूर हो। राजस्थान कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने की मांग थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीधी टक्कर प्रियंका ही दे सकती हैं। इसके लिए राजस्थान के कांग्रेसियों ने अपने अध्यक्ष राहुल गांधी को हाशिए पर रखकर प्रियंका वाड्रा से प्रचार करने की अपील की।  

लेकिन इससे कांग्रेस की कैंपेनिंग टीम परेशान में पड़ गई थी, क्योंकि ऐसा करने से यह साफ संकेत जाएगा कि प्रियंका गांधी अपने भाई राहुल गांधी से ज्यादा लोकप्रिय हैं। लेकिन उन्हें क्या मालूम की यही तो प्रियंका गांधी वाड्रा का मकसद था। 

इन छह संकेतों से यह साफ हो जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की उल्टी गिनती शुरु हो गई है। जल्दी ही प्रियंका वाड्रा उनकी जगह ले सकती हैं। लेकिन यह स्वाभाविक प्रक्रिया के तौर पर नहीं हो रहा है। बल्कि इसके पीछे लंबी चौड़ी साजिश रची गई है। 

वैसे माय नेशन ने इस बात के संकेत उसी समय दे दिए थे, जब प्रियंका को कांग्रेस महासचिव बनाया गया था।