अरुण जेटली को जाता है भारतीय अर्थव्यवस्था को कांग्रेसी अव्यवस्था से बाहर निकालने का श्रेय

By Siddarth Pai  |  First Published Nov 26, 2018, 7:22 PM IST

मोदी सरकार ने जब से नेतृत्व संभाला है तब से भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। जीएसटी और नोटबंदी ने इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।

2014 के आम चुनावों में बीजेपी ने बहुमत प्राप्त किया था और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का गठन किया।  उनके इस कार्यकाल में अनेक चुनौतियां भी सामने आईं। हालाँकि दुर्भाग्य से पिछली सरकार के कुशासन के परिणामस्वरूप मोदी सरकार की राह और भी कठिन थी। सरकार को निवेशकों में दुबारा विश्वास पैदा करने की जरूरत थी। 2008 से 2014 के बीच चरमराई हुई बैंकिंग व्यवस्था की मरम्मत की आवश्यकता थी। रुपये में उच्च मुद्रास्फीति और अस्थिरता को कम करने की नीति तैयार करने, नौकरियों की संभावनाओं के निर्माण की आवश्यकता को बेहतर बनाना और बुनियादी ढांचे को पुनर्जीवित करने जैसी ही अनेक समस्यायें सामने आईं।

वित्तीय समावेशन
सामाजिक क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं को बहाल करने और सब्सिडी के वितरण में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए समाज के सभी वर्गों तक बैंकिंग व्यवस्था को सुलभ बनाने की आवश्यकता होती है। ऐसी व्यवस्था के निमार्ण में प्रधानमंत्री जन-धन योजना ने आधार का काम किया। इसमें आधार खातों को प्राथमिकता देकर तेजी से बैंक खतों को खोला गया। 2018 के मध्य तक, 31.8 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए और इस योजना के तहत खातों में 79,200 करोड़ रुपये जमा किए गए थे।

मोदी सरकार ने जन-धन खाताधारकों के लिए वीजा और मास्टरकार्ड जैसी वैश्विक भुगतान नेटवर्क संस्थाओं की तरह ही RuPay कार्ड के उपयोग को भी बढ़ावा दिया। परिणामस्वरुप RuPay कार्ड ने बहुत कम अन्तराल में 30 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ताओं के एक विशाल बाजार को तैयार किया। भुगतान शुल्क को कम रखकर इसे और अधिक से अधिक सुलभ बनाये जाने की जरुरत थी।

सरकार ने राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) से यूपीआई (एकीकृत भुगतान इंटरफेस) की भी व्यवस्था का निर्माण किया। यह एक तत्काल वास्तविक समय भुगतान प्रणाली है, जो मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म पर इंटरबैंक के लेनदेन में सहायता करती है और यह पूरी तरह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नियंत्रण में है। विभिन्न वित्तीय सेवाओं और मोबाइल और आधार के उपयोग को समग्र रूप में 'जाम ट्रिनिटी' का हिस्सा माना जाता है जो सभी भारतीयों को आर्थिक, वित्तीय और डिजिटल स्पेस में समान रूप से एक साथ जोड़ता है।


विमुद्रीकरण के बाद जीरो बैलेंस जन-धन खातों की संख्या 76.81% से घटकर 21.41% रह गई। एक बिलियन आधार पंजीकरण, करोड़ों सेलुलर कनेक्शन और 73.62 करोड़ बैंक खाते, जिनमें से 31 करोड़ जन-धन खाते थे, सभी सरकार की इस पहल के अंतर्गत थे। जन-धन, आधार और मोबाइल (जेएएम) ट्रिनिटी के उपयोग से करोड़ों भारतीयों की छात्रवृत्ति, पेंशन, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण और बीमा अब सीधे खाताधारकों तक पहुंचाने में मदद मील रही है। आधार को विभिन्न सरकारी योजनाओं में उपयोग करने को बढ़ावा देने के लिए संसद द्वारा वैधानिकता भी मिल गई है। जुलाई 2018 तक केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद के अनुसार सरकार के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण से 9 0,000 करोड़ रुपये से अधिक की बचत हुई है।

वित्तीय सुधार
सरकार को आर्थिक बाजारों में आर्थिक स्थिरता हेतु नीतियां तैयार करनी होंगी। जेटली के वित्तमंत्री के रूप में पद संभालने के एक साल पहले तक भारत पर राजकोषीय घाटे, उच्च चालू खाते के घाटे और उच्च मुद्रास्फीति का बोझ था और जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक  में गिरवट आई, तब इसके साथ-साथ भारत की मुद्रा और बाजार में भी अस्थिरता छा गई और  इसी वजह से रुपये में भरी गिरावट देखी गई थी।

जेटली के कारण ही मुद्रास्फीति में कमी हो पाई है, कच्चे तेल की कीमतों में हालिया गिरावट के चलते चालू खाता घाटा 2.2% होने का अनुमान है और मोदी सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में अपने लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध है।

कुछ समय पहले 2013 में, भारत धीमी पड़ी हुई समष्टि-आर्थिक भेद्यता सूचकांक में ब्राजील, तुर्की, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे पांच देशों में से एक था। उस समय मुद्रास्फीति 10.2% थी , चालू खाता घाटा 4.7% और बजट घाटा 7.5% पर था।

वर्तमान में, करों, माल और सेवाओं कर (जीएसटी) और वित्तीय अनुशासन जैसे ही अन्य में सुधारों की एक श्रृंखला की आवश्यकता थी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर मुद्रास्फीति 3.31% (अक्टूबर 2018 तक ) पर है। राजकोषीय घाटा 3.3% पर है । (उम्मीद है कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण या बहुत कम हो जाये)।
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) – जो एक आशाजनक अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन है, यह 2013-14 में 23.3 बिलियन डॉलर की तुलना में 2017-18 में 61.9 6 अरब डॉलर हो गया है। यह वर्तमान भूगर्भीय परिदृश्य के व्यापार युद्ध और उसके संरक्षणवाद में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।


बैंकिंग क्षेत्र में सुधार
जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था यूपीए सरकार के शासन के दौरान बैंकिंग क्षेत्र में कुल अग्रिम जमा 2008 में 18 लाख करोड़ रुपये थो, जो बढ़कर 2014 में 52 लाख करोड़ रुपये हो गया है, लेकिन इनमें से अधिकतर ऋण उचित परिश्रम के बिना दिए गए थे और अधिकतर राजनीतिक पक्षपात के आधार पर दिये गये थे। मोदी के लिए इस तरह की सभी गड़बड़ीयों को साफ़ करना एक चुनौती भरा काम था। गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) जिसका 2014 में 2.61 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान था, जो आरबीआई संपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के बाद इसके 8.4 लाख करोड़ रुपये होने का खुलासा हुआ।

2016 में सरकार ने दिवालियापन अधिनियम पारित किया, जिसके बाद अधिकांश एनपी-ग्रस्त फर्मों को प्रतिस्पर्धी नीलामी के माध्यम से बेचा गया या पुनर्गठित किया गया है। इसने पीएसयू बैंकिंग क्षेत्र को राहत पहुंचाई थी, जो एनपीए के दौरान संघर्ष कर रहे थे। हाल ही में भूषण स्टील को टाटा ने 35,200 करोड़ रुपये में ख़रीदा है और एस्सार स्टील को आर्सेलर मित्तल समूह ने 52,000 करोड़ रुपये में खरीदा। इन सौदों ने आईबीसी कानून की सफलता और एनपीए गड़बड़ी को साफ करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दिखायी है। इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में सुधार और छह प्रमुख विषयों में सुधार करने के लिए एक उद्देश्य के साथ 2.1 लाख करोड़ रुपये की पुनर्पूंजीकरण योजना निमार्ण की जा रही है, जिसमें ग्राहक प्रतिक्रिया, जिम्मेदार बैंकिंग आदि शामिल हैं।

जीएसटी
भारत में अप्रत्यक्ष कर में सुधार के क्षेत्र में माल और सेवा कर एक महत्वपूर्ण कदम रहा। एक बड़ी संख्या में केंद्रीय और राज्य करों को एक कर एक राष्ट्रीय बाजार के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया है। शराब को छोड़कर यह सभी उत्पादों के लिए लागू किया गया है। जीएसटी के दायरे में पेट्रोलियम उत्पादों को शामिल करना महत्वपूर्ण था। जीएसटी लॉन्च के एक साल के भीतर 48 लाख उद्यम इसके अंतर्गत लाए गए हैं, जबकि  66 लाख पंजीकृत उद्यम हैं। सितंबर 2018 में एकत्रित कुल सकल जीएसटी राजस्व 94,442 करोड़ रुपये था। जीएसटी, सरकार के राजस्व वृद्धि को दिखाता है, जो इसे वित्तीय लक्ष्यों को आसानी से पूरा करने में मददगार है।

विमुद्रीकरण
मोदी सरकार द्वारा 500 और 1,000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला अर्थव्यवस्था के किये औपचारिकरण रूप से महत्वपूर्ण कदम था। यह सिर्फ अर्थव्यवस्था में नकद घटक को कम करने का लक्ष्य नहीं था, लेकिन इसका उद्देश्य भारत को एक गैर-अनुपालन समाज से एक अनुपालन में ले जाना था। वित्त मंत्री जेटली के मुताबिक, "लगभग 1.8 मिलियन जमाकर्ताओं की पहचान की गई है ...इनमें से कईयों के साथ कर और दंड समेत कई गतिविधियाँ जुडी हुई हैं। किसी बैंक में नकद जमा करने से यह अनुमान नहीं लगया जा सकता है कि कितना कर भुगतान धन जमा हुआ है। मार्च 2014 में आयकर रिटर्न की संख्या 3.8 करोड़ रुपये थी, जबकि यह आंकड़ा 2017-18 में 6.86 करोड़ रुपये हो गया है। पिछले दो वर्षों में, जब विमुद्रीकरण के प्रभावों का विश्लेषण किया गया तो यह सामने आया कि आयकर रिटर्न में 19% और 25% की वृद्धि हुई है। आयकर संग्रह 2013-14 के आंकड़े 6.38 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2017-18 में 10.02 लाख करोड़ रुपये हो गया है।" जीएसटी को 1 जुलाई, 2017 से लागू किया गया था। इसके पहले ही वर्ष में पंजीकृत निर्धारिती की संख्या में 72.5% की वृद्धि हुई है। मूल 66.17 लाख निर्धारिती बढ़कर 114.17 लाख हो गई हैं, इसलिए यह बहुत स्पष्ट है कि विमुद्रीकरण ने अपने उद्देश्यों को हासिल किया है।

बिजली क्षेत्र में सुधार
जब पियूष गोयल ने बिजली मंत्रालय को संभाला, तो यह क्षेत्र 9.64 लाख करोड़ रुपये की एक चरमराई व्यवस्था थी।
उन्होंने न केवल ऊर्जा क्षेत्र को सुव्यवस्थित किया, बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को भी बदल दिया, जिससे निवेश के लिए भारी अवसर मिल गया। उन्होंने यूडीई योजना के माध्यम से वित्तीय रूप से तनावग्रस्त राज्य संचालित बिजली वितरण कंपनियों में सुधार किया और लागत को कम करते हुए संचालन में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया।
ग्रामीण विद्युतीकरण के क्षेत्र में सरकार ने भी बड़े पैमाने पर सुधार किया। मोदी सरकार की सक्रियता से पहले, भारत में 30.4 करोड़ (304 मिलियन) लोग बिना बिजली के रहते थे इस आंकड़े के हिसाब से दुनिया की 40%आबादी के पास बिजली उपलब्ध नहीं थी, लेकिन गोयल अपने समर्पित प्रयासों से 29 अप्रैल, 2018 तक भारत के 100% गांवों तक बिजली उपलब्ध करवाने में सफल रहे हैं।
 

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