भारत के लिए क्यों जरुरी है चीफ ऑफ डिफेन्स

By Team MyNationFirst Published Aug 15, 2019, 1:35 PM IST
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वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में भारत कभी भी पाकिस्तान और चीन के साथ जंग जैसे हालातों में पड़ सकता है। कश्मीर के विभाजन जैसे भारत के आंतरिक मुद्दे पर इन दोनो देशों की प्रतिक्रिया ने स्पष्ट कर दिया है उनके इरादे नेक नहीं हैं। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी ने चीफ ऑफ डिफेन्स का पद सृजित करने की घोषणा की है। जो कि तीनो सेनाओं के बीच समन्वय का काम कर सके। इस पद की जरुरत सबसे पहले करगिल की जंग के दौरान महसूस की गई थी। 
 

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से तीनों सेनाओं के सेनापति चीफ ऑफ डिफेंस यानी सीडीएस का पद गठित करने का बड़ा ऐलान किया। उन्होंने कहा कि सभी रिपोर्टों में कहा गया कि हमारी तीनों सेनाओं जल, थल, नभ के बीच समन्वय तो है, लेकिन आज जैसे दुनिया बदल रही है ऐसे में भारत को टुकड़ों में सोचने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए अब हम चीफ ऑफ डिफेंस यानी सीडीएस की व्यवस्था करेंगे। उन्होंने कहा, इस पद के गठन के बाद तीनों सेनाओं के स्तर पर एक प्रभावी नेतृत्व मिलेगा। इस पद की काफी समय से मांग उठ रही थी। 

एकीकृत होगी सैन्य कमान
पीएम मोदी के इस बयान के बाद सैन्य बलों के लिए एकीकृत व्यवस्था बनाने पर चर्चा शुरु हो गई है। हालांकि औपचारिक रुप से अभी चीफ ऑफ स्टाफ (सीओएससी) का पद होता है।  चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी में सेना, नौसेना और वायुसेना प्रमुख रहते हैं। सबसे वरिष्ठ सदस्य को इसका चेयरमैन नियुक्त किया जाता है।  यह पद वरिष्ठतम सदस्य को रोटेशन के आधार पर रिटायरमेंट तक दिया जाता है। लेकिन यह वरिष्ठता के आधार पर बनाई गई महज एक औपचारिक व्यवस्था है। एक सक्षम और प्रभावी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाने की मांग बहुत पुरानी है। 

करगिल युद्ध के दौरान महसूस हुई थी समन्वय की कमी
करगिल युद्ध के समाप्त होने के बाद करगिल रिव्यू कमिटी का गठन किया गया था। करगिल रिव्यू कमिटी ने पाया कि युद्ध के दौरान सेना की विभिन्न शाखाओं के बीच संचार और प्रभावी तालमेल की कमी थी। इस चीज को देखते हुए कमिटी ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद बनाने का सुझाव दिया था। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को तीनों सेनाओं के बीच तालमेल स्थापित करने की जिम्मेदारी और सैन्य मसलों पर सरकार के लिए सिंगल पॉइंट सलाहकार के तौर पर काम करने की जिम्मेदारी सौंपने का सुझाव दिया गया। सुझाव दिया गया था कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के चेयरमैन पद का कार्यकाल 2 साल रखा जाए जिसे बढ़ाया जा सकता है।

राजीव गांधी के समय भी हुई थी अनुशंसा
राजीव गांधी की सरकार के दौरान उनके मित्र और सरकार में मंत्री अरुण सिंह ने भी अपनी रिपोर्ट में  चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ के पद के सृजन की अनुशंसा की थी। लेकिन तब से अब तक कि सरकारों ने इस तरह की सभी रिपोर्ट  को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। 
हालांकि  चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की मांग को तो रद्द कर दिया गया लेकिन चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी के गठन पर सहमति बन गई। चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी के चेयरमैन तीनों सेनाओं के बीच तालमेल स्थापित करने के लिए जिम्मेदार हैं लेकिन उनके पास ज्यादा पावर नहीं होती है। चेयरमैन की सहायता एकीकृत रक्षाकर्मी (इंटेग्रेटिड डिफेंस स्टाफ-आईडीएस) नाम का संगठन करता है। 

अभी की व्यवस्था है महज औपचारिक
करगिल रिव्यू कमिटी के सुझावों के बाद 23 नवंबर, 2001 को इस संगठन की स्थापना हुई। यह नई दिल्ली में स्थित है। इसके जिम्मे भारतीय सशस्त्र बलों की विभिन्न शाखओं के बीच समन्वय और मुद्दों की प्राथमिकता तय करना है। इसमें भारतीय थलसेना, भारतीय नौसेना, भारतीय वायुसेना, विदेश मंत्रालय, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, रक्षा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल हैं। आईडीएस का नेतृत्व डेप्युटी चीफ्स ऑफ इंटेग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के साथ चीफ ऑफ इंटेग्रेटिड डिफेंस स्टाफ करते हैं। यह संगठन चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी के चेयरमैन को सुझाव देता है और उनके काम में सहायता करता है। 

दुनिया के कई देशों में है इस तरह की व्यवस्था
कनाडा, फ्रांस, गाम्बिया, घाना, इटली, नाइजीरिया, सिएरा लिओन, स्पेन, श्रीलंका और यूनाइटेड किंगडम में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद है। जिन देशों में इस पद की व्यवस्था है, उनमें से ज्यादातर देशों में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सर्वोच्च सैन्य पद होता है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का मुख्य सैन्य सलाहकार होता है। इसके अलावा सेना की विभिन्न शाखाओं के बीच तालमेल स्थापित करने की जिम्मेदारी भी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की होती है। 

सेना के तीनो अंगों के बीच समन्वय के लिए जरुरी है यह कदम
इस व्यवस्था का सबसे बड़ा फायदा युद्ध के समय होगा। युद्ध के समय तीनों सेनाओं के बीच प्रभावी समन्वय कायम किया जा सकेगा। इससे दुश्मनों का सक्षम तरीके से मुकाबला करने में मदद मिलेगी। दरअसल सशस्त्र बलों की परिचालनगत योजना में कई बार खामियां सामने आई। 1962 में चीन के साथ भारत का युद्ध हुआ था। उस युद्ध में भारतीय वायुसेना को कोई भूमिका नहीं दी गई थी जबकि भारतीय वायुसेना तिब्बत की पठारी पर जमा हुए चीनी सैनिकों को निशाना बना सकती थी और उनके बीच तबाही मचा सकती थी। इसी तरह से पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध में भारतीय नौसेना को पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हमले की योजना से अवगत कराया गया। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रहते हुए इस तरह की कोई खामी नहीं रहेगी और सेना प्रभावी ढंग से दुश्मन से निपट सकेगी।

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