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एक धागा बन गया मंगलसूत्र, खुदाई में मिली थी पहली डोरी

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छठी शताब्दी से जुड़ा है मंगलसूत्र का इतिहास

हिन्दू धर्म में मंगलसूत्र को एक ऐसा पवित्र बंधन माना जाता है  जो पति और पत्‍नी के रिश्ते को बुरी नजर से बचाता है। मंगलसूत्र का इतिहास छठी शताब्दी से जुड़ा है। 

 

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कब और कहां से हुई शुरुआत?

मंगलसूत्र का ज़िक्र शंकराचार्य की किताब ‘सौंदर्य लहरी’ में मिलता है। मंगलसूत्र के साक्ष्य मोहन जोदाड़ो की खुदाई में मिले।मंगलसूत्र की परंपरा छठी शताब्दी में शुरू हुई थी। 

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दक्षिण भारत में शुरू हुई थी मंगलसूत्र की परम्परा

मंगलसूत्र पहनने की शुरुआत सबसे पहले दक्षिण भारत से हुई। फिर  धीरे-धीरे पूरे भारत में यह प्रचलित हो गया।  तमिलनाडु में इसे थाली या या थिरू मंगलयम कहते हैं। 

 

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कुछ जगहों पर नहीं पहनतीं?

भारत में ऐसे कई समुदाय हैं, जिनमें मंगलसूत्र नहीं पहना जाता है बल्कि अन्य दूसरे गहने पहने जाते हैं  हिंदू परंपरा के अनुसार, मंगलसूत्र पति की लंबी उम्र के लिए पहना जाता है। 


 

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शुभ धागे के रूप में माना जाता था मंगलशुभ

पहले  शादी ब्याह पर हल्दी या कुमकुम में भिगोया हुआ पीला धागा लड़की की गर्दन में पहनाया जाता था। बदलते समय ने मंगलसूत्र के तौर पर पीले धागे की जगह काले और सोने के मोतियों ने ले ली

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मंगलसूत्र की मान्यता

मान्यता है कि मंगलसूत्र में 9 मनके होते हैं।  ये मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं।  इन 9 मनकों को पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि के प्रतीक के तौर पर भी माना गया है। 

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कब उतारा जाता है मंगलसूत्र?


विधवा होने पर या सांसारिक मोह माया को त्यागते समय मंगलसूत्र उतारा जाता था। 

 

 

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