आर्टिकल 35-ए आजादी मिलने के सात साल बाद यानी साल 1954 में अस्तित्व में आया था। यह एक अस्थायी उपबंध था जिसे राज्य में हालात को उस समय स्थिर करने के लिए जोड़ा गया था। इस अनुच्छेद 35-ए को संविधान के निर्माताओं ने नहीं बनाया। बल्कि इसे शेख अब्दुल्ला और नेहरू के बीच 1952 के दिल्ली समझौता के बाद 1954 में को संविधान में जोड़ा गया। 35ए के जरिए भारतीय नागरिकता को जम्मू-कश्मीर की राज्य सूची का मामला बना दिया। लेकिन अब मोदी सरकार की इच्छा शक्ति की वजह से अब यह विवादास्पद प्रावधान इतिहास का हिस्सा बन चुका है।
नई दिल्ली: सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प सदन में पेश कर दिया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में लागू धारा 370 में सिर्फ खंड-1 रहेगा, बाकी प्रावधानों को हटा दिया जाएगा। इसके अलावा नए प्रावधान में जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन का प्रस्ताव भी शामिल किया गया है। जिसके तहत जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश होगा और लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग कर दिया गया है। उसे भी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. हालांकि वहां विधानसभा नहीं होगी। आईए पहले आपको बताते हैं कि जिस धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए को हटाया जा रहा है। उसको लेकर विवाद क्या क्या था।
-धारा 370 और अनुच्छेद 35A से जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते थे।
-इसके मुताबिक 14 मई 1954 के पहले जो कश्मीर में बस गए थे वही स्थायी निवासी माने जाते थे।
- इस प्रावधान के तहत स्थायी निवासियों को ही राज्य में जमीन खरीदने, सरकारी रोजगार हासिल करने और सरकारी योजनाओं में लाभ के लिए अधिकार मिले हुए थे।
-इसी अनुच्छेद की वजह से किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर में जाकर स्थायी निवासी के तौर पर न जमीन खरीद सकता है, ना राज्य सरकार उन्हें नौकरी दे सकती थी।
-अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके अधिकार छिन जाते हैं, हालांकि पुरुषों के मामले में ये नियम अलग थे।
-इसकी वजह से जम्मू कश्मीर में देश के बाकी हिस्सों की तरह आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं हो सकती थी।
- धारा-370 की वजह से जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति के पास राज्य सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था। यानी वहां राष्ट्रपति शासन नहीं, बल्कि राज्यपाल शासन लगता था।
- भारतीय संविधान की धारा 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है। वो भी जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होता था।
- जम्मू कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्व भी यहां लागू नहीं होते थे। साथ ही कश्मीर में आरक्षण नहीं मिलता था।
लेकिन अब तस्वीर उलट गई है। 35 ए हट जाने से जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया है। जिसकी वजह से देश के नागरिकों को यह फायदा हो सकता है-
1. देश का कोई नागरिक राज्य में ज़मीन खरीद पाएगा, सरकारी नौकरी कर पाएगा, उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला ले पाएगा.
2. महिला और पुरुषों के बीच अधिकारों को लेकर भेदभाव खत्म होगा.
3. कोई भी व्यक्ति कश्मीर में जाकर बस सकता है.
4. वेस्ट पाकिस्तान के रिफ्यूजियों को वोटिंग का अधिकार मिलेगा.
5. अब वहां राष्ट्रपति शासन लग सकेगा.
6. किसी तरह की वित्तीय आपात स्थिति में आपातकाल लागू हो पाएगा।
7. अनुच्छेद-370 हटने के बाद यहां भी विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का होगा.
8. नए प्रावधानों के तहत जम्मू कश्मीर में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा।