चुनाव पूर्व अंतरिम बजट के बारे में आम धारणा यही रहती है कि इसमें खजाने से मतदाताओं के हर वर्ग को लुभाने की कोशिश होगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली की अनुपस्थिति में पीयूष गोयल द्वारा प्रस्तुत बजट की एक कसौटी यकीनन यही थी। 

बजट में कोई सख्त कदम नहीं उठाना तथा सभी वर्गों के लिए कुछ न कुछ रियायत या प्रत्यक्ष लाभ देने की कोशिशों को अर्थशास्त्र से ज्यादा राजनीतिक शास्त्र माना जाएगा। कितु इस बजट का यहीं तक सीमित करने से इसका पूर्ण और निष्पक्ष आकलन नहीं हो पाएगा। 

चुनाव को ध्यान में रखते हुए भी विकास के व्यापक विजन और कार्ययोजनाओं वाला बजट है। गोयल ने अपने भाषण के अंत में कहा कि यह सिर्फ अंतरिम बजट नहीं, देश के विकास यात्रा का माध्यम है। आगे उन्होंने कहा कि हम देशवासियों के बलवूते पर भारत को दुनिया का एक अ्रगणी देश बनाएंगे। हमने एक साथ मिलकर केवल नींव रखी है, अब भारत की जनता के साथ मिलकर देश की भव्य इमारत बनाने जा रहे है। 

इसका अगर सीधे शब्दों में अर्थ लगाएं तो बजट के माध्यम से नरेन्द्र मोदी सरकार ने मतदाताओं से कहा है कि अभी तक हमने देश को दुनिया का प्रमुख देश बनाने के लक्ष्य की दृष्टि से नींव तो डाल दिया है लेकिन इमारत बनाया जाना शेष है।  यानी इस इमारत को बनाने के लिए हमें आगे भी काम करने का मौका दें। 

इस बजट में हम अनेक कमियां निकाल सकते हैं, किंतु अंतरिम बजट तो छोड़िए मुख्य बजट मे भी राष्ट्र के भावी लक्ष्य या नवनिर्माण की इतनी व्यापक स्पष्ट रुपरेखा नहीं देखी गई।

पिछले साल के कुल खर्च 24 लाख 57 हजार 235 करोड़ से बढ़कार 27 लाख 84 लाख 200 करोड़ का बजट पेश किया गया है। यह वृद्धि 13.3 प्रतिशत है। इसमें सभी वर्ग के मतदाताओं को खुश करने के साथ इसमें देश के विकास तथा समाज के सभी तबको को उसकी मुख्यधारा में रखने का एक व्यापक दर्शन है। 

इस बार का बजट 2030 तक के भारत का लक्ष्य निर्धारित कर देना और उसको पूरा करने के लिए 10 आयामों की घोषणा इस बजट को देश निर्माण का एक रोडमैप बना देता है। सरकार कोई भी हो यदि उन आयामों पर आगे बढ़ती है तो भारत निश्चय ही समाज के सभी समूहों को बेहतर जिन्दगी देने के साथ पूरी तरह सुरक्षित एवं दुनिया में प्रभावी देश के रुप में स्थिर आधार पर खड़ा हो पाएगा।

 अगले 10 वर्षों में भारत को 10 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य अत्यंत कठिन है लेकिन बजट की खासियत यही है कि पीयूष गोयल का भाषण इस तरह से तैयार किया गया था और हर क्षेत्र के आंकड़े इस तरह से दिए गए कि पहली नजर में लगता है कि वाकई ऐसा हो सकेगा। 

अर्थव्यवस्था में आंकड़ों का महत्व तो है, पर केवल आंकड़ा ही अर्थशास्त्र नहीं होता, इसके पीछे का दर्शन और क्रियान्वयन का तरीका महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आंकड़े इसी से निकलते हैं। 

इन दस आयामों को देखें तो यदि भारत का सामाजिक और भौतिक आधारभूत संरचना सुद्ढ़ हुआ यानी सबको छत, स्वास्थ्य, स्वच्छ वातावरण, समुचित शिक्षा मिले, सुदूर गांव तक का डिजिटलीकरण हो जाए,इलेक्ट्रिक वाहनों में दुनिया में आगे निकल जाए तो कितना बदलाव आ जाएगा इसकी कल्पना करिए। अन्य आयामों में समाज के निचले स्तर को फोकस कर गांवों की अर्थव्यवस्था को सशक्त करते हुए भारत को वैश्विक विनिर्माण का हब बनाने, गंगा सहित सभी नदियों को स्वच्छ कर देने, सबको स्वच्छ पेयजल, सूक्ष्म सिंचाई, समुद्र का पूरा उपयोग, तटीय क्षेत्र का पूरा विकास, अंतरिक्ष में उंची छलांग, और्गेनिक कृषि उत्पादन, कृषि का आधुनिकीकरण, स्वास्थ की हर संभव सुविधायें तथा लोगों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए व्यवस्थायें, नौकरशाही का लोकतांत्रिकरण... आदि ऐसे पहलू हैं जिनकी कल्पना तो हम करते रहे हैं पर एक साथ समग्र रुप में देश के नवनिर्माण के लिए इसे बजट में प्रस्तुत किए जाने का अतीत हमारे पास उपलब्ध नहीं हो पाया। 

हालांकि सपना देखने और उसे पूरा करने में जमीन आसमान का अंतर हो जाता है। इसलिए विजन और रुपरेखा बिल्कुल सही होते हुए भी भारत के इतिहास, राजनीति, और नौकरशाही के चरित्र के आलोक में इनके पूरा होने को लेकर आश्वस्त होना कठिन है। यह बात अलग है यह बजट सपनों के साथ एक-एक पक्ष को ठीक प्रकार से कैलकुलेट कर इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि आसानी इसकी आलोचना नहीं हो सकती। 

एक आधार के रुप में अभी तक सरकार ने जो कुछ किया है उसको संक्षेप में देखा जाए। इस बार आर्थिक सर्वेक्षण नहीं आया। पीयूष लेकिन गोयल के बजट भाषण में 2014 से दिसंबर 2018 तक की लघु आर्थिक समीक्षा तथा अपने पूर्व बजट की घोषणाओं के क्रियान्वयन का ऐसा नोट प्रस्तुत किया है जिससे यह साबित हो कि हर क्षेत्र में अर्थव्यवस्था ने संतोषजनक प्रगति किया है तथा हर समूह के कल्याण और रक्षण के सभी पक्षों का ध्यान रखा है। 

इसमें कुछ बातें सही भी हैं। मसलन, स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय निर्माण 98 प्रतिशत गांवों तक पहुंचा है। 5 लाख 45 हजार गांव खुले शौच से मुक्त हुए हैं। 50 लाख 80 हजार बस्तियों में पक्की सड़के बन चुकी हैं और शेष में बन रहीं हैं। इनके लिए 90 हजार करोड़ा का आवंटन है। 

2014-18 के बीच प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पहले के मुकाबले पांच गुणा ज्यादा घर निर्मित हुए है। 2014 तक ढाई करोड़ परिवार बिना बिजली के थे। सौभाग्य योजना से लगभग हर घर को बिजली का मुफ्त कनेक्शन उपलब्ध करा दिया गया। 

मार्च 2019 तक सभी इच्छुक परिवारों को कनेक्शन मिल जाएगा। उज्जवला योजना के तहत साढ़े आठ करोड़ गैस कनेक्शन दिए गए हैं। डिजिटल इंडिया में काफी प्रगति हुई है। भारत विश्व में मोबाइल डेटा प्रयोग करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है। इसमें पिछले पांच वर्षों 50 गुणा वृद्धि हुई हैं। मोबाइल एवं उसके उपकरण बनाने वाली कंपनियां दो से बढ़कर 268 हुई है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो 21 एम्स काम कर रहे हैं उनमें 14 तो 2014 में की गई घोषणा में बने है। 


एक करोड़ युवाओं को कौशल विकास योजना में प्रशिक्षण मिलने का दावा है। मुद्रा योजना के तहत 7 लाख 23 हजार करोड़ रुपए का कर्ज मिलना भी बताता है कि स्वरोजगार की दिशा में प्रगति हुई है। 

लघु एवं सूक्षम उद्योग को एक करोड़ तक का कर्ज 59 मिनट में दिए जाने की भी प्रगति का दावा है। इस तरह देखें को बजट भाषण द्वारा सरकार ने यह विश्वास दिलाने की कोशिश की है कि हमने सही दिशा में सबको फोकस में रहते हुए प्रगति किया है और आगे भी करेंगे। हम जानते हैं कि जितना दावा होता है उसमें थोड़ी कमी रहती है। यहां भी है।

 अब आगे की कुछ योजनाओं पर ध्यान दीजिए। कृषि और  किसान हाल के वर्षों में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। वे एकमुश्त मतदाता भी हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि किसानों के लिए एक नई योजना है जिसके तहत दो हेक्टेयर तक की जमीन वाले किसानों उनके खाते में तीन किश्तों में 6 हजार रुपया प्रतिवर्ष स्थानांतरित किया जाएगा। यह छोटी राशि लगती हैं लेकिन ज्यादातर छोटे किसान 5 से 10 हजार कर्ज ही लेते हैं। 


किसानों के लिए कर्ज की राशि रिकॉर्ड 11 लाख 66 हजार करोड़ कर दिया गया है। गोसंरक्षण के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का गठन विलंब से उठाया गया उचित कदम है। मछली पालन, पशुपालन करने वालों को भी किसान की श्रेणी में लाकर उनको क्रेडिट कार्ड देना तथा उस पर ब्याज में छूट भी प्रोत्साहित करने  वाला है। अनुसूचित जाति जनजाति के आवंटन में भारी वृद्धि आलोचकों का मुंह बंद करने का प्रयास है। 

उधर राष्ट्रीय शिक्षा योजना और स्वास्थ्य महकमे की बजट वृद्धि सामाजिक विकास की प्रतिबद्धता दर्शाने के लिए है। 

मध्यमवर्ग के लिए सबसे बड़ा कदम 5 लाख तक की आय सीमा को पूरी तरह कर्ज मुक्त करना माना जा रहा है। यह अपेक्षित भी था। पर इसके अलावा भी अनेक कदम हैं। मसलन, नई पेंशन योजना को और उदार बनाते हुए कर्मचारियों की हिस्सेदारी तो 10 प्रतिशत ही रहेगी सरकार 14 प्रतिशत देगी।


 बोनस आकलन की सीमा को 3 हजार से बढ़ाकर 10 हजार किया गया है। ईएसआई के लाभ की आय सीमा काफी बढ़ा दी गई है। ब्याज पर टीडीएस की सीमा 10 हजार से 40 हजार करना सेवानिवृत्त एवं सामान्य मध्यमवर्ग को खुश करने वाला रास्ता है। 42 करोड़ असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सामजिक सुरक्षा की घोषणा भी इस बजट की एक प्रमुख विशेषता है। स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान योजना व जीवन ज्योति तो है ही। 


सुरक्षा बीमा योजना के साथ प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन की योजना आरंभ हुई है। इसके तहत 60 वर्ष की उम्र के बाद न 3 हजार पेंशन मिलेगा। इससे 10 करोड़ श्रमिकों को लाभ होने की संभावना है। पांच वर्षों में एक लाख डिजिटल गांव बनाया जाएगा।  


सरकार के लिए संतोष का विषय यह है कि प्रत्यक्ष कर 2013-24 के 5 लाख 38 हजार करोड़ की जगह 12 लाख करोड़ हुआ है। करदाताओं की संख्या 3.79 करोड़़ से 6.85 करोड़ हो गई है। 


जितना सम्मानजनक शब्द करदाताओं के बारे में प्रयोग किया गया वैसा कभी नहीं हुआ। कहा गया कि आपने जो कर दिया उससे हम गरीबों के कल्याण का कार्यक्रम तथा आधारभूत संरचना का विकास कर रहे हैं। इस कारण आगे से करदाताओं को परेशानी न हो इसलिए ज्यादा सरलीकरण एवं पारदर्शी बनाया गया है। 


सरकार की चिंता व्यापारी वर्ग है। कई कदमों से वह नाखुश है जिसमें जीएसटी प्रमुख है। 250 करोड़ टर्न ओवर वाली कंपनियों का कर घटा दिया गया। जीएसटी में तो पहले ही कमी कर दी गई थी। अब एक सीमा तक वाली कंपिनयों को तीन महीने पर जीएसटी रिटर्न भरना होगा। इसमें 90 प्रतिशत व्यापारी आ जाएंगे। 


बहरहाल, सभी वर्गों के लिए इतना कुछ करते हुए भी अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे तेज विकसित बनाए रखना हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला है। सबसे चिंता राजकोषीय घाटे की थी जो पिछले वर्ष के 3.3 प्रतिशत लक्ष्य को पा चुका है तथा अगले वर्ष 3.4 प्रतिशत हो सकता है। चालू खाते का घाटा 2.5 प्रतिशत तक सीमित रखना भी उपलब्धि है। 


विकास दर महंगाई दर से ज्यादा है। साढ़े चार वर्षों में औसत महंगाई दर 4.6 प्रतिशत रहा है। इन साढ़े चार वर्षों में 239 अरब डॉलर विदेशी निवेश आने का दावा सच है तो इसे बड़ी कामयाबी मानी जा सकती है। देखना है जितनी घोषणाएं हुईं हैं उनका कितना धरातल पर उतरता है। पर इसे कुल मिलाकर चुनाव पूर्व की राजनीति के अनुसार एक बेहतर बजट कहा जा सकता है।

 
अवधेश कुमार

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में नियमित रुप से कॉलम लिखते रहते हैं। उनका राजनीतिक नजरिया बजट जैसे उलझे विषय को भी आम पाठकों को सरलता से समझा देता है।