electoral bond scheme verdict: इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम मामले में चुनाव से पहले सरकार को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में लाए गए सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक बताया है। कोर्ट ने कहा कि जनता को सूचना का अधिकार है। ऐसे में राजनीतिक दलों को कौन और कितनी फंडिंग होती ये जानने का अधिकार भी जनता का है।
Supreme Court on Electoral Bond Scheme: इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। अदालत ने इस पर बैन लगा दिया है। फैसला सुनाते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है। कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव से पहले सरकार के लिए ये बड़ा झटका है। कोर्ट ने कहा कि जनता को सूचना का अधिकार है। ऐसे में आदेश दिया है, स्टेट ऑफ बैंक ऑफ इंडिया साल 2023 अप्राल से लेकर अभी तक की सारी जानकारी चुनाव आयोग को दे और आयोग ये जानकारी कोर्ट को दे। भारत सरकार 2017 में ये कानून लेकर आए थे। जिसके बाद मामला कोर्ट पहुंचा था। अब अदालत ने माना है कि चुनावी बॉन्ड स्कीम सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का सीधे-सीधे उल्लंघन है। कोर्ट ने जनता को राजनीतिक दलों की फंडिंग जानने का अधिकार है। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार के 2017 के फैसले को भी पलट दिया है।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? (electoral bond scheme verdict)
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नागरिकों को राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है कि पैसा कहां से और कैसे आता है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा भी ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने के दूसरे तरीके हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता जनता के सूचना के अधिकार का हनन करती है।
क्या होते हैं चुनावी बॉन्ड? ( electoral bond scheme in hindi)
आसान भाषा में समझे तो चुनावी बॉन्ड वचन पत्र की तरह होते हैं। जिसे किसी भी भारतीय नागरिक द्वारा भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जा सकता है। ये बॉन्ड कोई कंपनी भी खरीद सकती है। यानी नागरिक और कंपनियों के लिए अपने पसंद की राजनीतिक दल के लिए दान करने का जरिया बॉन्ड है। चुनावी बॉन्ड को फाइनेंशियल बिल 2017 में पेश किया गया था हालांकि इसे केंद्र की मोदी सरकार ने 2018 में अधिसूचित किया था। उसी दिन की इसकी शुरूआत हुई थी।
कब-कब खरीद सकते हैं चुनावी बॉन्ड? (electoral bonds maximum limit)
चुनावी बॉन्ड हर वक्त नहीं खरीदे जा सकते हैं। हर तिमाही के आरंभ में सरकार की ओर से 10 दिनों के लिए चुनावी बॉन्ड बिक्री के लिए उपलब्ध होते हैं। इसी बीच इसे खरीदा जा सकता है। इसे खरीदने के लिए,जनवरी,अप्रैल,जुलाई-अक्टूबर के शुरुआती 10 दिन तय किए गए हैं। जब चुनावी बॉन्ड को लाया गया था तब सरकार की ओर से दावा किया गया था कि इसे राजनीतिक दलों को होने वाली फंडिंग में पारदर्शिता आएगी।
चुनावी बॉन्ड से राजनीतिक दलों को लाभ? (electoral bond scheme kya hai)
बीजेपी पर विपक्ष शुरू से चुनावी बॉन्ड को लेकर सवाल खड़ा करते आया है। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि चुनावी बॉन्ड से किसी राजनीतिक दल को कैसे लाभ मिलता है। चुनावी बॉन्ड किसी भी नागरिक,कॉरपोरेट कंपनी द्वारा खरीदें जा सकते थें। राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में ले जाकर रकम हासिल कर लेते थे लेकि बैंक चुनावी बॉन्ड उन्हीं को बेचते हैं जिन्होंने KYC वेरिफाई करवााय होता है। इसके साथ ही बॉन्ड पर राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले का नाम जिक्र नहीं होता है।
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