लियू जियाओबो को 2010 में नोबेल पुरस्कार मिला था। लियू को तब से नज़रबंद कर दिया गया था। 
लियू जियाओबो पर तियानआनमान चौराहे पर हुए प्रदर्शन की अगुवाई करने का आरोप था। नज़रबंदी के दौरान ही पिछले साल जियाबाओ की मौत हो गई थी। लियू जियाओबो को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आरोप में 11 साल की सज़ा सुनाई गई थी। जर्मनी के नाज़ी काल के बाद वह ऐसे पहले नोबेल पुरस्कार विजेता हैं जिनकी मौत जेल में हुई हो।
जियाओबो की विधवा पर कोई आरोप नहीं था फिर भी वो घर में नज़रबंद थीं। उनकी रिहाई के लिए यूरोपिय देशों से कूटनीतिक प्रयास किए जा रहे थे। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरफ से भी लियू जिया की रिहाई की मांग की जा रही थी। इस दौरान लियू जिया ने जर्मनी जाने की इच्छा जताई थी, जहां चीन का एक साहित्यित जमात बसा हुआ है। लियू के रिश्तेदारों ने उनकी रिहाई पर खुशी जताते हुए कहा है कि 8 सालों की नज़रबंदी के दौरान वो मानसिक आघातों से गुज़रीं हैं। जर्मनी में वो अपने लोगों के साथ रह कर इन ज़ख्मों से उबर सकती हैं। लियू जिया की रिहाई कि पुष्टि करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वो जर्मनी मेडिकल चेकअप के लिए गई हैं।