माय नेशन ‘इतिहास के दंगल’ नाम से एक ऐसी सीरीज़ शुरू कर रहा है, जो भारत के इतिहास के पन्नों को पलटकर उस झूठ को बेनकाब करेगी जिसे सच बताकर प्रसारित किया गया और स्कूलों के पाठ्यक्रम द्वारा समाज में भ्रमित करने वाली अवधारणाएं फैला दी गईं; हम तथ्यों के आधार पर सच को सामने रखेंगे।
अक्सर स्वघोषित इतिहासकारों, सेलेब्रिटियों और विद्वानों द्वारा निराधार और बढ़ाचढ़ाकर किये जाने वाले दावों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जाता है। मुख्यधारा की मीडिया में ये लोग बिना किसी प्रतिरोध के अपनी बात रख देते हैं, लेकिन सोशल मीडिया के मंच से ये लोग दुनियाभर में झूठ नही फैला सकते, क्योंकि यहां उनका तत्काल सच से सामना हो जाता है। अनुसंधान पर आधारित तथ्य हमेशा उस कछुए जैसे सच की तरह होते हैं, जो तेजी से दौड़ने वाले झूठ को आखिरकार हरा ही देता है।
पिछले दो साल में, प्राचीन भारतीय सभ्यता और इतिहास को कमतर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। लोग इसे जानबूझकर कर रहे हैं या अनजाने में, इसका फैसला हम नहीं कर सकते। यह लोगों पर है कि वह इसकी व्याख्या कैसे करते हैं।
एक कोशिश अमरनाथ की पवित्र गुफा को लेकर मिथक को प्रचारित करने की रही है। पिछले साल, एक सेलेब्रिटी ने दावा किया कि इस पवित्र गुफा को 1850 में एक मुस्लिम गडरिये ने खोजा था।
इस साल भी एक और स्व-घोषित इतिहासकार झूठे तथ्य देते हुए धरे गए। वह पहले भी कई बार झूठ फैलाते हुए बेनकाब हो चुके हैं।
उनकी कहानी पूरी तरह गलत है। 1842 में जब ब्रिटिश यात्री जीटी विग्ने (1) अमरनाथ पहुंचा, उसने देखा कि हिंदू तीर्थयात्री पूरे भारत से यहां पहुंच रहे हैं। उसने 1842 में अमरनाथ यात्रा के बारे में लिखा।
कश्मीर में इस्लामिक नेता और अलगाववादी अक्सर इस मिथक का इस्तेमाल हिंदुओं के घाटी से कई सहस्राब्दी पुराने जुड़ाव को नकारने के लिए करते हैं। उनकी कोशिश इस बात को चित्रित करने की होती है कि यह यात्रा कुछ शताब्दी पहले ही शुरू हुई और इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। कुछ लोग इस दुष्प्रचार को फैलाने में ही जुटे रहते हैं।
सच्चाई यह है कि हिंदू सदियों से लगातार अमरनाथ की यात्रा को कर रहे हैं, यहां तक कि इस्लामिक हमलों के बावजूद भी यह जारी रही।
नीलमत पुराण में अमरेश तीर्थ का जिक्र किया गया है – अमरेश में स्नान करन, एक व्यक्ति के हजार गाय के दान देने के समान है।
नीलमत पुराण इस्लाम के पैगंबर के जन्म के काफी पहले लिखी गई थी।
नीलमत पुराण में जिस तीर्थ अमरेश का जिक्र है वह अमरनाथ गुफा के पास स्थित खूबसूरत शेषनाग झील है।
नीलमत पुराण तीसरी शताब्दी सीई के कालखंड की है। यह दर्शाता है कि हिंदू कश्मीर के इतिहास की शुरुआत के पहले से अमरनाथ की यात्रा करते थे।
एक अन्य प्राचीन शास्त्र बृंगेश संहिता के अनुसार, इस स्थान पर भगवान शिव ने देवताओं को अमरत्व के लिए अमृत की पेशकश की थी। यहां के शेष हिस्से ने शिवलिंग का रूप ले लिया, जिसकी इस गुफा में पूजा की जाती है।
अमरनाथ यात्रा मध्यकाल में भी की जाती थी। इसका प्रमाण प्रसिद्ध कश्मीरी इतिहासकार कल्हाण ने अपनी 12वीं शताब्दी में लिखे वृतांत राजतरंगिणी में भी किया है। वह लिखते हैं कि कश्मीर की महारानी सूर्यमती ने अमरेश्वर में मठों को निर्माण करवाया (राजतरंगिणी 7.183)(3)। राजतरंगिणी (1.267) में यह स्पष्ट हो जाता है कि अमरेश्वर के लिए तीर्थाटन 12वीं शताब्दी में भी जारी था। 15वीं शताब्दी में जौनराजा द्वारा लिखी गई राजतरंगिणी में अमरेश्वर को कश्मीर का भगवान और अधिपति बताया गया है। (4)
क्या अमरनाथ लुप्त हो गया और बाद में फिर इसकी खोज हुई। इसका उत्तर है, ऐसा संभव ही नहीं है।
औरंगजेब के साथ 1663 में कश्मीर की यात्रा करने वाले एक फ्रांसीसी यात्री फ्रैंकोइस बरनियर ने एक बर्फ से जमी गुफा का जिक्र किया है। यह संभव है कि बरनियर अमरनाथ गुफा का ही जिक्र कर रहे थे, जैसा कि इतिहासकार विनसेंट आर्थर स्मिथ द्वारा उल्लेख किया गया है। उन्होंने बरनियर की किताब का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। (5)
17वीं शताब्दी में कश्मीर के मुगल प्रशासक अली मरदान खान के बारे में कहा जाता है कि उसने हिंदू तीर्थयात्रियों (अमरनाथ यात्रियों) का मजाक उड़ाया था, जो बारिश और बर्फबारी के बावजूद एक ‘गुफा में किसी चीज’ के दर्शन करने के लिए जाते थे।
यह स्पष्ट है कि हिंदू 1,600 वर्षों से निरंतर अमरनाथ की यात्रा कर रहे हैं। हिंदुओं ने जलवायु और परिस्थितियों से जुड़ी कई कठिनाइयों का हिम्मत से सामना किया। यहां तक कि जिहादी हमले और पत्थरबाजी भी उन्हें यात्रा करने से नहीं रोक पाई। यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि तमाम बाधाओं के बावजूद इस यात्रा को कभी नहीं बंद किया गया।
इसलिए ऐसा कैसे हो सकता है कि अमरनाथ पहले लुप्त हो गया और दोबारा इसकी खोज हुई?
उपरोक्त विश्लेषण गुफा की खोज के दावे को खारिज करता है। 1850 में अमरनाथ गुफा की खोज करने वाले तथाकथित गडरिये बूटा मलिक का जिक्र 19वीं शताब्दी के किसी ऐतिहासिक स्रोत में नहीं है। उसका पहली बार जिक्र 20वीं शताब्दी में हुआ। हालांकि उसकी कहानी में निरंतरता की भी कमी है। इस कथित गडरिये के नाम और खोज की तारीख कई जगह अलग-अलग दी गई हैं। यह सबकुछ पिछली शताब्दी से संबद्ध है। उसका नाम अदम मलिक, अकरम मलिक से लेकर बूटा मलिक तक है। यही नहीं उसके अमरनाथ गुफा खोजने का कालखंड 16वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक बताया गया है। इस बात की प्रबल संभावना है कि ये कहानी स्थानीय गडरियों ने फैलाई हो, ताकि उन्हें यहां चढ़ाए जाने वाले दान में हिस्सा मिल सके। धर्मनिरपेक्षता के विकृत स्वरूप ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि वे इसमें सफल हो जाएं।
संदर्भ
(1) ट्रैवल्स इन कश्मीर, लद्दाख, स्कार्दू, द कंट्रीज एडज्वाइनिंग द माउंटेन-कोर्स ऑफ द इंडस, द हिमालया, नॉर्थ ऑफ द पंजाब – जीटी विग्ने, ईएक्यू, एफजीएस
(2) कश्मीर का नीलमत पुराण, (छठी से 8वीं शताब्दी एडी), राजतरंगिणी लिखे जाने के दौरान कल्हाण का दिया गया संदर्भ
(3) डा. स्टेन का विचार है कि यह संभव नहीं है कि इस क्षेत्र में जिस अमरेश्वर मंदिर का जिक्र किया गया है, उसका संबंध अमरनाथ से है, क्योंकि इसमें एक के बाद एक बने दो मठों का जिक्र है। हालांकि, अब हम जानते हैं कि अमरनाथ पूर्व में मठ रहा है। अमरेश्वर मंदिर की मौजूदगी ही मध्यकाल में अमरनाथ के महत्व को दर्शाती है।
(4) जौनराजा की राजतरंगिणी
(5) ट्रैवल्स इन द मुगल इम्पायर, फ्रैंकोइस बरनियर