Goa Village Holi: यहां हाेती है आग की होली, अंगारों के नीचे दौड़ते हैं Newly married couples, ये हैं मान्यताएं

By Surya Prakash Tripathi  |  First Published Mar 19, 2024, 7:39 AM IST

यूं तो भारत देश में होली का त्यौहार फूलों, रंगों, संगीत, लट्ठमार समेत कई प्रकार से पूरे हर्षेाल्लास के साथ होली का त्यौहार मनाया जाता है, लेकिन इसी भूमि के गाेवा में एक ऐसा गांव हैं, जहां आग की होली खेली जाती है।

गोवा। यूं तो भारत देश में होली का त्यौहार फूलों, रंगों, संगीत, लट्ठमार समेत कई प्रकार से पूरे हर्षेाल्लास के साथ होली का त्यौहार मनाया जाता है, लेकिन इसी भूमि के गाेवा में एक ऐसा गांव हैं, जहां आग की होली खेली जाती है। अपने अनूठे अनुभव के लिए गोवा के समुद्र तट से परे मोल्कोर्नम गांव में होने वाली इस पर्व को जोश और जुनून देखते ही बनता है। 

 

बसंत की शुरूआत से ही शुरूहो जाता है त्यौहारी सीजन
गोवा में पारंपरिक हिंदू त्योहार शिगमोत्सव बसंत के आगमन का प्रतीक है और इसे बड़े उत्साह से मनाया जाता है। जो 26 मार्च से 8 अप्रैल तक चलता है। होली का उत्सव पारंपरिक रूप से एक रात पहले होलिका दहन के साथ शुरू होता है। क्यूपेम के मोलकोर्नम गांव में लोग आग से खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस त्यौहार को शेनी उजो या ज़ेनी उज्जो कहा जाता है।

 

दक्षिण गोवा की अग्नि अनुष्ठान शेनी उजो के बारे में जाने
शेनी का अर्थ है सूखे गाय के गोबर का गोल केक, जबकि उजो का अर्थ है आग। ग्रामीण गोवा में, शेनिस मिट्टी के चूल्हों को जलाने के लिए ईंधन के स्रोत के रूप में काम करते हैं। आग प्रज्वलित होने पर, ये शेनियां अगरबत्तियों की तरह बिना आग के धीरे-धीरे जलती हैं।

सुपारी के पेड़ों को काटकर हाेता है होलिका दहन
होली से एक रात पहले आधी रात में स्थानीय लोग क्यूपेम में श्री मल्लिकार्जुन मंदिर के पास इकट्ठा होते हैं। जहां ग्रामीण 3 पूर्ण विकसित सुपारी के पेड़ों को काटते हैं और पारंपरिक संगीत के साथ इन पेड़ों को अपने कंधों पर ले जाते हैं। फिर इनका उपयोग अनुष्ठान नृत्य में किया जाता है। जो लोग सुपारी लाते हैं। आयोजन की तैयारी के लिए मांसाहारी भोजन और शराब से पूरी तरह दूरी बनाई रखी जाती है।

 

संतान प्राप्ति के लिए जलते अंगारों के नीचे दौड़ते हैं नवविवाहित कपल
ये पेड़ क्षेत्र में तीन अलग-अलग स्थानों पर लगाए गए हैं। होलिका के प्रतीक हैं, ठीक उसी तरह जैसे उत्तरी भारत में होता है। जहां होलिका दहन के लिए लकड़ी जलाई जाती है। पेड़ों की टहनियों का उपयोग जलते हुए गोबर के उपलों या शेनियों पर प्रहार करने के लिए किया जाता है। जिससे अंगारे पैदा होते हैं, जो हर जगह गिरते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इन अंगारों के नीचे नृत्य करना भाग्यशाली है। नवविवाहित जोड़ों को संतान प्राप्ति के लिए जलते अंगारों के नीचे दौड़ने के लिए भी जाना जाता है।

 

ताड़ के पेड़ पर चढ़े व्यक्ति पर फेंके जाते हैं जलते गोबर के उपले
अनुष्ठान के हिस्से के रूप में एक व्यक्ति माडी (ताड़ के पेड़) पर चढ़ जाता है, जबकि अन्य लोग उन पर जलते हुए गोबर के उपले फेंकते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इससे चढ़ने वाले को कोई नुकसान नहीं होता बल्कि वह शुद्ध हो जाता है। पूरा गांव चिंगारियों से जगमगा उठता है और उस परंपरा को रोशन करता है, जो ग्रामीण गोवा की संस्कृति के मूल में है। मोलकोर्नेम गांव, गोवा की राजधानी पणजी से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है। 

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