महज एक अर्जी की मोहताज रह गई सात जन्मों का रिश्ता मानी जाने वाली शादी

By Gopal K  |  First Published Mar 18, 2019, 4:45 PM IST

कोई भी व्यक्ति अदालत में महज एक अर्जी देकर अपनी शादी टूटने की घोषणा कर सकता है। इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। यह फैसला आज सुप्रीम कोर्ट ने दिया है।  

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि विशेष शादी अधिनियम की धारा 24 के तहत शादी को टूटा घोषित किये जाने की कोई समय सीमा तय नही की जा सकती है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने यह फैसला दिया है। 

इस फैसले के मुताबिक एक बार जब कोई शादी टूट जाती है तो इसकी घोषणा किसी भी समय की जा सकती है। कोर्ट ने यह फैसला पुणे की रहने वाली एक महिला की अर्जी पर सुनवाई के बाद दिया है। 

इस महिला ने जिला अदालत, पुणे में विशेष शादी अधिनियम, 1954 की धारा 25 के तहत अर्जी दायर की थी। इसमें अपील की गई थी कि उसकी शादी को इस आधार पर टूटा हुआ घोषित किया जाए क्योंकि उसके पति ने संबंधित कोर्ट से तलाक का आदेश लिए बिना उससे शादी की थी और शादी के समय उसकी पहली पत्नी जीवित थी। जिसके बारे में उसने झूठ बोला था।

इससे पहले निचली अदालत ने इस महिला की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विशेष शादी अधिनियम, 1954 ई धारा 25 के तहत यह शादी को टूटा घोषित करने के लिए काफी नही है। कोर्ट ने अपने फैसले में निचली अदालत ने यह भी कहा था कि उत्पीड़न या धोखाधड़ी के सामने आने के एक साल के भीतर दायर की जानी चाहिए। 

जिसके बाद महिला ने इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाइकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया था। जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुचा। 

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद कहा कि अधिनियम की धारा 4 के तहत किसी भी दो व्यक्ति के बीच विशेष शादी अधिनियम के तहत शादी हो सकती है बशर्ते दोनों में से किसी के पति या पत्नी जीवित नहीं हो। 

कोर्ट ने यह भी कहा कि शादी को टूटा घोषित करने के लिए अर्जी दायर करने की कोई भी समय सीमा तय नही है और अगर शादी गैरकानूनी है तो उसे कभी भी टूटा घोषित किया जा सकता है। 

पीठ ने हाइकोर्ट के इस फैसले में भी दोष पाया कि पति और पहली पत्नी के बीच मे रस्मी तौर पर तलाक हो गया है, क्योंकि हाइकोर्ट ने इस बारे में कोई विशेष मुद्दा नही बनाया है। 

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में न तो इसका कोई मुद्दा बनाया गया है और न ही प्रतिवादी पति ने इस बात का कोई सबूत पेश किया है कि उसके और उसकी पहली पत्नी के बीच रस्मी तौर पर तलाक हो गया है। 

प्रतिवादी को यह साबित करना जरूरी है कि इस तरह का रस्मी तलाक उसकी जाति या समुदाय में मान्य है।
 

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