प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को जापान का दौरा किया। दोनों देशों के संबंध वैसे तो बहुत पुराने हैं लेकिन पीएम मोदी और जापानी पीएम शिंजो आबे के शासन काल में भारत-जापान के संबंध नए आयाम पर पहुंच चुके हैं। इसकी वजह है दोनों नेताओं के बीच गहरे निजी रिश्ते और वर्तमान वैश्विक परिस्थितियां -
भारत-जापान के संबंधों में नई गर्मजोशी दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपना दो दिवसीय दौरा खत्म करके जापान से लौट आए हैं।
देशों देशों के बीच 75(पिचहत्तर) अरब डॉलर की मुद्रा अदला-बदली(करेंसी स्वैंप) का समझौता हुआ। जिसकी मदद से विदेशी मुद्रा विनिमय के मामले में बड़ी राहत मिलेगी। साथ ही यह समझौता दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को और गहरा करेगा। इस समझौते के बाद से भारत जरूरत पड़ने पर 75 अरब डॉलर की पूंजी का इस्तेमाल कर सकता है।
यह समझौता भारत और जापान के संबंधों की गहराई दिखाता है। जो कि हमारे पीएम मोदी और जापानी पीएम शिंजो आबे के बीच मजबूत निजी रिश्तों की वजह से संभव हो सका है।
पीएम मोदी का स्वागत शिंजो आबे ने यामानशी शहर स्थित अपने निजी घर में किया। जापानी मीडिया के मुताबिक यह पहली बार है जब शिंज़ो आबे ने किसी विदेशी नेता का स्वागत अपने घर में किया।
Gratitude to the Japanese people for their affection.
I will always remember PM ’s kind gesture of taking me to his home. It is always a delight to meet him and discuss the way ahead for India-Japan ties. I thank him for his hospitality. pic.twitter.com/SKCtI2BAye
यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि पीएम मोदी और शिंजो आबे के बीच गहरे आपसी संबंध हैं। दोनों नेता अब तक 12(बारह) बार बैठक कर चुके हैं। पीएम बनने के बाद मोदी की आबे के साथ पहली बैठक सितंबर 2014 में हुई थी।
मोदी ने मई 2014 में पीएम के तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर अपना पहला दौरा जापान का ही किया था।
दोनों नेता जब भी मिलते हैं तो दोनों में आपसी रिश्तों की गर्मजोशी झलकती है। स्वाभाविक तौर पर इसकी झलक दोनों देशों के संबंधों में भी दिखाई देती है।
मोदी पीएम बनने के बाद से तीन बार जापान जा चुके हैं और जापानी पीएम शिंज़ो आबे भी 2014, 2015 और 2017 में भारत आ चुके हैं। 2005 से दोनों देशों के प्रमुख लगभग हर साल मिल रहे हैं। आबे और मोदी अब तक 12 बार मिल चुके हैं।
दोनों देशों के बीच भरोसे का आलम यह है कि सिर्फ जापान ही ऐसा देश है जिसे भारत में नॉर्थ-ईस्ट के संवेदनशील इलाको में निवेश की अनुमति मिली हुई है।
लेकिन मोदी-आबे के निजी संबंधों के अलावा एक दूसरी वजह भी है, जो भारत-जापान को नजदीक ला रही है। वह है चीन की आक्रामकता और विस्तारवाद। जिससे चीन और जापान दोनों ही प्रभावित हो रहे हैं।
जापान और भारत दोनों के रिश्ते ऐतिहासिक रुप से चीन से कड़वाहट भरे रहे हैं। दोनों देश चीन की योजना वन बेल्ट वन रोड का विरोध कर रहे हैं।
जिस तरह चीन-भारत के बीच सीमा विवाद है ठीक उसी तरह जापान के साथ भी चीन का समुद्री सीमा विवाद है।
दक्षिण चीन सागर में जापान ने युद्धपोत जेएस कागा की तैनाती की है जो अमरीकी सैन्य बेड़े का साथ दे रहा है।
जापान भारत के साथ भी सैन्य सहयोग बढ़ा रहा है। दोनों देशों के बीच सैन्य अभ्यास 'धर्मा गार्डियन' जल्दी ही होने जा रहा है। यह पू्र्वोत्तर भारत के जंगलों में होगा जिसका फोकस मुख्य रुप से जवाबी कार्रवाई पर रहेगा।
चीन हिंद महासागर में भी अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है और भारत को चारो ओर से घेरने की कोशिश कर रहा है। जो कि भारत के लिए चिंता का विषय है।
चीन की विस्तारवादी नीतियों से अमेरिका भी चिंतित है। दक्षिण चीन समुद्र में तो पिछले महीने दोनों देशों के युद्धपोत एक दूसरे से मात्र 41 मीटर की खतरनाक दूरी पर आ गए थे।
जापान और चीन के बीच 1931 में भीषण युद्ध हो चुका है। जिसका जिक्र चीन की किताबों में भी मिलता है। दोनों देशों के नागरिक एक दूसरे को उसी तरह नापसंद करते हैं, जिस तरह भारत-पाकिस्तान के लोग।
भारत और जापान के बीच सहयोग बढ़ने का मुख्य कारण चीन से दोनों की एक जैसी शत्रुता ही है। यही वजह है कि जापान के सहयोग से भारत अपनी चीन से लगी सीमा पर आधारभूत ढांचे का तेजी से विकास कर रहा है। इन इलाकों पर चीन अपना दावा करता है।
इसके अलावा जापान का अफ़्रीकी देश ‘जिबूती’ में एक बड़ा नौसैनिक बेस है। यह पश्चिम के देशों के साथ साथ भारत के लिए भी अहम है।
क्योंकि भविष्य में किसी भी तरह के बड़े संघर्ष की आशंका होने पर वैश्विक गठबंधन ही काम आते हैं।
Speaking at the joint press meet with PM . https://t.co/4KR0hnVKY2
— Narendra Modi (@narendramodi)