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उत्तराखंड ने देश में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए समान नागरिक संहिता (UCC) लागू कर दी है, और वह पहला राज्य बन गया है जहां यह कानून प्रभावी हुआ है।
उत्तराखंड में UCC लागू होने के बाद मुस्लिम समुदाय के लिए तलाक की प्रक्रिया में भी महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। इस्लामी कानूनों का पालन अब नहीं किया जाएगा। तलाक के लिए एक नया कानून।
अब तक, मुस्लिम पर्सनल (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत मुस्लिमों के पारिवारिक मामलों जैसे विवाह, तलाक और विरासत इस्लामी कानूनों के तहत शासित होते थे।
लेकिन अब UCC लागू होने के बाद इन मामलों में इस्लामी कानूनों का पालन नहीं होगा। इसके बजाय सभी समुदायों के लिए एक समान कानून लागू होगा।
तीन तलाक को पहले ही देश भर में अवैध था, और अब मुस्लिमों के लिए तलाक की अन्य विधियों, जैसे तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-बाईन, और तलाक-ए-किनाया भी समाप्त कर दी जाएंगी।
तलाक के लिए अब मुस्लिमों को एक कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा। शादी के तुरंत बाद तलाक का आवेदन नहीं किया जा सकेगा। इसके लिए एक साल का समय निर्धारित किया गया है।
तलाक के लिए पति-पत्नी को एक ही आधार पर आवेदन करना होगा। यानि, यदि कोई व्यक्ति तलाक चाहता है, तो उसे पहले एक साल की अवधि पूरी करनी होगी और फिर वह कोर्ट में आवेदन कर सकेगा।
अब, मुस्लिम समुदाय के लिए भी वही नियम लागू होंगे जो हिंदू समुदाय के लिए हैं। किसी व्यक्ति को तलाक दिए बिना दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं होगी।
UCC के तहत मुस्लिम महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 साल और पुरुषों के लिए 21 साल तय की गई है।
इससे पहले, इस्लामी कानून में लड़की के वयस्क होने की आयु निर्धारित नहीं थी, जिससे मुस्लिम लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती थी।
अब सभी धर्मों की लड़कियों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार मिलेगा। इस बदलाव से मुस्लिम महिलाओं को भी संपत्ति में हिस्सा मिलेगा, जो पहले उनके लिए नहीं था।