भारतीय अर्थव्यवस्था के और आधुनिक आकार लेने के साथ ही बैंको से वित्तीय धांधली पर लगाम लगाने के लिए मई 2016 को नया इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड लागू हुआ। 2014 के चुनाव में भ्रष्टाचार मुद्दा बना था; इसी के खिलाफ मोदी सरकार का गठन हुआ और सरकार ने करप्शन खत्म करने के अपने दावे की दिशा में इस नए कानून को लागू किया।
कारोबार के नाम पर बैंकों को धोखा देने वालों पर लगाम कसना शुरु हुआ; नए कानून की विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रो कोष ने भी तारीफ की। ईज़ औफ डूइंग बिज़नेस (व्यापार करने में आसानी) के क्रम में भारत की 30 पायदान की छलांग में ये भी एक कारण है।
कोड के प्रमुख बिंदु
- नए कानून के हिसाब से जब कोई फर्म अपना कर्ज नहीं चुका पाता है तो 180 दिनों के अंदर उसके एसेट का मूल्यांकन कर उसके खिलाफ जरूरी कार्रवाई की जा सकती है
- डिफॉल्टरों पर कार्रवाई के लिए अधिकत्म समय 270 दिन है, जिसमें 180 दिनों के अलावा 90 दिनों का ग्रेस पीरियड भी शामिल है
- डिफॉल्टरों की पहचान कर उनसे रिकवरी तय करने के लिए तमाम व्यवस्था की गई है
- व्यक्तिगत देनदारों के लिए कोड में दो व्यवस्थाएं ‘फ्रेश स्टार्ट’ (नई शुरुआत) और ‘इनसॉल्वेंसी रेज़ल्यूशन’ (दिवालिएपन से निजात) की गई है
- डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) या क़र्ज़ की उगाही के लिए अधिकरण और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) व्यक्तिगत और साझेदारी फ़र्मों या कंपनियों के दिवालियेपन को सुलाझाएंगे या कार्रवाई करेंगे
- दिवालियापन पेशेवरों और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) के रूप में एक नियामक की स्थापना हुई दिवालिया पेशेवरों, दिवालिया पेशेवर एजेंसियों और सूचना उपयोगिताओं पर निरीक्षण करने के लिए
- डिफॉल्टरों पर निगरानी रखने के लिए विषय से संबंधित पेशेवरों को रखा गया है और वहीं व्यावसायिक दिवालियेपन के मामलों को निपटने के लिए पेशेवरों की एजेंसी तमाम मानकों और कोडों को तय करेंगी
- ये दिवालिया व्यक्तियों का और फर्मों की सूचनाएं हासिल करेंगी और उनकी जांच-परख करेंगी जो डिफॉल्टरों के खिलाफ कार्रवाई में प्रमाण होगा
- कानून में विदेशों में रह रहे डिफॉल्टरों और दिवालिया लोगों से निपटने के लिए भी प्रावधान है
- दिवालिया पाये जाने की स्थिति में कंपनी के पूरे बोर्ड को बर्खास्त कर दिया जाएगा. शेयरहोल्डरों की तरफ से फर्म को चलाने के लिए नया प्रबंधक नियुक्त किया जायेगा जो कंपनी की आगे की दिशा तय करेगा। फिर भी शेयरहोल्डरों का हित सुरक्षित नहीं होता तो व्यवसाय खत्म कर उसकी नीलामी की जाएगी
- नवंबर में संहिता में एक संशोधन ने अंतिम रूप से प्रत्याशित प्रमोटरों और डिफॉल्टिंग कंपनियों के गलत प्रमोटरों और उनके संबंधित और जुड़े पार्टियों को संकल्प प्रक्रिया में तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए बोली लगाने से रोक दिया था
- नए कोड से पहले डिफॉल्टर निवेशक ना सिर्फ कंपनी की सत्ता से चिपकने में सक्षम थे बल्कि डेब्ट के निपटारे के मामले में बैंकिंग सिस्टम से भी छेड़छाड़ करने में कामयाब हो पा रहे थे
- लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री शिवप्रताप शुक्ला ने कहा कि नए कोड़ के आने के बाद 30 नवंबर 2017 तक नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के सामने 2434 मामले दर्ज हुए; डिफॉल्टर कंपनियों के लगभग 2304 मामले एनएलसीटी में ट्रॉंस्फर कर दिए गए हैं और कुल 2750 मामलों का निपटारा किया जा चुका है, साथ ही दिसंबर तक 1988 मामले लंबित थे
पुराने कानून असफल
- बीमार औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 और कंपनी अधिनियम, 1956 के पेंचीदे प्रावधान उधारदाताओं से वसूली करने और फर्मों के पुनर्गठन में सक्षम नहीं हो सके
- व्यक्तिगत दिवालियापन, राष्ट्रपति टाउन दिवालियापन अधिनियम, 1909 और प्रांतीय दिवालियापन अधिनियम 1 9 20, लगभग एक शताब्दी पुराने कानून हैं, इसने लोन हासिल करने वाले उद्यमियों के विश्वास पर भी नकारात्मक असर पड़ा और जब उधारकर्ता का विश्वास कमज़ोर होता है तो कर्ज़ लेने से हिचकते हैं
- संसद में बनी सहमति के मुताबिक भारत में कानूनी और ढांचागत मशीनरी वैश्विक मानकों के हिसाब से नहीं है। वित्तीय संस्थान अधिनियम 1993 और वसूली कार्रवाई और वित्तीय संपत्तियों के सुरक्षा और पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज अधिनियम 2002 के प्रावधान भी उगाही से संबंधित इच्छित परिणाम देने में सफल नहीं रहे
- नए कानून का उद्देश्य उद्यमशीलता, क्रेडिट की उपलब्धता को बढ़ावा देना, कॉर्पोरेट हितों, फर्मों और इंडिविजुअल्स का सही तरीके मैनेज करना साथ ही दिवालियेपन के संबंध में कानून को मजबूत करके सभी स्टेकहोल्डरों के हितों को सुरक्षित रखना है