कौन हैं शैलजा पैक? अमेरिका की 'जीनियस' ग्रांट पाने वाली पहली दलित

By Rajkumar UpadhyayaFirst Published Oct 4, 2024, 5:06 PM IST
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जानिए शैलजा पैक के बारे में, जो अमेरिका की 'जीनियस' ग्रांट पाने वाली पहली दलित महिला बनीं। महाराष्ट्र में जन्मी इतिहासकार और लेखिका ने जाति और सामाजिक न्याय पर काम करने का अवसर पाया है।

नई दिल्ली: महाराष्ट्र में जन्मी और अमेरिका में रहने वाली इतिहासकार और लेखिका शैलजा पैक ने इतिहास रच दिया है। वह 800,000 डॉलर वाली मैकआर्थर फेलोशिप पाने वाली पहली दलित महिला बन गई हैं, इस फेलोशिप को ‘जीनियस ग्रांट’ कहा जाता है। यह ग्रांट शैलजा को “दुनिया के विभिन्न हिस्सों में” जाति और सामाजिक न्याय पर काम करने वाले लोगों के साथ काम करने का मौका देगी।

कौन हैं शैलजा पैक?

शैलजा पैक का जन्म महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके के एक गरीब दलित परिवार में हुआ। वह पुणे के यरवदा स्थित झुग्गी के एक कमरे के घर में पली-बढ़ी। पिता ग्रेजुएट थे और अपने गांव के ऐसे पहले दलित व्यक्ति थे। जिसने स्नातक की डिग्री ली थी। पैक ने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। उन्हें फोर्ड फाउंडेशन अनुदान की मदद मिली और वारविक विश्वविद्यालय, यूके से पीएचडी की। अब वह सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री पढ़ाने का काम करती हैं।

दलित इतिहास लेखन का औपचारिक दस्तावेजीकरण नहीं

वह अपनी स्टडी और किताबों के जरिए दलित महिलाओं के रोजमर्रा के जीवन में भेदभाव और सम्मान से जुड़ी कहानियां सबके सामने लाती हैं। अंग्रेजी, मराठी और हिंदी भाषा में उनके लिटरेचर हैं। यह काम वह ऐसे समय में कर रही हैं, जब दलित समुदाय के इतिहास को इकट्ठा करना किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि इस सब्जेक्ट पर मेनस्ट्रीम की इंडियन यूनिवर्सिटी में बहुत कम रिसर्च किया गया है। लंबे समय से दलित इतिहास लेखन का औपचारिक दस्तावेजीकरण भी नहीं हुआ है। अब वह अपने इंटरव्यू और फील्डवर्क के जरिए दलितों के इतिहास को इकट्ठा करने का काम कर रही हैं।

इन्हें भी मिल चुकी है मैकआर्थर फाउंडेशन फेलोशिप

मैकआर्थर फाउंडेशन फेलोशिप को 'नो-स्ट्रिंग्स अटैच्ड' ग्रांट के नाम से जाना जाता है। यह सहायता क्रिएटिव कलाकारों और रिसर्चर को 5 साल में दिया जाता है। उनका काम दलितों से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाओं का संकलन करना होता है। हालांकि ग्रांट पाने वालों से यह सवाल नहीं किया जाता है कि वह दिए गए फंड को कैसे खर्च करते हैं। अब तक यह फेलोशिप तीन भारतीयों को मिल चुका है। उनमें गणितज्ञ सुभाष खोत और बायोइंजीनियर मनु प्रकाश (2016) शामिल हैं। पर्यावरण इंजीनियर कार्तिक चंद्रन (2015) को भी यह ग्रांट मिला था, यह सब IITians हैं।

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