कौन कितना भारी, गाजीपुर में किसकी कितनी तैयारी

By Santosh Kumar RaiFirst Published Mar 29, 2019, 5:50 PM IST
Highlights

उत्तर प्रदेश की राजनीति जाति आधार की राजनीति है लेकिन अगर सामान्य तौर पर कहा जाए तो गाजीपुर में जाति का आधार टूट गया है और विकास चुनावी आधार बन गया है। पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति में गाजीपुर इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। यदि जातीय समीकरण पर ध्यान दिया जाय तो यह सीट पिछड़ा बाहुल्य सीट है जिसमें यादव, कुशवाहा, बिन्द, चौहान और राजभर हैं। जहां तक सवर्ण मतदाताओं की बात है तो उसमें राजपूत, ब्राह्मण और भूमिहार हैं।

स्वाधीनता आंदोलन में ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाला गाजीपुर लोकसभा चुनाव की दृष्टि से पूर्वी उत्तर प्रदेश की न सिर्फ महत्वपूर्ण सीट है, बल्कि भाजपा और पूर्वांचल के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा की प्रतिष्ठा की भी सीट है। गाजीपुर पिछले कई दशकों से विकास से कोसों दूर था जिसके अनेक कारण थे। उसमें एक महत्वपूर्ण कारण कांग्रेस की अनदेखी भी थी। 

विश्वनाथ गहमरी ने गाजीपुर का दर्द जब संसद में बयां किया तो बताया जाता है कि पंडित नेहरू समेत कांग्रेसी सरकार के पहली पंक्ति के सभी नेताओं की आँखें गीली हो गईं। आयोग भी बना और उसकी रिपोर्ट भी आयी, लेकिन गाजीपुर विकास की बाट देखता रहा। उसके बाद कांग्रेसी उपेक्षा का कारण यह था कि गाजीपुर से वामपंथी सरयू पाण्डेय चुनकर संसद में जाते रहे। इस प्रकार कांग्रेस और वामपंथियों की आपसी खींच-तान में गाजीपुर पिछड़ता गया। 
 
जहां तक भाजपा और मनोज सिन्हा का सवाल है तो दोनों का आगमन गाजीपुर में एक साथ हुआ। मनोज सिन्हा छात्र राजनीति से सीधे संसदीय राजनीति में गाजीपुर में उतरे। कई चुनावों की उठापटक के बाद मनोज सिन्हा 1996 में भाजपा की सीट पर लोकसभा में पहुंचे। उसके बाद 1998 और 2014 में लोकसभा में पहुंचे। 

लेकिन पिछला चुनाव गाजीपुर की दृष्टि से ऐतिहासिक सिद्ध हुआ। मनोज सिन्हा केंद्र में मंत्री बने और गाजीपुर विकास की धारा में उत्तरोत्तर बहने लगा। यदि चुनावी राजनीति की दृष्टि से गाजीपुर का आकलन किया जाय तो परिसीमन के बाद से ही गाजीपुर भाजपा के लिए एक बहुत कठिन सीट बन गई है। 

वर्तमान गाजीपुर के भाजपा के समर्थक मतदाताओं के दो विधानसभा क्षेत्र मुहम्मदाबाद और जहुराबाद बलिया में चले गये हैं। अब गाजीपुर में जो पाँच विधानसभा सीटें हैं उनमें गाजीपुर सदर, जंगीपुर, जमनियां, सैदपुर और जखनियाँ हैं। इनमें से सैदपुर और जखनियाँ सुरक्षित सीटें हैं। यदि पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर दृष्टि डाली जाय तो वह भी भाजपा के पक्ष में संकेत नहीं देते हैं। 

2014 के चुनाव में भाजपा के मनोज सिन्हा को 306929, सपा की शिवकन्या कुशवाहा को 274477, बसपा के कैलाश नाथ यादव को 241645, डीपी यादव को 59510 जबकि भाजपा के बागी अरुण सिंह को 34093 और कांग्रेस को मात्र 18908 मत मिले थे। मनोज सिन्हा गाजीपुर के पारंपरिक और जमीनी नेता थे जबकि शिवकन्या कुशवाहा और डीपी यादव बाहरी थे और धन के बल से चुनाव लड़ रहे थे। 

2014 के लोकसभा चुनाव में जो मोदी लहर का उफान था और इस सीट पर मनोज सिन्हा चुने गए, जिनका हार और जीत का जो अंतर था वह मात्र 32000 का था। इस दृष्टि से यह सोचना कि गाजीपुर की लोकसभा सीट भाजपा के पक्ष की सीट है यह गलत है। पिछला चुनाव भी प्रत्याशी के बल पर लड़ा गया और यह चुनाव भी प्रत्याशी ही लड़ेगा। 

वर्तमान समय और 2019 के चुनाव का आकलन किया जाए तो आज यह सीट भारतीय जनता पार्टी के पक्ष की एक मजबूत सीट बन गई है। उसका कारण यह है कि पिछले 5 वर्षों में गाजीपुर के लोगों के बीच जो लोकप्रियता वर्तमान सांसद मनोज सिन्हा ने हासिल की है, एक सांसद के तौर पर जिस तरह से लोगों का विश्वास जीता है, वह भारतीय राजनीति के लिए उदाहरण योग्य है। एक-एक व्यक्ति, क्षेत्र के एक-एक गांव से जुड़ना और विकास के हर पायदान पर न सिर्फ खड़ा होना, बल्कि विकास के मामले में गाजीपुर का स्वरूप बदल देना, यह गाजीपुर का सौभाग्य है और यही कारण है कि अब यह सीट पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में है। 

उत्तर प्रदेश की राजनीति जाति आधार की राजनीति है लेकिन अगर सामान्य तौर पर कहा जाए तो गाजीपुर में जाति का आधार टूट गया है और विकास चुनावी आधार बन गया है। पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति में गाजीपुर इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। यदि जातीय समीकरण पर ध्यान दिया जाय तो यह सीट पिछड़ा बाहुल्य सीट है जिसमें यादव, कुशवाहा, बिन्द, चौहान और राजभर हैं। जहां तक सवर्ण मतदाताओं की बात है तो उसमें राजपूत, ब्राह्मण और भूमिहार हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में जमनियाँ से संगीता सिंह और गाजीपुर से संगीता बिन्द ने जीत हासिल की थी। इन समीकरणों के आधार पर गाजीपुर लोकसभा सीट पर एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने मनोज सिन्हा को उतारा है। एक तरफ मनोज सिन्हा का विकास कार्य और दूसरी तरफ सपा बसपा का गठबंधन है। 

यदि गठबंधन के अंकगणितीय आधार को देखा जाए तो मनोज सिन्हा को 516122 मत मिलते हुए दिख रहे हैं, जो कि उन्हें पिछली बार मिले 306929 मतों से बहुत अधिक है। 

लेकिन जैसा कि चुनावी आंकड़े अंकगणितीय नहीं होते। इसका एक नमूना पिछले विधानसभा में भी दिखा था। अब एक बार फिर गाजीपुर से अंकणितीय गठबंधन और विकास आमने-सामने हैं। 

जहां तक गाजीपुर के विकास की बात है तो वह 2014 तक अकल्पनीय था। आज गाजीपुर जैसे छोटे जिले के पास भव्य रेल सुविधाएं, विस्तृत सड़क मार्ग, जल मार्ग और आधुनिकतम हवाई अड्डा (निर्माणाधीन) है। मेडिकल कालेज, अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स कांप्लेक्स, फल और सब्जी का संग्रह केंद्र के साथ-साथ रोजगार के भी अनेक स्रोत बने हैं। 

आज विकास के लिए तरसता हुआ गाजीपुर चुनाव नहीं लड़ रहा है, बल्कि विकसित गाजीपुर चुनाव लड़ रहा है। तो 2014 और 2019 के चुनाव में यही फर्क है। 2014 में विकास के लिए तरसता हुआ गाजीपुर चुनाव लड़ रहा था और 2019 में विकसित गाजीपुर चुनाव लड़ रहा है। इसलिए राजनीति की पुरानी पड़ चुकी जातिगत अंकगणित अब विकासवादी समीकरण के साथ नयी राह पर चलने को तैयार है। इन सभी पहलुओं के आधार पर यह कहना उचित होगा कि गाजीपुर एकबार फिर भाजपा की झोली में अवश्य आने वाला है।  

संतोष कुमार राय
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं और राजनीतिक सामाजिक विषयों पर विशेष पकड़ रखते हैं)
 

click me!