रणनीतिक चूक की वजह से कांग्रेस के हाथ से फिसलता राजस्थान

By Santosh Kumar Rai  |  First Published Nov 30, 2018, 2:46 PM IST

राजस्थान चुनाव में कांग्रेस की अव्यवस्थित रणनीति का सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिल रहा है, जबकि वर्तमान भाजपा सरकार के विरुद्ध सत्ताविरोधी रुझान पूरी तरह तैयार है। साथ ही भाजपा की आंतरिक रस्साकशी भी किसी से छिपी हुई नहीं है। इसके बावजूद भी कांग्रेसी नेताओं की राजनीतिक और रणनीतिक समझ इतनी कमजोर कैसे है, यह आश्चर्यजनक लगता है। 

राजस्थान चुनाव में कांग्रेस की अव्यवस्थित रणनीति का सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिल रहा है, जबकि वर्तमान भाजपा सरकार के विरुद्ध सत्ताविरोधी रुझान पूरी तरह तैयार है। साथ ही भाजपा की आंतरिक रस्साकशी भी किसी से छिपी हुई नहीं है। इसके बावजूद भी कांग्रेसी नेताओं की राजनीतिक और रणनीतिक समझ इतनी कमजोर कैसे है, यह आश्चर्यजनक लगता है। 

कारण क्या हैं, जिसके आधार पर कांग्रेस के हाथ से एक आसान बाजी निकल रही है और भाजपा के हाथों में एक कठिन बाजी आसानी से जा रही है? 

इसे समझने के लिए सबसे पहले राजस्थान के मतदाताओं की जातिगत स्थिति को देखना चाहिए। एक बात बहुत स्पष्ट है कि भारत की वर्तमान राजनीति जाति से अलग होगी, फिलहाल तो यह कोरी कल्पना ही है। पिछले दिनों जिसे लहर कहा गया उसमें भी जातीय समीकरण बहुत व्यवस्थित रखे गये। 

    लगभग सात करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले इस प्रदेश में आंकड़े में ब्राह्मण-7 प्रतिशत, गुर्जर-5 प्रतिशत, मीणा-7 प्रतिशत, जाट-9 प्रतिशत और राजपूत-6 प्रतिशत हैं, जो चुनावी दृष्टिकोण से बहुत अहम हैं। पिछले चुनावों पर यदि नजर डाली जाय तो यही जातियाँ चुनावी समीकरण बनाती बिगाड़ती रही हैं। 

राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण, जाट और राजपूत नेताओं का वर्चस्व रहा है। जाट और राजपूत मतदाताओं की पहली पसंद वसुंधरा राजे रहीं हैं और उनकी यही ताकत है जिसके सामने भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व न चाहते हुए भी नतमस्तक है।

 कांग्रेस ने सचिन पायलट को आगे करके गुर्जर वोट को हथियाने की कोशिश जरूर की है लेकिन इनकी संख्या सिर्फ 5 प्रतिशत है, वहीं अशोक गहलोत जिस माली समुदाय से आते हैं उसकी संख्या 4 प्रतिशत है, जो दोनों मिलाकर 9 प्रतिशत जाट समुदाय के बराबर होती है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस प्रकार राजस्थान भाजपा के भीतर एक वसुंधरा विरोधी पार्टी बन गई है उसी प्रकार राजस्थान कांग्रेस के भीतर भी गहलोत कांग्रेस और सचिन कांग्रेस बन गई है। 

    कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा वह समुदाय होना चाहिए था जो वसुंधरा सरकार में उपेक्षित रहा या उनसे नाखुस रहा और राजस्थान चुनाव में कुछ करने की हैसियत रखता है। वह वर्ग ब्राह्मण है। ब्राह्मण राजस्थान की राजनीति की धुरी रहे हैं। एक जमाने में इनके सहयोग के बिना राजस्थान की राजनीति नहीं चलती थी। भाजपा में दो पार्टी एक पार्टी वसुंधरा राजे की है और एक भारतीय जनता पार्टी राजस्थान है।

 वसुंधरा ने जो काम किया है वह अपने लोगों को संगठन और सत्ता दोनों में मजबूत करने का कम किया है लेकिन पार्टी के अंदर ही ऐसे विधायकों की अच्छी संख्या मौजूद है जो अपनी सरकार के खिलाफ लगातार मोर्चा खोलते रहे हैं। यह पार्टी का अंतर्कलह है जो कांग्रेस की रणनीति का यदि हिस्सा होता तो कांग्रेस को लाभ पहुंचा सकता था। वसुंधरा राजे के प्रति जो नकारात्मक माहौल बना है उसमें सर्वाधिक संख्या ब्राह्मणों की है। ब्राह्मण भाजपा के वोटर तो हैं लेकिन वसुंधरा के नहीं हैं। इतनी सीधी सी बात कांग्रेस नेतृत्व को समझ नहीं आयी। यह आश्चर्यजनक जरूर लगता है लेकिन यही सत्यता है।

 यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि कांग्रेस ने ब्राह्मण चेहरे पर दाव लगाया होता तो राजस्थान का चुनावी गणित कुछ और होता और यही चूक कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकती है। राजस्थान में कौन सरकार बनाएगा और कौन नहीं बनाएगा यह तो कहना अभी कठिन है लेकिन इस समय जैसी राजनीतिक स्थिति देखने को मिल रही है उससे यह अंदाजा हो गया है कि कांग्रेस की रणनीतिक चूक का फायदा भाजपा को मिल रहा है। 

    वर्तमान समय में कांग्रेस के दोनों बड़े नाम है अशोक गहलोत और सचिन पायलट का मामला भी कम उलझा हुआ नहीं है। सचिन पायलट राजस्थान के मूल निवासी नहीं हैं इसे राजस्थान में प्रचारित करने की भरपूर कोशिश हुई है जबकि उनके पिता की और उनकी भी राजनीतिक जमीन राजस्थान ही रही है।  अशोक गहलोत को राजस्थान ने देखा है और एक उम्र के बाद अशोक गहलोत की राजनीतिक क्षमता में भी गिरावट आयी है जिसका सीधा लाभ 2013 के चुनाव में भाजपा को मिला। 

जातिगत आधार पर दोनों के पास कोई ऐसा बड़ा और स्थायी वोट बैंक नहीं है जो राजस्थान में सरकार बनाने के लिए काफी हो। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय राजनीति में जातिगत समीकरण वर्तमान राजनीति का सबसे मजबूत पक्ष है। किसी भी पार्टी के खिलाफ या पार्टी के पक्ष में माहौल का होना अपनी जगह है, लेकिन उसमें भी जातिगत समीकरण को छोड़ा नहीं जा सकता।

 ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए सरकार बनाना अब कठिन दिख रहा है, क्योंकि जातिगत आधार पर कांग्रेस से बहुत बड़ी चूक हुई है। दूसरी ओर भाजपा का जो मजबूत पक्ष है वह उसका संगठन है। कांग्रेस सांगठनिक तौर पर भाजपा के सामने काफी कमजोर है। राजस्थान भाजपा के नेताओं में विवाद जरूर है लेकिन संगठन की कमान केंद्रीय नेतृत्व के पास है और वह राजस्थान को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक चुका है। 

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि वसुंधरा राजे की अपनी छवि। वसुंधरा राजे की छवि एक बोल्ड महिला की है जो किसी भी नेता को टक्कर देने की हैसियत रखती हैं। वर्तमान में कांग्रेस के पास उनके कद का कोई नेता नहीं है। वसुंधरा राजे भाजपा की घोषित उम्मीदवार हैं जबकि गहलोत और पायलट में खुद को घोषित कराने की जद्दोजहद जारी है। 

    कुल मिलाकर राजस्थान की राजनीति जिस रास्ते पर खड़ी है वहाँ से मुख्यमंत्री कि कुर्सी की ओर जाता हुआ जो रास्ता दिख रहा है वह वसुंधरा के पक्ष में ज्यादा झुका हुआ है। फिर भी यह कयास है अंतिम रिजल्ट तो अंतिम लड़ाई में ही आता है। वैसे यह आम चुनाव का रिहर्सल है और इसी से आगे की दिशा भी तय होगी कि देश किस रास्ते पर जाएगा। 
 

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