क्या देश में कायम होगा अंधेरा

By dhananjay Rai  |  First Published Aug 29, 2018, 4:52 PM IST

आपमें से किसी को अगर भारत के पहले सुपर हीरो शक्तिमान की याद होगी, तो उसके विलेन किल्विश का फेमस डायलॉग भी जरुर याद हो गा। वह बार बार कहता था -“अंधेरा कायम रहे”। अपने समय के इस बहुचर्चित विलेन की “अंधेरा लाने की” ख्वाहिश लगता है अब पूरी ही हो जाएगी। देश में अंधेरे का साम्राज्य कायम होने का खतरा मंडरा रहा है।

आपमें से किसी को अगर भारत के पहले सुपर हीरो शक्तिमान की याद होगी, तो उसके विलेन किल्विश का फेमस डायलॉग भी जरुर याद हो गा। वह बार बार कहता था -“अंधेरा कायम रहे”। अपने समय के इस बहुचर्चित विलेन की “अंधेरा लाने की” ख्वाहिश लगता है अब पूरी ही हो जाएगी। देश में अंधेरे का साम्राज्य कायम होने का खतरा मंडरा रहा है।

लेकिन इसकी वजह कोई सुपर-विलेन नहीं बल्कि वित्तीय है। दरअसल देश की 34 बिजली कंपनियों पर 1.77 लाख करोड़ का कर्ज है। इनमें कई कंपनियां देश के बिजली उत्पादन में योगदान करती हैं। इन कंपनियों में जिंदल, जेपी पॉवर वेंचर, प्रयागराज पॉवर, झाबुआ पॉवर, केएसके महानंदी, कोस्‍टल एर्नजन समेत 34 कंपनियां शामिल है।

अब इन कंपनियों पर दिवालिया घोषित होने का खतरा मंडरा रहा है। अगर दिवालिया होने की वजह से यह बिजली कंपनियां उत्पादन बंद कर देती है तो देश में बिजली की बड़ी किल्लत हो जाएगी। एक अनुमान के मुताबिक अगर ऐसा हुआ तो देश में लगभग 40 हजार मेगावाट बिजली की कमी हो सकती है।

यह मामला शुरु होता है 12 फरवरी, 2018 से। जब आरबीआइ ने सख्त निर्देश दिया था कि जो भी कंपनी 180 दिनों तक कर्ज नहीं चुकाती है, उनके खिलाफ नए इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) के तहत दिवालिया प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। यह 180 दिनों की मियाद 27 अगस्त को पूरी हो गई। इस नियम के दायरे में कई क्षेत्रों के साथ ही बिजली क्षेत्र की 34 कंपनियां भी आ गईं।

इनमें से अधिकांश कंपनियों के प्रोजेक्ट कोयला व गैस नहीं मिलने या उत्पादित बिजली के खरीदार नहीं मिलने से अधूरे पड़े हैं। 40 हजार मेगावाट क्षमता की इन कंपनियों पर बैंकों का 1.77 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है।

हालांकि आरबीआइ के दिशा निर्देश के खिलाफ उत्तर प्रदेश की कुछ बिजली कंपनियों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी। 34 में से 26 कंपनियां कोर्ट पहुंची थीं। उनको भी उम्मीद थी कि कोर्ट बिजली क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए राहत दे देगा।

लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साफ कर दिया है कि बिजली कंपनियों को आरबीआइ के नियम से अलग नहीं रखा जा सकता, लेकिन सरकार चाहे तो आरबीआइ एक्ट की धारा 7 के तहत केंद्रीय बैंक से बात कर सकती है। यानी केंद्र सरकार चाहे तो विशेष निर्देश दे सकती है। इस मामले में केंद्र पहले ही कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में विशेष समित बना चुकी है।

कोर्ट ने समिति को कहा है कि वह दो माह यानी 60 दिनों के भीतर इस बारे में फैसला करे। इस तरह से देखा जाए तो सरकार, आरबीआइ व बैंकों के पास 60 दिनों का समय है जिसमें वे बिजली कंपनियों पर बकाया कर्ज की वसूली को लेकर बीच का रास्ता निकाल सकते हैं।

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, आगे का रास्ता आरबीआई के रुख और कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट से तय होगा। दूसरा उपाय यह हो सकता है कि केंद्र मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाए, जहां पहले से ही एनपीए को लेकर समग्र तौर पर सुनवाई चल रही है। माना जा रहा है कि उसमें यह मामला भी उठाया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो सरकार और बैंक सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक इंतजार कर सकते हैं।

लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट का रुख भी इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरह होता है, तो देश के कई शहरों में अंधेरे का साम्राज्य कायम हो जाएगा। 

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