जानिए कैसे भारत की पहली ऑटोनोमस बोट 'मातंगी' ने 600 किलोमीटर का सफर बिना क्रू के तय किया और अब इंडियन नेवी के मिशन में नई ताकत जोड़ रही है। उच्च तकनीक, निगरानी और गश्त के लिए बनी यह बोट नौसेना के लिए एक गेम-चेंजर साबित होगी।
नई दिल्ली। स्वावलंबन 2024 के दौरान भारतीय रक्षा मंत्रालय ने एक खास उपलब्धि का प्रदर्शन किया। एक बिना चालक दल (क्रू) वाली बोट, 'मातंगी', सागरमाला परिक्रमा के लिए रवाना हुई। डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने बोट को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। 'मातंगी', नौसेना के मिशन में नई ताकत जोड़ रही है। यह स्वदेशी तकनीक से तैयार की गई भारत की पहली ऑटोनोमस सरफेस बोट है, जो दुश्मनों पर नजर रखने से लेकर गश्त और ऑपरेशनल मिशन तक में काम आ सकती है। आइये जानें कि कैसे 'मातंगी' भारतीय नौसेना का नया हथियार बन रही है।
'मातंगी' की खासियतें: क्यों है यह बोट इतनी विशेष?
‘मातंगी’ भारत में निर्मित ऐसी पहली ऑटोनोमस सरफेस बोट है जो बिना किसी मानव चालक के भी मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर सकती है। इसका प्रमुख यूज निगरानी और सुरक्षा के लिए किया जाएगा। इसमें कई हाई-टेक सेंसर, हथियार और ड्रोन लगाए गए हैं, जो इसे सामान्य बोट्स से अलग बनाते हैं। इसके सेंसर और नेविगेशन सिस्टम इसे सेफ तरीके से अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सक्षम बनाते हैं।
ऑटोनोमस नेविगेशन सिस्टम
मातंगी में आधुनिक नेविगेशन और कोलिजन अवॉइडेंस सॉफ्टवेयर इंस्टॉल है, जो इसे स्वायत्तता से काम करने में मदद करता है। यह सॉफ्टवेयर बिना किसी चालक के दिशा निर्धारित करने और सामने आने वाली रुकावटों से बचाव करने में सक्षम है।
हथियारों से लैस
मातंगी में ऐसे हथियार लगाए गए हैं, जो इसे आक्रामक अभियानों के लिए उपयुक्त बनाते हैं। जरूरत पड़ने पर यह बोट दुश्मनों पर हमला भी कर सकती है, जिससे भारतीय नौसेना को समुंदर में अतिरिक्त ताकत मिलेगी।
ड्रोन और अंडरवॉटर ड्रोन का यूज
मातंगी की खासियत यह है कि इसमें एयर ड्रोन के साथ-साथ अंडरवॉटर ड्रोन भी मौजूद हैं। एयर ड्रोन इसकी रेंज को हवा में बढ़ाते हैं, जिससे यह बड़े क्षेत्र की निगरानी कर सकती है, जबकि अंडरवॉटर ड्रोन इसकी रेंज को पानी के अंदर भी बढ़ाते हैं, जिससे यह समुद्र के नीचे की गतिविधियों पर भी नजर रख सकती है।
पहले पूरा किया 600 किलोमीटर का सफर, मुंबई से कारवार तक
मातंगी ने अपने पहले चरण में मुंबई से कारवार तक का 600 किलोमीटर का सफर सफलतापूर्वक ऑटोनोमस मोड में पूरा कर लिया है। इस सफर में बोट ने अपनी क्षमता और सुरक्षित नेविगेशन की दक्षता को साबित कर दिखाया है। बिना किसी चालक दल के इस तरह की लंबी दूरी तय करना न केवल तकनीकी क्षमता का प्रमाण है बल्कि इससे नौसेना की परिचालन लागत में भी कमी आएगी।
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