जहां चीन की विकासदर की विकासदर नीचे की तरफ जा रही है. वहीं भारत की व्यवस्था मजबूत हो रही है. विभिन्न एजेंसियों की रेटिंग के बाद अब पीएम की अगुवाई में बनाई गयी पीएम एडवाइजरी काउंसिल का भी मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत है और देश की विकास दर सात फीसदी से साढ़े सात फीसदी के बीच रहेगी.
जहां चीन की विकासदर की विकासदर नीचे की तरफ जा रही है. वहीं भारत की व्यवस्था मजबूत हो रही है. विभिन्न एजेंसियों की रेटिंग के बाद अब पीएम की अगुवाई में बनाई गयी पीएम एडवाइजरी काउंसिल का भी मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत है और देश की विकास दर सात फीसदी से साढ़े सात फीसदी के बीच रहेगी. लेकिन पैनल का ये भी मानना है कि देश के सामने चुनौतियां बरकरार हैं.देश की अर्थव्यवस्था का मजबूती देने वाले बड़े आर्थिक कारक मजबूत हैं.
काउंसिल के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था की विकासदर 7 से 7.5 फीसदी रहेगी और विकास दर में सालाना 1 फीसदी का इजाफा हो सकता है.
अगर सरकार आर्थिक सुधारों की दिक्कतों को दूर करे तो तो इससे अच्छे परीणाम देखने को मिल सकते हैं. हाल ही में सीएसओ ने 2018-19 में देश की विकास दर को 7.2 फीसदी का रहने का अनुमान लगाया था. काउंसिल का कहना है कि राजकोषीय नियंत्रण के लक्ष्य में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए. फिलहाल सरकार को सोशल सेक्टर में ध्यान देना चाहिए. काउंसिल का कहना है कि विश्व की अर्थव्यवस्था बहुत बेहतर नहीं दिखाई दे रही है लेकिन देश की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में विकास होगा. भारत की अर्थव्यवस्था में विश्वस्तर पर हो रहे विकास का असर नहीं दिखाई देगा और देश की अर्थव्यवस्था 7 से 7.5 फीसदी के बीच ही विकासदर हासिल करेगी.
गौरतलब है कि चीन की अर्थव्यवस्था अपने 28 साल के निम्नतम स्तर पर आयी है. चीन की अर्थव्यवस्था दिसंबर की तिमाही में 6.2 फीसदी आंकी गयी है. जबकि भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर है.काउंसिल का कहना है कि आरबीआई द्वारा रूपए के प्रबंधन को मजबूत किया है जबकि विश्वभर में क्रूड की कीमतें बढ़ रही है और रुपए की कीमत में बदलाव देखा जा रहा था. उसके बावजूद रुपए में वो गिरावट नहीं देखने को मिली जिसकी आशंका जताई जा रही थी. काउंसिल का ये भी कहना है कि देश में वित्तीय बचत होनी शुरू हो गयी है और निजी बैंकों के कारण कर्ज में इजाफा हो रहा है. वित्तीय क्षेत्रों में सुधार करने चाहिए ताकि इस क्षेत्र में कार्य होता रहे. इस क्षेत्र में बाहरी प्रभावों के कारण चुनौतियां कम दिख रही हैं और निर्यात के मामले में सकारात्मक रूख देखने को मिल रहा है. कृषि क्षेत्र की समस्याओं को ध्यान दिया जाना चाहिए खासतौर से क्रेडिट और रोजगार के लिए खासतौर से मनरेगा जैसे कार्यक्रम के जरिए इसे दिया जा सकता है.