मोदी सरकार के इस फैसले से अगले 25 साल तक नहीं तरसेगी दिल्ली

By Arjun SinghFirst Published Sep 5, 2018, 3:43 PM IST
Highlights

पूरा हो जाने के बाद दिल्ली में 25 साल तक नहीं होगी पानी की किल्लत, दिल्ली के अलावा, यूपी, राजस्थान, हरियाणा को होगा लाभ। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में छह राज्यों के सीएम ने किए हस्ताक्षर

ऊपरी यमुना बेसिन क्षेत्र में 4000 करोड़ रुपये की लागत वाली बहुउद्देशीय लखवाड़ परियोजना के निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने छह राज्यों के साथ मिलकर समझौता किया है। इस योजना की शुरुआत 42 साल पहले 1976 में की गई थी। लेकिन धन की कमी के चलते कुछ जमीनी निर्माण के अलावा कुछ आगे नहीं बढ़ा। 

परियोजना से जुड़े सिंचाई और पीने के पानी की व्‍यवस्‍था वाले हिस्‍से के कुल 2578.23 करोड़ के खर्च का 90 प्रतिशत (2320.41 करोड़ रुपये) केंद्र सरकार वहन करेगी जबकि बाकी 10 प्रतिशत का खर्च छह राज्‍यों के बीच बांट दिया जाएगा। इसमें हरियाणा को 123.29 करोड़ रुपये, उत्‍तर प्रदेश/ उत्‍तराखंड को 86.75 करोड़ रुपये, राजस्‍थान को 24.08 करोड़, दिल्‍ली को 15.58 करोड़ रुपये तथा हिमाचल प्रदेश को 8.13 करोड़ रुपये देने होंगे। यह पूरी परियोजना 3966.51 करोड़ रुपये की है। 

 केंद्रीय जल संसाधान मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार, 'इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद अगले 20-25 साल तक दिल्ली को पानी की किल्लत का सामना नहीं करना होगा। इससे राजस्थान के शहरों, उत्तर प्रदेश (आगरा एवं मथुरा) और हरियाणा को भी लाभ होगा।' इस समझौता ज्ञापन पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे, उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी हस्ताक्षर किए हैं। 

लखवाड़ परियोजना को 1976 में मंजूरी दी गई थी, लेकिन इस परियोजना पर कार्य 1992 में रोक दिया गया। लखवाड़ परियोजना के अंतर्गत उत्तराखंड में देहरादून जिले के लोहारी गांव के नजदीक यमुना नदी पर 204 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध बनना है। बांध की जल संग्रहण क्षमता 330.66 एमसीएम होगी। इससे 33,780 हेक्‍टेयर भूमि पर सिंचाई की जा सकेगी और यमुना बेसिन क्षेत्र वाले छह राज्‍यों में घरेलू तथा औद्योगिक इस्‍तेमाल और पीने के लिए 78.83 एमसीएम पानी उपलब्‍ध कराया जा सकेगा। परियोजना से 300 मेगावाट बिजली का उत्‍पादन होगा।

लखवाड़ परियोजना रेणुकाजी और किशाऊ बहुउद्देश्यीय प्रोजेक्ट के बाद तीसरी ऐसी बड़ी परियोजना है, जो दिल्लीवालों की पीने के पानी की समस्या को दूर करने के लिए शुरू की जा रही है। रेणुकाजी और किशाऊ परियोजना की रफ्तार काफी धीरे हैं। ये दोनों ही परियोजना अभी निर्माण की दशा में नहीं पहुंच पाई हैं। यानी ये भी भूमि अधिग्रहण और विस्थापित होने वाले लोगों के दिए जाने वाले मुआवजे के विवादों में ही अटकी हुई है। 

राष्ट्रीय राजधानी इस समय प्रतिदिन 200 मिलियन गैलन (एमजीडी) पानी की कमी का सामना कर रही है। जबकि की कुल अनुमानित मांग 1,113 एमजीडी है। एक बार पूरा होने के बाद लखवाड़ उत्तराखंड के व्यासी नदी परियोजना से जुड़े और दोनों मिलकर दिल्ली को 135 एमजीडी की आपूर्ति करेंगे।

रेणुकाजी और किशाऊ परियोजनाओं में दिल्ली के लिए क्रमशः 275 एमजीडी और 372 एमजीडी पानी उपलब्ध कराने की क्षमता है। व्यासी परियोजना के दिसंबर तक पूरी होने की संभावना है। 

किशाऊ परियोजना के तहत यमुना की सहायक नदी टौंस पर देहरादून जिले में 236 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध बनाया जाएगा, जिसकी संग्रहण क्षमता 1324 एमसीएम होगी। इससे 97000 हेक्‍टेयर जमीन पर सिंचाई की जा सकेगी, 517 एमसीएम पेयजल उपलब्‍ध कराया जा सकेगा और 660 मेगावाट बिजली का उत्‍पादन होगा। रेणुकाजी बहुउद्देशीय परियोजना के तहत यमुना की सहायक नदी गिरि पर हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में 148 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण किया जाएगा। इससे दिल्‍ली को 23 क्‍यूबिक पानी की आपूर्ति होगी और बिजली की सबसे अधिक मांग के दौरान 40 मेगावाट बिजली का उत्‍पादन हो सकेगा।

ऊपरी यमुना बेसिन (लखवाड़ सहित) में इन सभी संग्रहण परियोजनाओं के पूरा होने के बाद 1,30,856 हेक्‍टेयर अतिरिक्‍त भूमि को सिंचाई का लाभ मिल सकेगा, विभिन्‍न तरह के इस्‍तेमाल के लिए 1093.83 एमसीएम पानी उपलब्‍ध होगा। इनकी बिजली उत्‍पादन क्षमता 1060 मेगावाट होगी।

उधर, पर्यावरण इन परियोजनाओं का यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि सेसमिक जोन में होने के चलते उत्तराखंड में इस तरह की परियोजनाओं को शुरू करना बड़ी आपदा को आमंत्रण देने जैसा हो सकता है। 
 

click me!