परिसीमन के बाद से अब तक स्थिर नहीं हुई बलिया और घोसी की राजनीति

By Santosh Kumar RaiFirst Published May 3, 2019, 4:57 PM IST
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पूर्वांचल की दो सीटें बलिया पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के नाम से और घोसी कल्पनाथ राय के नाम से जानी जाती थी और जानी जाती हैं। आज भी इन दोनों क्षेत्रों में ये दोनों नेता जनता की जुबान पर जीवित हैं।

नई दिल्ली: परिसीमन के बाद पहला लोकसभा चुनाव 2009 में हुआ। इस चुनाव में पूर्वांचल की लगभग सभी लोकसभा सीटों में परिवर्तन हुआ। इससे चुनावी जातीय गणित में बड़े बदलाव हुए। घोसी, गाजीपुर और बलिया तीनों के समीकरण बदल गये। 

साल 2000 के पहले तक घोसी लोकसभा सीट पूर्वांचल के दिग्गज कांग्रेसी नेता कल्पनाथ राय की सीट होती थी। उनके जाने के बाद कई चुनाव हुए, कई सांसद-विधायक चुने गये, अनेक राज्य-केंद्र में मंत्री भी बने लेकिन अभी तक घोसी के साथ किसी का नाम कल्पनाथ राय की तरह नहीं जुड़ पाया। पूर्वांचल की दो सीटें बलिया पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के नाम से और घोसी कल्पनाथ राय के नाम से जानी जाती थी और जानी जाती हैं। आज भी इन दोनों क्षेत्रों में ये दोनों नेता जनता की जुबान पर जीवित हैं। 

कल्पनाथ राय ने आज से 40 साल पहले घोसी का जैसा विकास किया वह पूर्वांचल में एकलौता जिला था। कल्पनाथ राय के निधन के बाद जिस प्रकार उनका परिवार उनकी दूसरी पत्नी और उनकी पहली पत्नी के बेटे-बेटियों के बीच बिखर गया उसी प्रकार घोसी भी जातीय खींचतान में उलझकर विकास की मुख्यधारा से पीछे छूट गया। 

लेकिन इसके साथ इसमें परिसीमन के बाद के नये जातीय समीकरण की भी कम भूमिका नहीं है। विधासभाओं के बदलाव की वजह से घोसी की राजनीति में क्षेत्रीय दलों का जातिगत आधार पर उभार हुआ। परिणामस्वरूप कभी बसपा कभी सपा के खाते में यह सीट आती रही। 

2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की। बीजेपी के उम्मीदवार हरिनारायण राजभर ने बसपा के दारा सिंह चौहान को हराकर अपनी पार्टी के लिए यहां से खाता खोला।

घोसी लोकसभा के जातिगत समीकरण में दो जतियों के मतदाताओं का वर्चस्व है। पहला चौहान और दूसरा राजभर। कल्पनाथ राय के जाने के बाद इन्हीं दोनों जतियों के बीच सभी पार्टियां उलझती रहीं हैं। यहाँ से अभी तक कभी चौहान तो कभी राजभर सांसद चुने जाते रहे हैं। 

पूर्वांचल की और घोसी की राजनीति का एक पहलू यह भी है कि जिस पार्टी का वर्चस्व बढ़ेगा नेता उस पार्टी में चले जाएंगे और यही आज नेताओं की पहचान बन गई है। मतलब नेता वही रहेंगे पार्टी और सरकार बदलती रहेगी। 

आजकल मतदाताओं के बीच हंसी के लिए यह मुहावरा चल रहा है कि इस बार पुराना झंडा नहीं चलेगा, नेताजी ने पहचान बदल ली है। 

इस सीट को लेकर एक और मजबूत पक्ष बाहुबली मुख्तार अंसारी हैं। पाँचवीं बार मऊ से विधायक चुने गये मुख्तार अंसारी लोकसभा में खासा दबदबा रखते हैं। यह अलग बात है कि कई लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद भी मुख्तार अंसारी को कभी लोकसभा में जीत हासिल नहीं हो पायी है। 

लोकसभा चुनाव की दृष्टि से इस बार घोसी में त्रिकोणीय चुनाव जैसी स्थिति बन रही है। भाजपा का ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन था और इसी को ध्यान में रखकर भाजपा ने सुभासपा के अरविंद राजभर के लिए टिकट की घोषणा किया था लेकिन शर्त यह थी कि वे चुनाव भाजपा के निशान पर लड़ेंगे। इसे ओमप्रकाश राजभर ने स्वीकार नहीं किया और कई सीटों पर अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। उसके बाद भाजपा ने भी अपने वर्तमान सांसद हरिनारायण राजभर को पुनः प्रत्याशी बनाया है। 
  
जहाँ तक पिछले चुनाव के समीकरणों की बात है तो उसमें भाजपा की ओर से हरिनारायण राजभर को 379797 मत मिले थे, जबकि उनके मुख्य विपक्षी बसपा के दारा सिंह चौहान को 233782 मत मिले थे। इसमें अच्छी बात यह है कि अब दारा सिंह चौहान भाजपा के टिकट पर विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। वहीं कौमी एकता दल के मुख्तार अंसारी को 166436 तथा सपा के राजीव राय को 165887 मत मिले थे। 

इस चुनाव में बसपा, सपा और कौमी गठबंधन में हैं, जबकि गठबंधन ने अतुल राय को अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस की ओर से बसपा के टिकट पर पूर्व सांसद बाल कृष्ण चौहान के नाम की घोषणा की गई है। ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि घोषी का चुनाव त्रिकोणीय हो सकता है। 

घोसी संसदीय क्षेत्र में चार विधानसभा क्षेत्र मधुबन, घोसी, मुहम्मदाबाद-गोहना, मऊ सदर आते हैं, जिसमें सिर्फ मुहम्मदाबाद-गोहना सीट ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। मधुबन विधानसभा से भाजपा के दारा सिंह चौहान विधायक हैं, उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अमरेश चंद को 29.415 मतों के अंतर से हराया था। 

घोसी विधानसभा सीट पर भी भाजपा का कब्जा है। भाजपा के प्रत्याशी फागू चौहान ने दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे बहुजन समाज पार्टी के अब्बास अंसारी को 7,003 मतों के अंतर से हराया था। इस क्षेत्र में मुहम्मदाबाद-गोहना सीट ही एकमात्र आरक्षित विधानसभा है। 
मुहम्मदाबाद-गोहना से बीजेपी के श्रीराम सोनकर विधायक हैं। जबकि मऊ से मुख्तार अंसारी विधायक हैं। इस तरह से देखा जाए तो घोसी संसदीय क्षेत्र की चार विधानसभा सीटों में से तीन पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि एक बसपा ले खाते में है। 

इस बार के चुनाव में भाजपा के पक्ष में यह बात है कि उस क्षेत्र के कई बड़े पिछड़ी जाति के नेता जैसे दारा सिंह चौहान, फागू चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य आदि भाजपा में हैं जबकि ये सभी पहले बसपा में थे। 

अब बसपा के साथ बसपा का कोई भी स्थानीय बड़ा नेता नहीं है जबकि सीट बसपा के ही खाते में है। भाजपा के लिए नकारात्मक बात यह भी है कि वर्तमान सांसद को लेकर क्षेत्र के मतदाताओं, खासकर गैर राजभर मतदाताओं में बहुत आक्रोश और नाराजगी है, जिसका असर चुनाव पर पड़ सकता है। 

बसपा के प्रत्याशी अतुल राय वैसे तो वहाँ के समीकरण के आधार पर बहुत मजबूत प्रत्याशी के तौर पर देखे जा रहे हैं, जो बगल के जनपद गाजीपुर के स्थायी निवासी हैं। अतुल राय के साथ सकारात्मक बात यह है कि इन्हें मऊ के विधायक मुख्तार अंसारी का करीबी माना जाता है और इस आधार पर यह माना जा रहा है कि पिछले चुनाव में मुख्तार अंसारी को जो वोट मिले थे वह अतुल राय को मिलेंगे। वहीं सपा के राजीव राय को मिले वोट का भी कुछ हिस्सा उन्हें मिलेगा, साथ ही कुछ जातिगत वोट भी मिलेगा ही। 

इस सीट पर अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। अब यह देखना होगा कि परिणाम किसके पक्ष में जाता है। अगर वहाँ भाजपा की जीत होती है तो उसका सीधा श्रेय प्रधानमंत्री और भाजपा को जायेगा और अगर भाजपा की जगह कोई और जीतता है तो उसका कारण सांसद और उनकी कार्यशैली को जायेगा। 

संतोष कुमार राय

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं और राजनीतिक विषयों पर गहरी पकड़ रखते हैं)

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