सबरीमाला के बाद सुप्रीम कोर्ट करेगा मस्जिद में महिलाओं की एंट्री पर फैसला

By Gopal K  |  First Published Apr 16, 2019, 12:09 PM IST

मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और सबके साथ नमाज अदा करने की आजादी मांग को लेकर महाराष्ट्र के दम्पति यास्मीन और जुबेर अहमद पीरजादा ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि कुरान और हजरत ने औरतों के मस्जिद में नमाज अदा करने का विरोध नहीं किया है। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। 

नई दिल्ली: मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश के मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि मक्का की मस्जिद में महिलायें घुस सकती है लेकिन हिंदुस्तान की मस्जिदों में नही घुस सकती है। जिसपर जस्टिस बोबडे ने पूछा कि मुम्बई की हाजी अली दरगाह में तो जाती हैं तो याचिकाकर्ता ने कहा मगर बहुत सी जगह अभी भी रोक है।

 जिसके बाद जस्टिस नजीर ने पूछा मक्का- मदीना में क्या नियम है? याचिकाकर्ता के वकील ने कनाडा की मस्जिद का भी हवाला दिया। जिसके बाद जस्टिस बोबडे ने कहा क्या मौलिक संवैधानिक समानता किसी विशेष पर लागू होती है? क्या मंदिर और मस्जिद सरकार के हैं? इन्हें थर्ड पार्टी चलाती है।  जैसे आपके घर मे कोई आना चाहे तो आपकी इजाजत जरूरी है। इसमे सरकार कहाँ से आ गई?

बतादें कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और सबके साथ नमाज अदा करने की आजादी मांग को लेकर महाराष्ट्र के दम्पति यास्मीन और जुबेर अहमद पीरजादा ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि कुरान और हजरत ने औरतों के मस्जिद में नमाज अदा करने का विरोध नहीं किया है।

इसलिए सबरीमाला की तर्ज पर सबको लैंगिक आधार पर भी बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14,15,21, 15 और 29 का भी हवाला दिया गया। याचिका में इस्लाम के मूल आधार, यानी कुरान और हजरत मोहम्मद साहब के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने कभी मर्द-औरत में फर्क नहीं रखा, बात सिर्फ अकीदे यानी श्रद्धा और ईमान की है।

याचिका में कुरान और हजरत ने कभी औरतों के मस्जिद में दाखिल होकर नमाज अदा करने की खिलाफत नहीं की, लेकिन कुरान को आधार बनाकर इस्लाम की व्याख्या करने वालों ने औरतों से भेदभाव शुरू किया।

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