कैसे सबरीमाला के मुद्दे ने दक्षिण भारत में विराट हिंदू प्रतिरोध को जन्म दे दिया

By abhijit majumder  |  First Published Oct 17, 2018, 6:23 PM IST

सबरीमाला मंदिर मामले से जुड़े कई बड़े सवाल हैं, जिनका जवाब तलाश करने के लिए कार्यकर्ताओं को संघर्ष करना होगा। जैसे एक कम्युनिस्ट सरकार, जो कि नास्तिक मानी जाती है, वह हिंदू परंपराओं में दखल दे रही है, लेकिन यही व्यवस्था 2017 में ऑरथोडॉक्स और जैकोबाइट चर्चों के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पालन में नदारद दिखती है। किस तरह से भारतीय राज्य मस्जिदों के मामले मे दखल नहीं देता, लेकिन हिंदू धर्म के स्तंभ माने जाने वाले भगवान अयप्पा की अपमान के लिए सेक्यूलरिज्म की आड़ लेने में तनिक भी नहीं हिचकता।  

नींद से बाहर निकलने वाले किसी महाकाय पुरुष की तरह, दक्षिण भारत अपनी हिंदू पहचान और सदियों पुरानी आस्था पर हमले के खिलाफ उठने लगा है।

त्रिशूल-दीक्षा के अतिरिक्त, आजादी के बाद से दक्षिण भारत ने हिंदुत्व के मुद्दे पर इतना बड़ा जनांदोलन नहीं देखा था। 
जिसकी वजह बनी है, सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक हटाना, जिसके पीछे राज्य सरकार मजबूती से खड़ी है। 

पूरे दक्षिण भारत में यह मुद्दा गर्म है, हर कोई इसी के बारे में बात कर रहा है। 

नाम जप यात्रा के नाम पर विरोध प्रदर्शन दक्षिण के सभी पांच राज्यों में शुरु हो गए हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और बहुत से खाड़ी देशों में बसे भारतीय भी इस फैसले के विरोध में प्रदर्शनों का आयोजन कर रहे हैं। 

स्थानीय जनजातीय लोगों का विशाल समूह, जिसमें से आधी महिलाएं हैं, वह सदियों पुरानी इस परंपरा का उल्लंघन रोकने के लिए विरोध में उतर आए हैं।  

भगवान अयप्पा, जो कि पंडलम के राजा के बेटे थे, माना जाता है, कि उन्होंने इन जनजातीय लोगों को अपने स्थल की सुरक्षा का दायित्य सौंपा था। 

परंपरा का उल्लंघन रोकने के लिए दक्षिण भारतीय राज्यों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु सबरीमाला पहुंचने लगे हैं। 

वह तर्क दे रहे हैं, कि लाखों की संख्या में ऐसे मंदिर हैं, जहां महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिला हुआ है और वह वहां दर्शन करने के लिए आजाद हैं। यहां तक कि ऐसे भी कुछ मंदिर हैं, जहां पुरुषों का जाना निषेध हैं। 

लेकिन यह विशेष मंदिर, जहां से भगवान अयप्पा पूरे ब्रह्मांड पर अपना नियंत्रण कायम रखते हैं, सिर्फ वहीं पर एक विशेष उम्र की महिलाओं के जाने पर प्रतिबंध है। इसके अलावा भगवान अयप्पा के हजारों ऐसे मंदिर हैं जहां महिलाओं को किसी तरह के प्रतिबंध का सामना नहीं करना पड़ता है। 

इन प्रश्नों का जवाब नहीं मिलने से श्रद्धालुओं का क्रोध और भड़कता जा रहा है। 

सबरीमाला मामले में कई सवाल और बाकी है, जिनका जवाब अब तक नहीं मिल पाया है।  

आखिर क्यों पिनरई विजयन की वामपंथी सरकार और न्यायपालिका को हिंदू परंपराओं में दखलअंदाजी करनी चाहिए?
आखिर क्यों पिनरई विजयन सरकार ऑर्थोडॉक्स और जैकोबाइट चर्च के बीच विवाद के मामले में 2017 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने में हिचक गई लेकिन सबरीमाला विवाद पर आए फैसले पर अमल कराने में अति उत्साह दिखाया ? 

आखिर क्यों महिलाओं के प्रवेश, मंदिरों के फंड पर नियंत्रण जैसे आदेश मस्जिदों और दूसरे धार्मिक स्थलों पर समान रुप से लागू होते हैं ?  

आखिर क्यों भगवान अयप्पा के नैष्ठिक ब्रह्मचारी स्वरुप के उपासकों के आत्म नियंत्रण, ब्रह्मचर्य और त्याग का अपमान किया जा रहा है ?   

आखिर क्यों पर्यावरण, पशु अधिकार, जल संरक्षण, महिला अधिकार के बहाने हिंदू विश्वासों और त्योहारों को निशाना बनाया जाता है ? 

आजादी के बाद से जिन लोगों को हाथ में सत्ता और ताकत रही, वह लोग इन प्रश्नों का उत्तर देने से बचते रहे हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है, कि उन्हें इसका जवाब देना होगा। 

दक्षिण भारत में सबरीमाला के मामले में ध्रुवीकरण हो रहा है। हिंदुत्व की राजनीतिक चेतना के जागरण का मैदान तैयार हो रहा है।  

यहां पहले ही राज्य सरकार द्वारा मंदिरों की संपत्ति की बंदरबांट का मामला पहले से ही मुद्दा बना हुआ है। अब न्यायपालिका और राज्य सरकार द्वारा सबरीमाला मामले में दखल देने से लोगों की नाराजगी और भड़क रही है। 
केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता ने बताया, कि ‘आंदोलन अभूतपूर्व है’ यहां तक कि हम भी इसे देखकर हतप्रभ हैं। 

साल 2006-07 में वी.एस.अच्युतानंदन के नेतृत्व में लेफ्ट फ्रंट की सरकार ने वादा किया था, कि सबरीमाला के मामले में वह धर्म विशेषज्ञों की एक आचार्य परिषद का गठन करेंगे। 

लेकिन वर्तमान लेफ्ट फ्रंट की सरकार की हिंदुओं को नीचा दिकाने की कोशिश न केवल केरल में बल्कि दक्षिण भारत के पांच राज्यों में हिंदु एकजुटता के लिए संजीवनी का काम करेगा। 

क्योंकि सबरीमाला मंदिर के श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उसके गृहराज्य से भी ज्यादा है। यहां तक कि कर्नाटक और तमिलनाडु में भी भगवान अयप्पा को मानने वालों की संख्या बेहद ज्यादा है। 

दक्षिण भारत के लगभग सभी शहरों में भगवान अयप्पा के मंदिर हैं। इस विवाद को परछाईं दक्षिण के हर शहर और गांव को अपनी चपेट में ले रही है, जो कि दिन पर दिन फैलती ही जा रही है। 

इसकी वजह से दक्षिण भारत की राजनीति में इतना बड़ा बदलाव आ सकता है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। 

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