कभी काम के नहीं मिलते थे पूरे पैसे, अब उसी कला ने दिलाई बड़ी सक्सेस, नेशनल अवार्ड विनर हैं मुरादाबाद के इकराम

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Feb 24, 2024, 9:33 PM IST

मुरादाबाद के इकराम हुसैन का ​जीवन संघर्षों में गुजरा। ज्यादा पढ़े-लिखे तो नही हैं। पर उनका दिमाग ऐसा है कि बड़े-बड़ों को मात देता है। मेटल वर्क में स्टेट से लेकर नेशनल अवार्ड विनर हैं। कॉलेज में स्टूडेंट्स को भी ट्रेनिंग देते हैं।

मुरादाबाद। गरीब परिवार में जन्मे आर्टिस्ट इकराम हुसैन की बचपन से ही कला के प्रति रूचि थी। इसी वजह से एजूकेशन की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे सके और कला के पुजारी बन गए। कम उम्र में ही इंग्रेविंग ब्रास (ब्रास पर की जाने वाली नक्काशी, मेटल वर्क या मेटल क्राफ्ट) का काम सीखना शुरु कर दिया। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि उनके यहां पीढ़ियों से यह काम होता रहा है। पिता हाजी अब्दुल हमीद भी यही काम करते थे। उन्हें गुरु बनाया और अपना काम जारी रखा। 

8 साल की उम्र से नक्काशी

इकराम हुसैन 8 साल की उम्र से ही मेटल पर नक्काशी कर रहे हैं। 70 के दशक के दिनों को याद करते हुए इकराम कहते हैं कि बचपन में मॉं-पिता जो पैसे देते थे। उसे गुल्लक में डाला करते थे। गुल्लक भर गया तो उसमें से 3 रुपये निकले। उन्हीं कुछ पैसों से सामाना लाया और लकड़ी पर काम शुरु किया था। समय के साथ धीरे-धीरे काम सीखता गया। एक बार किसी परिंदे, जानवर या आदमी की तस्वीर देख लेता था तो दिमाग में छप जाता था। उसी से मेटल पर नक्काशी करनी शुरु कर दी। एक दिन दोपहर के समय पिता कहीं गए हुए थे तो मेटल पर मैंने एक नक्काशी का काम किया। वह लौट कर आएं तो उस काम के लिए शाबाशी दी।

 

काम का नहीं मिला पैसा तो खुद बाजार में निकले

यह वह दौर था। जब मेटल पर नक्काशी के बदले बहुत कम पैसे मिलते थे। पर उन्हें इस कला से इतना प्रेम था कि वह हमेशा नयी-नयी चीजें बनाते थे। माली हालत ठीक नहीं थी तो मेटल पर नक्काशी करने वाले प्रतिष्ठानों पर काम करना पड़ा। तब उन्हें काम के बदले पूरा पैसा नहीं मिलता था। कुछ जगहो से दुत्कार कर भगाया भी गया। इससे परेशान होकर एक दिन उन्होंने खुद का काम शुरु किया और अपना मेटल वर्क लेकर बाजार में निकल गए। उसके बदले इकराम को अच्छा पैसा मिला। बस, वहीं से उन्होंने अपना काम शुरु करने का फैसला लिया।

2018 में नेशनल अवार्ड

इकराम हुसैन के नक्काशी के काम को लोगों ने पसंद किया। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में उनका मेटल वर्क बिका। इकराम कहते हैं कि उन्होंने अपना पूरा जीवन कला को समर्पित कर दिया। इसी वजह से शादी तक नहीं की। ब्रास पर नक्काशी के काम के लिए इकराम हुसैन को साल 2018 में नेशनल अवार्ड भी मिला। साल 2013 में डॉ. राम मनोहर लोहिया पुरस्कार मिला। हाल ही में उन्‍होंने कलश पर राम दरबार भी बनाया है, लोगों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है।

 

नामी-गिरामी इंस्टीट्यूट्स में दी ट्रेनिंग

जिस काम के बदले उन्हें पूरा पैसा नहीं मिलता था। उसी कला ने इकराम हुसैन को इतनी प्रसिद्धि दी कि अब बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट्स में उन्हें बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया जाता है। मार्च 2018 में उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फैशन टेक्नोलॉजी के 50 छात्रों को मेटल क्राफ्ट इंग्रेविंग का प्रशिक्षण दिया। नवम्बर 2017 में उपेंद्र महार​थी शिल्प अनुसंधान संस्थान, पटना के 200 छात्रों को ट्रेनिंग दी। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी उनकी तारीफ की और गवर्नर ने अवार्ड से भी सम्मानित किया।

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