लखनऊ। डॉ. एस. हैदर हेल्थ टेक स्टार्टअप 'स्टूफिट' (Stufit) के निदेशक हैं। 'स्टूफिट' स्कूली बच्चों का हेल्थ चेकअप करता है और उनका डिजिटल हेल्थ रिपोर्ट कार्ड तैयार करता है। बच्चों को 25 हजार रुपए का हेल्थ कवर कैशलेस कार्ड भी दिया जाता है, जिसका देश भर में कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है। वर्तमान में वह यूपी के 9 जिलों के प्राइवेट व सरकारी स्कूलों में काम कर रहे हैं। 

कोरोना महामारी ने खड़ी की मुश्किलें

डॉ. हैदर ने जमीन से काम शुरु कर अपने स्टार्टअप को पहचान दिलाई। पर यह काम शुरु करना इतना आसान नहीं था। नवम्बर 2019 में उन्होंने अपना स्टार्टअप 5 से 7 लाख रुपये में शुरु किया था। स्कूलों में ओरिएंटेशन कैंप लगाकर पैरेंट्स को बच्चों के डिजिटल हेल्थ रिपोर्ट कार्ड के फायदे बताएं। लगभग 4 महीने ही गुजरे थे कि मार्च 2020 में कोरोना महामारी की आफत आ गई तो स्कूल भी बंद हो गएं और उनकी मेहनत पर पानी फिर गया। उस समय उनके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हुई। मेहनत की कमाई से जमा की गई पूंजी भी खर्च हो चुकी थी। फिर सर्वाइवल के लिए कुछ दोस्तों और फैमिली मेंबर्स से पैसे लेकर मई 2022 में दोबारा काम शुरु किया। 

इन जिलों में कर रहे काम

वर्तमान में वह यूपी के 9 जिलों (बाराबंकी, लखनऊ, प्रयागराज, अम्बेडकरनगर, लखीमपुर, संभल, जौनपुर, झांसी, अलीगढ़) में काम कर रहे हैं। डॉ. हैदर कहते हैं कि हम कॉरपोरेट कम्पनियों को भी अप्रोच कर रहे हैं, जल्द ही उनके लिए भी काम शुरु करेंगे।

ग्लोबल मार्केट में जाने की तैयारी

डॉ. हैदर कहते हैं कि मेरे पास अपनी जमा पूंजी बहुत कम थी। उसमें स्टार्टअप शुरु करना बहुत मुश्किल था। सबसे बड़ा चैलेंज था कि पैसा कहॉं से अरेंज किया जाए। फिर भी काम शुरु किया। सरकार की तरफ से अवार्ड मिलने शुरु हुए। लोगों का सपोर्ट मिलना शुरु हो गया। स्टार्टअप नेटवर्क से जुड़े हैं, स्टार्टटप इंडिया से भी सपोर्ट मिल रहा है कि आप ग्लोबल भी जा सकते हैं। इस तरह के आइडिएशन पर अफ्रीका, एशिया या अरब के कुछ कंट्री में काम नहीं चल रहा है। वहां भी काम कर सकते हैं। उसमें सपोर्ट मिल रहा है। 

NHM में काम करते वक्त आया आइडिया

डॉ. एस. हैदर पहले नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) में काम कर रहे थे। उन्होंने साल 2013 से 2018 तक झांसी में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम में संविदा पर काम किया। उसी दौरान उन्हें लगा कि स्टूडेंट्स को सिर्फ एकेडमिक रिपोर्ट कार्ड दिया जाता है। जिससे पैरेंट्स या टीचर्स बच्चों की अकादमिक क्षमता की परख तो कर लेते हैं, पर बच्चों की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य क्षमता की परख नहीं होती है, जबकि यही बच्चों की एकेडमिक कैपिसिटी को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। पूरे देश में कोई भी इंस्टीट्यूट बच्चे को हेल्थ रिपोर्ट कार्ड नहीं देता है। जिसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता है। 

फिर शुरु किया ये काम

डॉ. हैदर कहते हैं कि फिर हमने यह काम करने का निर्णय लिया और स्कूलों में मेडिकल टीम भेजी। जिसमें मेडिकल और पैरामेडिकल एक्सपर्ट रहते हैं और वह हेल्थ चेकअप करके हमारी वेब बेस्ड एप्लीकेशन में डेटा फीड करके बच्चे को डिजिटल हेल्थ रिपोर्ट कार्ड उपलब्ध कराते हैं। एक निजी कम्पनी से टाईअप करके बच्चों को हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी देनी शुरु की।