मुंबई आतंकी हमले के 10 साल बीत गए। कई लोग आज भी उस घटना को नहीं भुला पाए हैं। इन हमले में कइयों ने अपने परिचितों, सगे संबंधियों, बेटे बेटियों, मां-बाप को खोया। जो मारे गए वो तो चले गए लेकिन जो जिंदा है उस घटना यादकर सिहर उठते हैं।
नई दिल्ली—देश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाली मुंबई में आज से 10 साल पहले 26 नवंबर 2008 को एक बड़ा आतंकी हमला हुआ था। उस हमले की आज 10वीं बरसी है। इस हमले में लश्कर ए तैयबा के आतंकवादियों ने मुंबई में कई जगहों पर हमले कर 166 लोग की हत्या दी थी।
मुंबई आतंकी हमले के 10 साल बीत गए। कई लोग आज भी उस घटना को नहीं भुला पाए हैं। इन हमले में कइयों ने अपने परिचितों, सगे संबंधियों, बेटे बेटियों, मां-बाप को खोया। जो मारे गए वो तो चले गए लेकिन जो जिंदा है उस घटना यादकर सिहर उठते हैं।
भारतीय सुरक्षा बल के जवानों ने आतंकियों के हमले के बाद बड़ी दिलेरी के साथ लड़कर 9 आतंकियों मार गिराया था, जबकि उनमें से एक आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया था। जिसे बाद में अदालत से मौत की सजा मिलने के बाद उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया था। आतंकी कराची से नाव के रास्ते मुंबई में घुसे थे।
आतंकवादियों ने मुंबई के कई महत्वपूर्ण स्थानों को अपना निशाना बनाया था। आतंकवादियों ने सीएसटी रेलवे स्टेशन, ताज होटल, ओबराय होटल, लियो ओल्ड कैफे और नरीमन हाउस को अपना निशाना बनाया था।
हमले के 10 साल बाद भी नरीमन हाउस पर हुए हमले के निशान आज भी वहां की दिवारों पर देखने को मिलते हैं। आतंकी हमले के दौरान दो साल के बच्चे मोशे होल्त्सबर्ग की जान बचाने वाली सांद्रा सैमुअल ने बताया कि इस हमले के 10 साल बाद भी चबाड़ हाऊस से गोलियों के ‘‘निशान’’ आज भा देखने को मिलते हैं।
हमले के दौरान दो पाकिस्तानी आतंकवादी इस इमारत में घुस गए थे और मोशे के पिता रब्बी गैवरियल तथा उसकी (मोशे की) मां रिवका सहित नौ लोगों की हत्या कर दी थी। हालांकि, मोशे को सैमुअल ने बचा लिया था। सांद्रा सैमुअल आज भी उस घटना को याद कर सिहर उठती हैं।
केवल सांद्रा सैमुअल ही नहीं और भी कई लोग जिन्होंने उस दिन मौत को बहुत करीब से देखा था। 2008 की काली रात को कामा और अल्बलेस अस्पताल पर हमले के समय अस्पताल में डयूटी पर तैनात चौकीदार कैलाश घेगडमल आज भी वो पल याद करके सिहर उठते हैं जब आतंकवादी कसाब और उसके साथी ने उनसे महज दस फीट की दूरी से दूसरे साथी गार्ड को गोलियों से छलनी कर दिया था। इन आतंकवादियों ने पास के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस में 52 लोगों को मौत की नींद सुलाने के बाद इस अस्पताल का रुख किया था।
कैलाश बताते हैं कि उनके साथी बब्बन वालू ने गोलियों की आवाज सुनने के बाद अस्पताल में लगे दरवाजों को बंद करने का काम तेजी से शुरू कर दिया। लेकिन वालू अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे आतंकियों का निशाना बन गया। इससे वह घबरा कर एक पेड़ के पीछे छुप गए और बामुश्किल दस फीट की दूरी से उन्होंने इंसानी जिंदगियों को मौत बांट रहे कसाब को देखा था।
उन्होंने कहा कि पहले लगा कि यह शायद गैंगवार का नतीजा है लेकिन जब नारकर को उनके सामने कसाब ने मार डाला तो लगा मामला कुछ और है।
अस्पताल परिसर में प्रवेश करने के बाद कसाब और उसके सहयोगी ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे कर्मचारी, मरीज और उनके रिश्तेदार बहुत डर गए।
बाद में कैलाश हिम्मत दिखाते हुये पुलिस टीम को छठी मंजिल तक ले गये, जहां उनकी आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई, जिसमें दो पुलिसकर्मी मारे गए और वह और आईपीएस अधिकारी सदानंद दाते घायल हो गए।
इसी तरह अस्पताल में काम करने वाली नर्स मीनाक्षी मुसाले और अस्मिता चौधरी ने कहा कि उन्होंने फ्रिज, एक एक्सरे मशीन, दवा ट्रॉली और कुर्सियों का इस्तेमाल दूसरी मंजिल पर दरवाजा बंद करने के लिए किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आतंकवादी वहां घुस न सकें।
रात्रि पर्यवेक्षक सुनंदा चव्हाण ने कहा, "बच्चों और उनकी मां को सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य था। हमने बच्चों को घायल होने से बचाने के लिए दीवार के समीप सभी पालने रख दिये।"