दुनिया 1st ट्रिपल दिव्यांग पर्वतारोही: शरीर में 2 पैर-1 हाथ नहीं...एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचकर बजा दिया डंका

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published May 24, 2024, 3:10 PM IST

गोवा के रहने वाले टिंकेश कौशिक माउंट एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचने वाले दुनिया के पहले ट्रिपल दिव्यांग बन गए हैं। यह कौशिक की दृढ इच्छाशक्ति ही थी कि दो प्रोस्थेटिक पैर और एक हाथ के साथ इतिहास रच दिया।

पणजी। गोवा के रहने वाले टिंकेश कौशिक माउंट एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचने वाले दुनिया के पहले ट्रिपल दिव्यांग बन गए हैं। यह कौशिक की दृढ इच्छाशक्ति ही थी कि दो प्रोस्थेटिक पैर और एक हाथ के साथ इतिहास रच दिया। 30 वर्षीय टिंकेश ने 11 मई को यह उपलब्धि हासिल की। हालांकि चढ़ाई की तैयारी का अभ्यास आसान नहीं था। सेहतमंद लोगों को भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पर टिंकेश ने खुद से यह चढ़ाई करने का वादा किया और मजबूत मानसिक शक्ति के दम पर समुद्र तल से 17,598 फीट ऊंचाई पर स्थित माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप पर तिरंगा फहराया। 

मानसिक ताकत आई काम

कौशिक ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि शुरूआत में ट्रैकिंग मुझे चुनौतियों से भरी लगी। पर मैंने खुद से कहा कि मुझे यह मुकाम हासिल करना है। यह मेरी मानसिक ताकत की वजह से ही संभव हो सका है। उन्हें इस बात की खुशी है कि उन्होंने अन्य दिव्यांगों के लिए एक एग्जाम्पल सेट किया है। डिसेबिलिटी राइट्स एसोसिएशन ऑफ गोवा (DRAG) के प्रमुख एवेलिनो डिसूजा का कहना है कि कौशिक माउंट एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचने वाले दुनिया के पहले ट्रिपल दिव्यांग शख्स हैं। 

9 साल की उम्र में खो दिए थे दो पैर और एक हाथ

टिंकेश कौशिक ने महज 9 साल की उम्र में हरियाणा में एक बिजली दुर्घटना में घुटनों के नीचे से दोनों पैर और एक हाथ खो दिए थे। कृत्रिम अंगों का यूज करते हैं। कुछ साल पहले गोवा आए और यहां एक फिटनेस कोच के तौर पर काम करने लगे। माउंट एवरेस्ट बेस कैंप की यात्रा से पहले उन्होंने सोचा था कि यह चढ़ाई आसान होगी, क्योंकि वह खुद एक फिटनेस कोच हैं। पर चढ़ाई की तैयारियों के दौरान चुनौतियों का एहसास हुआ। उनके पास पर्वतों पर चढ़ाई का कोई अनुभव भी नहीं था। तैयारी के दौरान कृत्रिम अंगों की वजह से उन्हें परेशानी भी हुई। 

चढ़ाई के दौरान बिगड़ी तबियत

चुनौतियों को देखने के बाद टिंकेश कौशिक ने तय कि उन्हें माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप तक चढ़ाई करनी ही है। उसी दरम्यान उनकी सेहत भी खराब हुई। बहरहाल, 4 मई को नेपाल से ट्रैकिंग शुरू की और अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर यह चुनौतीपूर्ण यात्रा करते रहें। एक समय उनके शरीर में आक्सीजन का स्तर इतना गिर गया कि सिरदर्द और ​उल्टियां तक होने लगीं। पर उन्होंने मिशन पूरा करने की ठानी थी। वह कहते हैं कि यदि आप मानसिक रूप से मजबूत हैं तो आप निश्चित तौर पर सफलता हासिल कर सकते हैं। 

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