सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो केंद्र सरकार के पास रहेगा, जांच कमीशन गठित करने का अधिकार केंद्र के पास रहेगा।
हालांकि कोर्ट ने सर्विसेज मामले में फैसले पर दोनों जजों में मत भिन्नता हो गई, जिसके बाद मामला विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा गया है।
लेकिन कोर्ट ने इलेक्ट्रिसिटी पर नियंत्रण दिल्ली सरकार को दे दिया है। जहां तक स्पेशल वकीलों की नियुक्ति का अधिकार का दिल्ली सरकार को दे दिया है। कृषि योग्य भूमि के मूल्य निर्धारण के अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहेगा।
लेकिन ज्वाइंट सेक्रेट्री और उससे ऊपर के अधिकारियों के ट्रांसफ़र पोस्टिंग का अधिकार केन्द्र के पास रहेगा। जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने यह फैसला सुनाया है।
इससे पहले सीनियर अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार उप राज्यपाल के पास था। दरअसल दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली में वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले का अधिकार केंद्र की बजाए दिल्ली सरकार के पास होने की मांग की थी।
साथ ही एक अन्य याचिका दायर कर दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांचके अधिकार क्षेत्र का दायरा बढ़ाकर इसमें केंद्र सरकार से जुड़े मसलों पर भी कार्रवाई करने के अधिकार की मांग की थी। ये याचिकाएं दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी, जिनमें हाइकोर्ट ने दिल्ली सरकार की इन मांगों को ठुकराते हुए फैसला केंद्र सरकार के हक में सुनाया था।
मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि एलजी को केंद्र ने अधिकार प्रदान कर रखे है। सिविल सर्विसेज का मामला एलजी के हाथ में है क्योंकि ये अधिकार राष्ट्रपति ने एलजी को दिया है। चीफ सेक्रेटरी की नियुक्ति आदि का मामला एलजी ही तय करेंगे। दिल्ली के एलजी की पावर अन्य राज्यों के राज्यपाल के अधिकार से अलग है।
संविधान के तहत गवर्नर को विशेषाधिकार मिला हुआ है। वहीं दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने कहा था कि एलजी को कैबिनेट की सलाह पर काम करना है।
जैसे ही जॉइंट कैडर के अधिकारी की पोस्टिंग दिल्ली में हो, तभी वह दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन के अंदर आ जाता है। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि एंटी करप्शन ब्रांच दिल्ली सरकार के दायरे में होना चाहिए। क्योंकि सीआरपीसी में ऐसा प्रावधान है।
दरअसल पिछले साल चार जुलाई सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 239 एए पर व्याख्या की थी। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि दिल्ली में उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के मंत्री परिषद की सलाह से काम करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने एलजी के अधिकार को सीमित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे, अगर कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते है, और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे, उस पर अमल करेंगे।
गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को नोटॉफिकेशन जारी किया था जिसके तहत एलजी कर जुरीडिक्शन के तहत सर्विस मैटर, पब्लिक आर्डर, पुलिस और लैंड से संबंधित मामले को रखा गया था। इसमें ब्यूरोक्रेट्स के सर्विस से संबंधित मामले भी शामिल है।